जानिए राधा रानी और श्रीकृष्ण की पूजा विधि और महत्व

वृन्दावनेश्वरी राधा कृष्णो वृन्दावनेश्वरः।

जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम॥

अर्थ: श्रीराधारानी वृन्दावन की स्वामिनी हैं और भगवान श्रीकृष्ण वृन्दावन के स्वामी हैं, इसलिये मेरे जीवन का प्रत्येक-क्षण श्री राधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो।

राधा कृष्ण अर्थात प्रेम की पराकाष्ठा, जहां कृष्ण, वहां राधा। भगवान श्रीकृष्ण का नाम ही राधा के नाम से जुड़ा हुआ है। लोक व्यवार में जब भी लोग आपस में मिलते है तो अभिवादन स्वरूप राधे कृष्ण, राधे श्याम कहते हैं।

इसे कृष्ण और राधा के प्रेम की ताकत कह लें या भौतिकता से दूर आध्यात्म और आंतरिक मिलन की मिसाल कह लें, एक दूसरे के साथ न होने पर भी भगवान कृष्ण और राधा एक ही है। उनके प्रेम की मिसाल दी जाती है।

राधा और कृष्ण का प्रेम इस लोक का नहीं बल्कि पारलौकिक है। राधा-कृष्ण को अगर हम एक-दूसरे के पूरक कहें तो गलत नहीं होगा क्योंकि जब-जब भगवान कृष्ण का नाम आता है तब-तब राधा जी का जिक्र भी अवश्य किया जाता है।

श्रीराधा-कृष्ण पूजा विधि

सबसे पहले प्रातः काल स्नान आदि से निवृत होकर आप स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर राधा रानी व श्रीकृष्ण जी के समक्ष व्रत का संकल्प करें। इसके बाद पूजा विधि प्रारम्भ करें। इस क्रम में सबसे पहले राधारानी और श्रीकृष्ण की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराकर वस्त्र पहनाएं व उनका श्रृंगार करें। 

फिर मंडप के नीचे मंडल बनाकर उसके मध्यभाग में मिट्टी या तांबे का कलश स्थापित करें। कलश पर तांबे का पात्र रखें और इस पर मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद राधारानी और श्री कृष्ण जी का षोडशोपचार से पूजन-अर्चन करें। इस क्रम में धूप, दीप, अक्षत, पुष्प, फल, नैवेद्य और दक्षिणा आदि अर्पित करें।

सनातन धर्म में बुधवार के दिन जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की पूजा की जाती है। शास्त्रों में निहित है कि बुधवार के दिन श्रीकृष्ण और श्रीजी की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण होती हैं। 

अगर आप भी राधारानी की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो आज पूजा के समय इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। इस स्तोत्र के पाठ से जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संताप दूर हो जाते है।

श्री राधा कृष्ण स्तोत्र का करें पाठ

वन्दे नवघनश्यामं पीतकौशेयवाससम्। सानन्दं सुन्दरं शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृतेः परम् ॥ 1 ॥

राधेशं राधिकाप्राणवल्लभं वल्लवीसुतम् । राधासेवितपादाब्जं राधावक्षस्थलस्थितम् ॥ 2 ॥

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राधानुगं राधिकेष्टं राधापहृतमानसम् । राधाधारं भवाधारं सर्वाधारं नमामि तम् ॥ 3 ॥

राधाहृत्पद्ममध्ये च वसन्तं सन्ततं शुभम् । राधासहचरं शश्वत् राधाज्ञापरिपालकम् ॥ 4 ॥

ध्यायन्ते योगिनो योगान् सिद्धाः सिद्धेश्वराश्च यम् । तं ध्यायेत् सततं शुद्धं भगवन्तं सनातनम् ॥ 5 ॥

निर्लिप्तं च निरीहं च परमात्मानमीश्वरम् । नित्यं सत्यं च परमं भगवन्तं सनातनम् ॥ 6 ॥

यः सृष्टेरादिभूतं च सर्वबीजं परात्परम् । योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ॥ 7 ॥

बीजं नानावताराणां सर्वकारणकारणम् । वेदवेद्यं वेदबीजं वेदकारणकारणम् ॥ 8 ॥

योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् । गन्धर्वेण कृतं स्तोत्रं यः पठेत् प्रयतः शुचिः ।

इहैव जीवन्मुक्तश्च परं याति परां गतिम् ॥ 9 ॥

हरिभक्तिं हरेर्दास्यं गोलोकं च निरामयम् । पार्षदप्रवरत्वं च लभते नात्र संशयः ॥ 10 ॥

श्री कृष्ण पूजा में राधा रानी का महत्व

भगवान श्री कृष्ण की 16108 रानियां थीं, लेकिन हर मंदिर में, हर मूर्ति और हर तस्वीर में कृष्ण अपनी पत्नियों के साथ नहीं बल्कि श्रीराधा रानी के साथ रहते हैं। 16108 रानियों पर एक मात्र राधा का प्रेम भारी पड़ जाता है।

कृष्ण अगर शरीर हैं तो राधा आत्मा हैं।  कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं। उनमें से एक कहानी के मुताबिक, कान्हा के मथुरा जाने से पहले एक बार राधा रानी ने कृष्ण से पूछा कि वह उनसे विवाह क्यों नहीं कर सकते? 

इस पर कृष्ण ने कहा कि कोई अपनी आत्मा से विवाह करता है क्या। श्री कृष्ण के इस जवाब से स्पष्ट है कि वह राधा जी से इतना प्रेम करते थे कि उनके लिए राधा उनका हृदय व आत्मा बन गईं थीं, जो हमेशा उनके साथ रहती थीं।