Tulsi Vivah: जानें कब मनाया जाएगा तुलसी विवाह उत्सव? क्या है पूजा विधि, महत्व और शुभ मुहूर्त

हिंदू धर्म में वैसे तो अनेकों त्यौहार मनाए जाते हैं और उन सब का अलग-अलग महत्व होता है उन सब में एक पर्व तुलसी विवाह भी है। जो कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व भी है। इस दिन भगवान शालिग्राम और माता तुलसी का पूरे विधि विधान से विवाह कराया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह पूजा क्यों की जाती है? और कब की जाती है? अगर नहीं तो चलिए जानते है।

क्यों की जाती है तुलसी पूजा?

देवउठनी एकादशी के ठीक अगले दिन तुलसी विवाह का यह पर्व बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। हिंदू पंचांग की कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को तुलसी विवाह मानते हैं। कई बार तो तिथियों की गणना और शुभ मुहूर्त कुछ ऐसे बनते हैं कि यह दोनों पर्व एक ही दिन मनाए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार यह माना जाता है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु और माता तुलसी एक दूसरे के साथ परिणय सूत्र में बंधे थे। तभी से इस दिन से तुलसी विवाह या तुलसी पूजन किया जाने लगा।

क्या है तुलसी विवाह के शुभ मुहूर्त?

हिंदू पंचांग की मानें तो इस वर्ष द्वादशी तिथि यानी की 12 नवंबर को शाम 4:04 पर शुरू होगी और 13 नवंबर को दोपहर 1 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार तुलसी विवाह 13 नवंबर को मनाया जाएगा।

तुलसी विवाह का महत्व

तुलसी विवाह को अपने घर पर करना बेहद शुभ माना जाता है। हिंदू धर्म में कन्यादान को दान का सर्वोत्तम रूप माना गया है। ऐसा माना जाता है कि तुलसी विवाह की सभी रस्म निभाने से मानव को कन्यादान के बराबर फल मिलता है। मान्यता के अनुसार जब शालिग्राम और तुलसी मां का विवाह घर में होता है तो उस घर में देवी लक्ष्मी का निवास होता है और उनके निवास से घर में सुख समृद्धि आती है और सभी कष्ट दूर हो जाते है।

तुलसी विवाह पूजन विधि

अगर आप अपने घर पर तुलसी पूजा करना चाहते हैं तो सबसे पहले दो चौकी लें। एक चौकी पर तुलसी का पौधा और दूसरी चौकी पर शालिग्राम को स्थापित करें। इसके बाद इसके बगल में जल से भरा हुआ कलश रखें और उसके ऊपर आम के पांच पत्ते रखें। वहीं, तुलसी के गमले में गेरू लगाएं और घी का दीपक जलाएं। उसके बाद तुलसी और शालिग्राम पर गंगाजल से छिड़काव कर रोली, चंदन और टीका लगाएं। तुलसी के गमले में ही गन्नों से मंडप सजाएं। अब तुलसी को सुहाग का प्रतीक लाल चुनरी, चूड़ी और साड़ी लपेटकर उनका दुल्हन की तरह श्रृंगार करें। इसके बाद शालिग्राम को चौकी समेत हाथ में लेकर तुलसी की सात बार परिक्रमा करें। इसके बाद आरती कर तुलसी विवाह संपन्न कर सभी लोगों में प्रसाद बांटे।

तुलसी विवाह कथा

नारद पुराण के अनुसार, एक समय की बात है जब दैत्यराज जालंधर के अत्याचारों से सभी देवी देवता, ऋषि मुनि, मनुष्य परेशान थे और उसे रोक पाने का कोई भी उपाय नहीं था, क्योंकि जालंधर बेहद ही पराक्रमी और वीर था। उसकी इस अजेयता के पीछे उसकी पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली उसकी पत्नी वृंदा के पुण्य का फल था। जिससे वह कभी भी बराबर पराजीत नहीं होता था। उसके अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और जालंधर को हराने का उपाय पूछा, तब जगतकर्ता भगवान विष्णु ने वृंदा के पतिव्रत धर्म को तोड़ने का उपाय सोचा उसके बाद भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण कर वृंदा के पतिव्रता धर्म को उसे स्पर्श कर भंग कर दिया। जिससे जालंधर युद्ध में मर गया। भगवान श्री हरि से छले जाने और पति के वियोग से दुखी होकर वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि आपकी पत्नी का भी छल से हरण होगा और आपको भी पत्नी वियोग सहना होगा।

वृंदा श्राप देने के बाद अपने पति के वियोग में ज्यादा देर नहीं रह पाई और जालंधर के साथ सती हो गई। जिसकी राख से तुलसी का पौधा निकला। वृंदा के पतिव्रता धर्म को तोड़ने के बाद भगवान विष्णु को बहुत ज्यादा पश्चाताप हुआ। ओर अपने पश्चाताप के बोझ तले भगवान विष्णु ने वृंदा को आशीर्वाद दिया और कहा कि वह तुलसी स्वरूप में सदैव उनके साथ रहेगी। और उन्होंने कहा कि कार्तिक शुक्ल की एकादशी को शालिग्राम के स्वरूप में स्वयं श्री हरि का विवाह तुलसी से कराया जाएगा और जो भी मानव कार्तिक शुक्ल की एकादशी को शालिग्राम का विवाह तुलसी से कराएगा उसकी सभी मनोकामना पूरी होंगी। तब से तुलसी विवाह का यह चलन भी शुरू हुआ।