Vrishchik Sankranti: हिंदू कैलेंडर के अनुसार सूर्य के वृश्चिक राशि में प्रवेश करने के समय वृश्चिक संक्रांति मनाई जाती है। यह बेहद ही महत्वपूर्ण तिथि है, जिसे विशेष रूप से दक्षिण भारत में मनाया जाता है। इस दिन को वृश्चिक संक्रांति या वृश्चिक शुक्ल संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। यह आमतौर पर 15 नवंबर से 15 दिसंबर के बीच में मनाई जाती है। इस साल यह दिन 16 नवंबर को मनाया जाएगा।
Table of Contents
वृश्चिक संक्रांति का महत्व
वृश्चिक संक्रांति को हिंदू धर्म में बेहद अहम माना जाता है। यह संक्रांति सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने के समय होती है। संक्रांति के समय सूर्य की दिशा परिवर्तन को बेहद शुभ माना जाता है और इस दिन को नए कामों की शुरुआत करने दान पुण्य और पूजा करने के लिए बेहद शुभ माना जाता है। वृश्चिक संक्रांति से प्राकृतिक संतुलन में भी बदलाव आता है, क्योंकि वृश्चिक संक्रांति वर्ष के आखिरी के महीने में पड़ती है इस समय मौसम बदलता है। इस समय शीतलता का असर दिखना शुरू हो जाता है और एक नए समय चक्र की शुरुआत होती है।
वृश्चिक संक्रांति का धार्मिक महत्व
वृश्चिक संक्रांति का दिन विशेष रूप से भगवान सूर्य को समर्पित होता है और इस दिन का धार्मिक महत्व भी बेहद अलग होता है। सूर्य को शक्ति आत्मा स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस दिन भगवान सूर्य की पूजा अर्चना करने से मानसिक और शारीरिक सुख की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही यह भी मान्यता है कि वृश्चिक संक्रांति के दिन अगर गंगा स्नान और अन्य पवित्र नदियों में व्यक्ति स्नान करता है तो उसे सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इसलिए इस दिन तीर्थ यात्राओं पर जाना और पवित्र नदियों में नहाना बेहद फलदायक माना जाता है।
वृश्चिक संक्रांति पूजा विधि
वृश्चिक संक्रांति के दिन भगवान सूर्य की पूजा अर्चना करने का महत्व है। इस दिन लोग अलग-अलग तरीकों से विशेष पूजा और अनुष्ठान करते हैं, लेकिन अगर आप नहीं जानते की वृश्चिक संक्रांति की पूजा विधि क्या है तो चलिए जानते हैं..
- स्नान और शुद्धि : वृश्चिक संक्रांति के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर गंगाजल या साफ पानी से नहाना चाहिए। इस दिन मुख्य रूप से पवित्र नदियों में नहाने का अपना एक अलग महत्व होता है।
- भगवान सूर्य की पूजा : सूर्य देव को समर्पित यह दिन जिसमें उनकी विशेष पूजा अर्चना करनी चाहिए। इस दिन पूजा करने वाले जगह पर एक साफ आसन पर बैठकर सूर्य भगवान की पूजा करें। सूर्य भगवान की प्रतिमा या फोटो स्थापित कर उनकी उपासना करें। इसके बाद सूर्य मंत्र ओम सूर्याय नमः का जाप करें।
- धूप, दीप और अक्षत : सूर्य देव की पूजा करने के समय धूप, दीप और अक्षत चढ़ाएं। इस दिन विशेष रूप से गुड़ ,तिल, चावल और फल को अर्पित करना शुभ माना जाता है।
- व्रत रखना : वृश्चिक संक्रांति के दिन व्रत रखा जाता है। इस दिन उपवास रहकर सूर्य देव की उपासना की जाती है। जो लोग पूरे दिन उपवास नहीं रह सकते वे फलाहार कर सकते हैं।
- दान पुण्य करना : इस इस दिन विशेष रूप से दान पुण्य करना चाहिए। सूर्योदय के बाद डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देना बेहद लाभकारी होता है। अर्घ्य देते समय तिल, जल और अन्य पूजा सामग्री का उपयोग किया जाता है। यह दिन पितरों को श्रद्धांजलि देने और उन्हें तर्पण देने के लिए बहुत शुभ माना जाता है।
- पकवान बनाकर पूजा संपन्न : वृश्चिक संक्रांति के दिन विशेष कर तिल और गुड़ के पकवान बनाया जाता है तिल और गुड़ का सेवन करने से शांति और समृद्धि आती है। इसके अलावा इस दिन खिचड़ी भी तैयार की जाती है, जिन्हें खाकर व्रत को पूरा किया जाता है।
अपने पूजा पाठ एवं अनुष्ठानों के लिए हमारी शुद्ध एवं सुगन्धित धुप एवं सामग्री कप्स ज़रूर खरीदें