शारदीय नवरात्रि 2024: अष्टमी और नवमी कब है? शुभ मुहूर्त और महत्व

नवरात्रि के पर्व पर भक्तजन माता दुर्गा की पूजा करते हुए

शारदीय नवरात्रि हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो देवी दुर्गा और उनकी नौ दिव्य शक्तियों की पूजा के लिए समर्पित है। नवरात्रि के नौ दिनों में अष्टमी और नवमी विशेष महत्व रखते हैं, क्योंकि यह दिन देवी के सबसे शक्तिशाली रूपों को समर्पित होते हैं और नवरात्रि के समापन के दिन होते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि शारदीय नवरात्रि 2024 में अष्टमी और नवमी कब हैं, उनके शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्व के बारे में।

शारदीय नवरात्रि 2024 में अष्टमी और नवमी कब हैं?

नवरात्रि के पर्व पर भक्तजन माता दुर्गा की पूजा करते हुए
Credit: HarGharPuja

शारदीय नवरात्रि 2024 की शुरुआत 3 अक्टूबर से होगी और इसका समापन 12 अक्टूबर को होगा। अष्टमी और नवमी की तिथियां इस प्रकार हैं:

  • अष्टमी तिथि (दुर्गा अष्टमी):
    अष्टमी 10 अक्टूबर 2024 (गुरुवार) को मनाई जाएगी।
  • नवमी तिथि (महानवमी):
    नवमी 11 अक्टूबर 2024 (शुक्रवार) को मनाई जाएगी।

अष्टमी और नवमी पूजा के शुभ मुहूर्त

अष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त:

  • अष्टमी तिथि प्रारंभ: 9 अक्टूबर 2024 को रात 9:53 बजे
  • अष्टमी तिथि समाप्त: 10 अक्टूबर 2024 को शाम 7:58 बजे
  • कन्या पूजन और संधि पूजा के लिए सबसे शुभ समय 10 अक्टूबर 2024 के दिन में है। संधि पूजा अष्टमी और नवमी के संधि काल में होती है, जब देवी दुर्गा का सबसे शक्तिशाली रूप पूजित होता है।

नवमी पूजा का शुभ मुहूर्त:

  • नवमी तिथि प्रारंभ: 10 अक्टूबर 2024 को शाम 7:58 बजे
  • नवमी तिथि समाप्त: 11 अक्टूबर 2024 को शाम 4:31 बजे
  • नवमी पूजा 11 अक्टूबर 2024 के ब्रह्म मुहूर्त या विजय मुहूर्त में की जानी चाहिए, जो देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने का सबसे श्रेष्ठ समय माना जाता है।

अष्टमी और नवमी का महत्व

दुर्गा अष्टमी (महाष्टमी)

नवरात्रि के आठवें दिन महा गौरी की पूजा की जाती है
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अष्टमी, जिसे महाष्टमी भी कहा जाता है, नवरात्रि के सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। इस दिन भक्त महागौरी की पूजा करते हैं, जो देवी दुर्गा का आठवां रूप है। महागौरी शुद्धता, शांति और ज्ञान की प्रतीक हैं। ऐसा माना जाता है कि महागौरी की पूजा करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

अष्टमी के दिन कन्या पूजन या कुमारी पूजन का विशेष महत्व है, जिसमें नौ कन्याओं को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक मानकर पूजा की जाती है। कन्याओं को विशेष भोजन कराया जाता है और उन्हें नए वस्त्र एवं उपहार भेंट किए जाते हैं। यह पूजा नारी शक्ति के शुद्धतम रूप को पूजित करती है, जिससे घर में समृद्धि और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।

अष्टमी का एक और महत्वपूर्ण अनुष्ठान संधि पूजा है, जो अष्टमी और नवमी के संधि काल में की जाती है। यह माना जाता है कि इस समय देवी दुर्गा ने चंड-मुंड राक्षसों का वध किया और चामुंडा का रूप धारण किया, जो देवी के सबसे शक्तिशाली रूपों में से एक है।

महानवमी

नवरात्रि के नवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है
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नवमी, जिसे महानवमी भी कहा जाता है, नवरात्रि का अंतिम दिन है और इसके बाद विजयादशमी (दशहरा) का पर्व मनाया जाता है। नवमी को सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है, जो देवी दुर्गा का नौवां रूप हैं। सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियों और ज्ञान की देवी मानी जाती हैं। इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है ताकि जीवन में इच्छाओं की पूर्ति हो सके और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हो सके।

नवमी के दिन भक्त विशेष हवन (यज्ञ) करते हैं, जो नवरात्रि की पूजा का समापन करता है। नवमी हवन को शुद्धिकरण का अनुष्ठान माना जाता है, और इसे करने से घर से सभी नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है और शांति एवं समृद्धि आती है।

भारत के कई हिस्सों, विशेषकर बंगाल में, नवमी पूजा के बाद दुर्गा विसर्जन की शुरुआत होती है, जिसमें देवी दुर्गा की मूर्ति को जल में विसर्जित किया जाता है। यह देवी दुर्गा के स्वर्ग लौटने का प्रतीक होता है और भक्त अगले वर्ष उनके पुनः आगमन की प्रतीक्षा करते हैं।

अष्टमी और नवमी का धार्मिक महत्व

  1. आध्यात्मिक विकास: अष्टमी और नवमी आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं, क्योंकि इन दिनों देवी के साथ गहरा संबंध स्थापित करने का अवसर मिलता है।
  2. शक्तिशाली अनुष्ठान: इन दिनों में कन्या पूजन, संधि पूजा और हवन जैसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान किए जाते हैं, जिससे अत्यधिक आशीर्वाद और शुद्धिकरण की प्राप्ति होती है।
  3. असुरों पर विजय: अष्टमी और नवमी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक हैं, जहां अष्टमी पर देवी दुर्गा ने चंड और मुंड जैसे असुरों का वध किया और नवमी पर बुराई का पूर्ण रूप से नाश किया गया।
  4. इच्छाओं की पूर्ति: अष्टमी और नवमी के दिन महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा करने से भक्तों की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है और जीवन में सफलता एवं खुशहाली आती है।

शारदीय नवरात्रि की अष्टमी और नवमी का धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्व है। ये दोनों दिन नवरात्रि की पूजा का चरम बिंदु होते हैं, जहां कन्या पूजन, संधि पूजा और हवन जैसे अनुष्ठानों के द्वारा देवी दुर्गा की असीम कृपा प्राप्त की जाती है। अष्टमी और नवमी के सटीक तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि का पालन करने से भक्तों को देवी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो जीवन में शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक विकास लाता है।