सृष्टि के सर्वप्रथम इंजीनियर हैं भगवान विश्वकर्मा, जानिए ब्रह्मा जी सातवें पुत्र की कथा

गणेश विसर्जन, गणेश चतुर्थी उत्सव के समापन के दिन होता है। महाराष्ट्र सहित पूरे भारत में विसर्जन उत्सव को बड़े जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

Vishwakarma creating the world

सनातन हिंदू धर्म ईश्वर पर अगाध आस्था और समर्पण का नाम है। सनातनी दैनिक जीवन में अनिवार्य रूप से नित्य पूजा करते हैं। प्रतिदिन पूजा भक्ति आराधना करके मनुष्य अपने अशुभ कर्मों की दिशा को शुभकर्मों में बदल सकता है। 

भगवान विश्वकर्मा सृजन, निर्माण, वास्तुकला, शिल्प कला और सांसारिक वस्तुओं के अधिष्ठात्र देवता माने जाते हैं। विश्वकर्मा की पुत्री ऋद्धि एवं सिद्धि का विवाह भगवान शिव जी के पुत्र गणेश जी के साथ और पुत्री संज्ञा का विवाह ऋषि कश्यप के पुत्र भगवान सूर्य के साथ हुआ था।

भगवान सूर्य की के पुत्र वैवस्वतमनु, यमराज, यमुना, कालिंदी और अश्विनी कुमार हैं। ये भगवान विश्वकर्मा ही हैं, जिन्होंने देवताओं के सभी अस्त्र-शस्त्रों, दिव्य वाहनों और भवन के साथ लो​कों का भी निर्माण किया है।

आज हम आपको इस पृथ्वी को सुंदर बनाने वाले भगवान विश्वकर्मा जी की कथा के बारे में बताने वाले हैं। उनकी कथा दरिद्रता का नाश करने वाली और कामकाज से जुड़े सभी अमंगलों को दूर करने वाली बताई गई है।

कौन हैं भगवान विश्वकर्मा?

भगवान विश्वकर्मा जी सृष्टि के निर्माता परमपिता ब्रह्मा जी के सातवें पुत्र माने जाते हैं। विश्व के पहले शिल्पकार, वास्तुकार या इंजीनियर  भगवान विश्वकर्मा जी को ही माना जाता है। जिनकी महिमा का वर्ण धार्मिक ग्रंथों में अनेक प्रसंगों में किया गया है।

परमपिता ब्रह्मा जी के कहने पर ही भगवान विश्वकर्मा ने रावण की स्वर्णपुरी लंका, द्वारिका नगरी, जगन्नाथपुरी को मूर्त रूप प्रदान किया था। इंद्र की अलकापुरी का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा जी ने किया था। 

भगवान विश्वकर्मा निर्माता हैं। विश्व की सुंदर रचना को आकार देने वाले भगवान विश्वकर्मा जगतपूज्य माने जाते हैं। वैदिक धर्म में देवताओं में भगवान विश्वकर्मा जी का स्थान सर्वोपरि माना गया है। 

भगवान विश्वकर्मा सृजन के देवता है। मान्यता है कि संपूर्ण सृष्टि पर जीवन के संचालन के लिए जो भी चीजें सृजनात्मक हैं, वह भगवान विश्वकर्मा की देन है।

हिंदू धर्म ग्रंथों में भगवान विश्वकर्मा जी का महत्व

‘विश्वं कृत्यस्नं वयापारो वा यस्य सः’ अर्थात् जिसकी सम्यक सृष्टि व्यापार है, वहीं विश्वकर्मा है। प्राचीन काल से ब्रम्हा-विष्णु और महेश के साथ विश्कर्मा की पूजा-आराधना का प्रावधान हमारे ऋषियों-मुनियों ने किया है।

भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का सबसे पहला इंजीनियर माना जाता है। इस दिन औद्योगिक क्षेत्र से जुड़े उपकरण, औजार  की पूजा करने से कार्य में कुशलता आती है। शिल्पकला का विकास होता है। 

कहा जाता है कि देव शिल्पी विश्वकर्मा संसार के सबसे पहले इंजीनियर हैं, जो साधन और संसाधन निर्माण के लिए जाने जाते हैं।

भगवान विश्वकर्मा जी की कथा  

पौराणिक कथा के अनुसार जब सृष्टि का निर्माण हो रहा था, तो वहां सर्वप्रथम भगवान नारायण यानी साक्षात भगवान विष्णु सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए। भगवान विष्णु के प्रकट होने के बाद उनकी नाभि कमल से चतुर्मुख भगवान ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो गए थे। 

ब्रह्मा के पुत्र ‘धर्म’ और धर्म के पुत्र ‘वासुदेव’ थे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ‘वस्तु’ से उत्पन्न ‘वास्तु’ सातवें पुत्र थे,जो शिल्पशास्त्र में बहुत ही बुद्धिमान थे। वासुदेव की पत्नी अंगिरसी’ ने भगवान विश्वकर्मा को जन्म दिया। आगे चलकर, उनकी शिक्षा-दीक्षा देवगुरु बृहस्पति और दैत्य गुरु शुक्राचार्य के सानिध्य में संपन्न हुई थी। दैत्यों के शिल्पी मय दानव ने भी उनके साथ ही शिक्षा प्राप्त की थी। 

शिक्षा प्राप्त करने के बाद भगवान विश्वकर्मा ने परमपिता ब्रह्मा और आदिगुरु भगवान शिव की कठोर तपस्या करके अपनी कला में निपुणता का वरदान प्राप्त किया था। अपने पिता के तरह ही भगवान विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने।  वाराह पुराण के अनुसार, ब्रह्माजी ने विश्वकर्मा को धरती पर उत्पन्न किया। विश्वकर्मा ने धरती पर महल, हवेली, वाहन, शस्त्र आदि का निर्माण किया। विश्वकर्मा जी ने इंद्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्गलोक, लंका आदि का निर्माण किया था।

भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का प्रथम शिल्पकार और निर्माण के देवता माना जाता है। उन्होंने देवताओं के अस्त्र-शस्त्र, वाहनों और लोकों का निर्माण किया। उनकी कथा में बताया गया है कि विश्वकर्मा जी की पूजा करने से दरिद्रता का नाश होता है और कामकाज से जुड़े सभी अमंगल दूर हो जाते हैं।