श्री कृष्ण जन्माष्टमी की कथा और महत्व

a painting of a baby krishna for janmastami

भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव नन्दनन्दनम्।

सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं अनङ्गरङ्गसागरं नमामि कृष्णनागरम्॥

सनातन हिंदू धर्म में भगवान श्री कृष्ण का स्थान सर्वोपरि है। भगवान कृष्ण जी की जो भक्ति करता है वह निश्चित ही फलदायी साबित होती है। श्री कृष्ण जी भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। 

यहां तक कि, जब भगवान कृष्ण ने व्रज भूमि में लीलाएं करने के लिए अवतार लिया। तो, स्वयं भगवान शिव उनके दर्शनों की अभिलाषा मन में लेकर द्वार पर भिक्षुक के वेश में उनके दर्शनों के लिए पधारे थे। 

भगवान कृष्ण आध्यात्म की पराकाष्ठा माने जाते हैं। जिन्होंने उनके विराट स्वरूप को समझ लिया मानो उन्हें पा लिया। गीता में दिए उनके उपदेश शांति और मोक्ष के पथ को प्रशस्त करते हैं। 

आज हम आपको कृष्ण जन्माष्टमी की कथा एवं उसके महत्व के बारे में बताने वाले हैं।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व

ईश्वरः परमः कृष्णः सच्चिदानन्दविग्रहः।

अनादिरादिर्गोविन्दः सर्वेकारणकारणम्।।

अर्थ: भगवान् तो कृष्ण हैं, जो सच्चिदानन्द स्वरुप हैं। उनका कोई आदि नहीं है, क्योंकि वे प्रत्येक वस्तु के आदि हैं। भगवान गोविंद समस्त कारणों के कारण हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी पर्व हिंदू धर्मावलंबियों का एक प्रमुख त्योहार है। जिसे कृष्ण जन्माष्टमी, गोकुलाष्टमी, कृष्णाष्टमी या श्रीजयंती के रूप में भी जाना जाता है। जन्‍माष्‍टमी का पर्व हर साल भाद्र मास के कृष्‍ण पक्ष की अष्‍टमी तिथि को मनाया जाता है। 

जन्‍माष्‍टमी पर भगवान कृष्‍ण के बालरूप की पूजा की जाती है और देश भर में कृष्‍ण जन्‍मोत्‍सव धूमधाम से मनाया जाता है। मान्‍यता है कि इस दिन भगवान कृष्‍ण के लड्डू गोपाल रूप की पूजा करने से आपके घर में संपन्‍नता बढ़ती है और भगवान कृष्‍ण आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। 

साल 2024 में जन्माष्टमी कब मनाई जाएगी?

वैदिक कालक्रम के मुताबिक साल 2024 में भगवान कृष्ण का 5251वां जन्मदिन मनाया जाएगा। इस वर्ष जन्‍माष्‍टमी 26 और 27 अगस्‍त 2024 को मनाई जाएगी। सबसे बड़ा जन्माष्टमी उत्सव मथुरा, वृन्दावन और द्वारका में आयोजित किया जाता है। 

ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि कि कलियुग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में अट्ठाइसवें युग में देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए थे। यदि दिन या रात में कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करें।

भगवान श्री कृष्ण का जन्म कहां हुआ था?

भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इसी कारण हर साल इस दिन श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। 

इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा विधिवत तरीके से की जाती है। इसके साथ ही माना जाता है कि पूजा के साथ बाल गोपाल के जन्म के समय की  कथा अवश्य सुननी चाहिए। इससे सुख-समृद्धि, धन वैभव की प्राप्ति होती है।

भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कथा

भागवत पुराण के अनुसार, द्वापर युग में मथुरा नगरी पर कंस नाम का एक अत्याचारी राजा शासन करता था। अपने पिता राजा उग्रसेन को गद्दी से हटाकर वो स्वयं राजा बन गया था। मथुरा की प्रजा उसके शासन में बहुत दुखी थी। 

लेकिन वो अपनी बहन देवकी को बहुत प्यार करता था। उसने देवकी का विवाह अपने मित्र वासुदेव से कराया। जब वो देवकी और वासुदेव को उनके राज्य लेकर जा रहा था तभी एक आकाशवाणी हुई – ‘हे कंस! जिस बहन को तू उसके ससुराल छोड़ने जा रहा है, उसके गर्भ से पैदा होने वाली आठवीं संतान तेरी मौत का कारण बनेगी।’

आकाशवाणी सुनकर कंस क्रोधित हो उठा और वसुदेव को मारने बढ़ा। तब देवकी ने अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए कहा कि उनकी जो भी संतान जन्म लेगी, उसे वो कंस को सौंप देगी। कंस ने बहन की बात मान कर दोनों को कारागार में डाल दिया। 

कारागार में देवकी ने एक-एक करके सात बच्चों को जन्म दिया, लेकिन कंस ने उन सभी का वध कर दिया। हालांकि सातवीं संतान के रूप में जन्में शेष अवतार बलराम को योगमाया ने संकर्षित कर माता रोहिणी के गर्भ में पहुंचा दिया था। इसलिए ही बलराम को संकर्षण भी कहा जाता है।

आकाशवाणी के अनुसार, माता देवकी की आठवीं संतान रूप में स्वयं भगवान विष्णु कृष्ण अवतार के रूप में पृथ्वी पर जन्मे थे। उसी समय माता यशोदा ने एक पुत्री को जन्म दिया। इस बीच कारागार में अचानक प्रकाश हुआ और भगवान श्री हरि विष्णु प्रकट हुए। 

उन्होंने वसुदेव से कहा कि आप इस बालक को अपने मित्र नंद जी के यहां ले जाओ और वहां से उनकी कन्या को यहां लाओ। भगवान विष्णु के आदेश से वसुदेव जी भगवान कृष्ण को सूप में अपने सिर पर रखकर नंद जी के घर की ओर चल दिए। 

भगवान विष्णु की माया से सभी पहरेदार सो गए, कारागार के दरवाजे खुल गए, यमुना ने भी शांत होकर वसुदेव जी के जाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। वसुदेव भगवान कृष्ण को लेकर नंद जी के यहां सकुशल पहुंच गए और वहां से उनकी नवजात कन्या को लेकर वापस आ गए। 

जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म की सूचना मिली। वह तत्काल कारागार में आया और उस कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटकना चाहा। लेकिन वह कन्या उसके हाथ से निकल कर आसमान में चली गई। 

फिर कन्या ने कहा- ‘हे मूर्ख कंस! तुझे मारने वाला जन्म ले चुका है और वह वृंदावन पहुंच गया है। अब तुझे जल्द ही तेरे पापों का दंड मिलेगा।’ वह कन्या कोई और नहीं, स्वयं योग माया थीं।