Dussehra 2024: दशहरे में क्यों करते है शस्त्रों की पूजा? जानें महत्व

शारदीय नवरात्रि के अगले दिन विजयदशमी को दशहरे के रूप में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। इस दिन सभी रावण के पुतले का दहन करते हैं, लेकिन क्या आपको पता है रावण के पुतले का दहन करने के अलावा शास्त्रों की भी पूजा की जाती है। दशहरा शस्त्र पूजा की परंपरा के लिए एक महत्वपूर्ण दिन होता है। दरअसल शस्त्र पूजन करने की परंपरा हिंदू धर्म में प्राचीन काल से ही रही है, जो आज भी चली आ रही है। तो आइए जानते हैं शस्त्र पूजा करने के पीछे के महत्व और वजह के बारे में…

अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने रावण का वध करने से पहले समुद्र तट पर 9 दिनों तक मां दुर्गा की अराधना की थी। इसके बाद फिर दसवें दिन उन्हें विजय प्राप्त हुई थी। एक मान्यता ये भी है कि मां दुर्गा ने नौ रात्रि और दस दिन के युद्ध के बाद राक्षस महिषासुर का वध किया था, उसके बाद देवताओं ने मां दुर्गा के शस्त्रों का पूजन किया था। इसके अतिरिक्त, कुछ लोग यह भी मानते हैं कि महाभारत के कुरुक्षेत्र युद्ध के लिए जाने से पहले पांडवों ने भी हथियारों की पूजा की थी।

दशहरे के दिन क्या करें

दशहरे के दिन सुबह जल्दी उठकर विजय मुहूर्त में स्नान और ध्यान करें। फिर अपने शस्त्रों को साफ कपड़े पर रखें। इसके बाद गंगाजल से उन्हें शुद्ध करें और फिर उनकी पूजा करें। चंदन और अक्षत लगाएं और दीपक जलाते हुए फूल और धूपबत्ती चढ़ाएं।

शस्त्र पूजन का महत्व

शस्त्र पूजा शब्द का अर्थ है अपने शत्रुओं पर विजय पाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले शस्त्रों का सम्मान करना। विजय दशमी का पर्व आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। दशहरे का पर्व असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। विजयदशमी के इस पर्व के दिन शस्त्र पूजन करने की परंपरा भी पुराने दौर से चली आ रही है।

शस्त्र पूजन की परंपरा

दशहरा हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध कर माता सीता को रावण के कैद से मुक्त किया था और वहीं मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का संघार किया था और यह दोनों ही कथाएं विजय को चिन्हित करती हैं। पहले के वक्त में जब राजा महाराजा युद्ध भूमि पर युद्ध के लिए जाते थे तो युद्ध भूमि पर जाने से पहले विजय प्राप्ति के लिए शस्त्रों की पूजा करते थे। तभी से शस्त्र पूजन की परंपरा का विधान शुरू हुआ जो आज भी सभी क्षत्रियों द्वारा किया जाता है। जिनके घर में पुराने जमाने के अस्त्र और शास्त्र रखे हुए होते हैं, वह भी दशहरे के दिन इसकी पूजा बड़ी धूमधाम से करते हैं।

दुओं और क्षत्रियों के लिए दशहरे का दिन बहुत बड़ा और शुभ माना गया है। दशहरे के दिन ही बहुत से क्षत्रिय परिवारों के द्वारा अपने कुलदेवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है। बहुत से क्षत्रिय परिवारों का यह भी मानना है कि उनके घरों में पूजा के स्थान पर रखे गए पुराने अस्त्र और शस्त्र में ही उनके कुल देवी देवता का वास है, जिसे वह दशहरे के दिन साफ कर उनकी पूजा करते हैं।

भारतीय सेना करती है शस्त्र पूजन

शस्त्र पूजन की विधि प्राचीन काल से चली आ रही है। प्राचीन समय में राजा अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए इस दिन शस्त्र पूजा किया करते थे। ठीक वैसे ही हमारी भारतीय सेना भी हर साल दशहरे के दिन शस्त्र पूजा करती है। इस पूजा का उद्देश्य सीमा की सुरक्षा में देवी का आशीर्वाद प्राप्त करना है