सनातन हिंदू परंपरा में शैव-वैष्णव और शक्ति की पूजा का सबसे अधिक महत्व धर्म ग्रंथों में बताया गया है। शक्ति पूजा का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता कि शक्ति के बिना जीवन-यात्रा संभव ही नहीं।
हां, एक ओर शारीरिक शक्ति होती है, तो दूसरी ओर मानसिक शक्ति। इन दोनों से भी बढ़कर होती है आत्मिक-शक्ति। मां भवानी जो आदि शक्ति हैं। जिनकी आराधना के बिना कोई भी अनुष्ठान संपन्न नहीं माना जाता है।
आदि शक्ति के रूप में प्रसिद्ध मां पार्वती का हृदय अपने भक्तों के लिए अति निर्मल होता है। ऐसा कहा जाता है कि माता पार्वती भक्तों द्वारा की गई उपासना से अति प्रसन्न होती हैं।
आज हम आपको इस आर्टिकल में शक्ति स्वरूपा मां पार्वती जो सबके दुख हर लेती हैं, उनके जन्म की कथा के बारे में बताएंगे। इसके साथ ही माता पार्वती की पूजा विधि और महत्व के बारे में भी जानकारी देंगे।
शास्त्रों में माता के बारे में क्या लिखा है?
भागवत पुराण में माता पार्वती के बारे में बताया गया है कि, उन्हें दुर्गा काली का रूप माना जाता है। हिंदू धर्म में महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सौभाग्य के लिए तीज का व्रत और करवा चौथ का व्रत रखती हैं, लेकिन इन व्रत के अलावा माता पार्वती के कुछ ऐसे मंत्र हैं जो उनके प्रिय और बेहद प्रसिद्ध हैं।
मां पार्वती को इन उपायों से करें प्रसन्न…
- शुक्रवार को माता पार्वती जी की पूजन-भक्ति को सबसे फलदायी माना जाता है। इसके लिए सबसे पहले भगवान गणेश जी का पूजन करना जरूरी होता है तत्पश्चात माता पार्वती के साथ भगवान भोलेनाथ का आह्वान करना चाहिए।
- माता पार्वती को पुष्प अर्पित करें साथ ही उन्हें इत्र भी लगाएं और सोलह श्रृंगार करें। खासतौर पर सिंदूर और बिंदी तो अवश्य ही लगाना चाहिए।
- दीप-धूप और नैवेद्य समर्पित कर भक्ति भाव से माता पार्वती जी की आरती करें और उन्हें प्रसाद चढ़ाएं।
ऊं उमामहेश्वराभ्यां नम:
ऊँ गौरये नम:
मंत्र का जाप भी करें।
माता पार्वती के जन्म की कथा…
माता पार्वती जी का जन्म हिम नरेश हिमवान (पहाड़ों के स्वामी) तथा उनकी पत्नी मैनावती के घर हुआ। देवी पार्वती के पिता हिमालय के अवतार थे। उमा, गौरी, अंबिका, भवानी आदि नामों से भी देवी पार्वती को पुकारा जाता है। देवी पार्वती शक्ति का अवतार तथा भगवान शिव की पत्नी हैं।
देवी पार्वती का जन्म पहले देवी सती के रूप में हुआ था। देवी सती प्रजापति दक्ष की पुत्री थी। देवी सती का विवाह भगवान शिव से हुआ। एक बार प्रजापति दक्ष ने महायज्ञ करवाया जिसमें उन्होंने सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया।
परन्तु, अपने दामाद शिव को उन्होंने महायज्ञ के लिए आमंत्रित नहीं किया। इस बात से क्रोधित होकर देवी सती अपने पिता दक्ष के पास पहुंच गयी। लेकिन दक्ष ने भगवान शिव के विषय में देवी सती से अपमानजनक बातें कही। जिस कारण देवी सती ने वहीं यज्ञ कुंड में अपनी देह त्याग दी।
देवी सती ने देह त्यागते समय भगवान शिव से वर माँगा कि वह जन्म-जन्म के लिए शिवजी के चरणों से जुड़ी रहें। इसी कारण उनका जन्म हिमाचल में पार्वती के रूप में हुआ। पहाड़ों के स्वामी यानी कि पर्वत राज के घर उनका जन्म हुआ इसलिए उनका नाम पार्वती रखा गया।
माना जाता है कि, जब देवी पार्वती का जन्म हुआ तब से वहां की नदियों में पवित्र जल बहता है तथा सभी पशु पक्षी सुखी रहते हैं।
एक दिन नारद जी हिम नरेश के घर पधारे। तब हिम नरेश ने अपनी पुत्री पार्वती को उनके समक्ष प्रस्तुत किया और उनसे देवी पार्वती के गुण तथा दोष जानने चाहे।
तब नारद जी ने रहस्य युक्त कोमल वाणी में कहा कि कन्या सब गुणों की खान है तथा स्वभाव से सुन्दर, सुशील तथा समझदार है। यह अपने पति को सदैव प्यारी रहेंगी। यह सारे जगत में पूज्य होंगी।
साथ ही नारद जी ने ये भी बताया कि इनके पति में कुछ अवगुण भी होंगे। इनके पति योगी, जटाधारी, निष्काम, नग्न तथा अमंगल वेष वाले होंगे। यह सुनकर देवी पार्वती तो मन ही मन प्रसन्न हुईं।
क्योंकि वे जानती थी कि उनके पति तो शिव ही हैं। परन्तु उनके माता पिता को यह सुनकर दुःख हुआ तथा उन्होंने नारद जी से इसका उपाय जानना चाहा। तब नारद जी ने कहा कि विधाता का लिखा हुआ बदला नहीं जा सकता।
परन्तु ये सारे अवगुण सदगुण बन सकते हैं, अगर देवी पार्वती का विवाह भगवान शिव से हो जाये। क्योंकि ये सारे गुण भगवान शिव में मौजूद हैं। परन्तु भगवान शिव को प्रसन्न करना आसान नहीं है। परन्तु घोर तप कर के उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है। ऐसा कहकर तथा सबको आशीर्वाद देकर नारद जी वहां से चले गये।
नारद जी के परामर्श से देवी पार्वती ने तप आरम्भ किया। देवी पार्वती का तप बहुत कठोर था। कुछ दिन उन्होंने जल और वायु का भोजन किया और कुछ दिन कठोर उपवास किए। जो बेल पत्र सूखकर पृथ्वी पर गिरते थे 3000 वर्ष उन्हीं का सेवन किया।
देवी पार्वती का घोर तप देखकर आकाश से आवाज़ आयी- हे पर्वत राज की कुमारी! सुन तेरा मनोरथ सफल हुआ। अब तुझे शिवजी मिलेंगे। यह सुनकर देवी पार्वती प्रसन्न हो गयी और उनका शरीर हर्ष से पुलकित हो गया।