राखी: जानिए, राखी का महत्व और भाई-बहन के पवित्र बंधन के बारे में

सनातन हिंदू धर्म में भाई-बहन का रिश्ता सब रिश्ते-नातों में सबसे बड़ा माना जाता है। भाई-बहन का वात्सल्य और स्नेह इतना पवित्र और प्रगाढ़ होता है। कि इस रिश्ते की उपमा किसी भी रिश्ते से नहीं की जा सकती। 

भाई और बहन एक दूजे के पर्याय हैं। भाई के लिए बहन की हमेशा चिंता बनी रहती है तो वहीं बहन भले की भाई से कोसों दूर क्यों न हो, लेकिन ऐसा कोई दिन कभी बकाया नहीं जाता होगा जिस दिन बहन अपने भाई का याद न करे। 

यह रिश्ता निस्वार्थ प्रेम की अटूट निष्ठा का प्रतीक कहा जा सकता है। कभी भी बहन अपने भाई से कुछ नहीं मांगती और वहीं भाई जीवन भर बहन को हमेशा सम्मान-मान के साथ घर बुलाता है बहन के हर दुख को दूर करने लिए हमेशा तत्पर रहता है।

a person wearing bracelets

राखी का महत्व

राखी या रक्षा सूत्र जो रेशम के महज धागे से बना हुआ होता है। यह डोर भले ही पतली सी क्यों हो, लेकिन इस धागे का बंधन इतना अटूट और विश्वसनीय होता है । राखी का  पारिवारिक बंधनों को मज़बूत करती है और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देती है। 

यह सिर्फ़ एक धागा नहीं है; यह प्रेम, सुरक्षा और एकता का प्रतीक है।  प्यार और कर्तव्य का यह पारस्परिक आदान-प्रदान भाई-बहन के बंधन को मजबूत करता है।

“रक्षा बंधन” का समझें मतलब

“रक्षा बंधन” शब्द का अर्थ है “सुरक्षा का बंधन”, जिसमें “रक्षा” का अर्थ है सुरक्षा और “बंधन” का अर्थ है बंधन। 

इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी के रूप में जाना जाने वाला एक पवित्र धागा बांधती हैं, जो उनके भाइयों की भलाई के लिए उनके प्यार और प्रार्थनाओं का प्रतीक है, और भाइयों द्वारा अपनी बहनों की रक्षा करने की आजीवन प्रतिज्ञा है।

राखी के दिन की रस्में 

a lit candle on a plate

राखी के दिन भाई-बहन पारंपरिक पोशाक पहनते हैं। यह रस्म आमतौर पर बहन द्वारा आरती (एक औपचारिक पूजा) करने, अपने भाई के माथे पर तिलक (सिंदूर का निशान) लगाने और उसकी कलाई पर राखी बांधने से शुरू होती है। फिर वह उसे मिठाई खिलाती है और बदले में भाई उसे उपहार देता है और उसकी रक्षा करने का वादा करता है।

राखी की पौराणिक कथा का संदर्भ

द्रौपदी और कृष्ण 

भगवान श्री कृष्ण और द्रौपदी के भाई-बहन का रिश्ता हर किसी हिंदू धर्मावलंबी का याद होगा। महाभारत महाकाव्य में भगवान श्री कृष्ण और द्रौपदी के भाई-बहन की कथा का वर्णन विस्तार से मिलता है। 

जब द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की कलाई पर पट्टी बांधने के लिए अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़ा, तो उन्होंने बदले में उनकी रक्षा करने की कसम खाई थी। और जब पांचों पांडव जुए में द्रौपदी को दांव पर लगा चुके थे।

जैसे ही दुशासन ने भरी राजसभा में द्रौपदी का चीर हरण कर अपमान करना चाहा, तब उनकी लाज बचाने भगवान श्री कृष्ण ने बहन द्रौपदी की साड़ी को इतना बढ़ाया की दुशासन थककर हार गया।