अक्षय तृतीया को हिंदू धर्म में एक बहुत ही अत्यंत शुभ तिथि माना जाता है, ऐसा माना जाता है कि इस दिन किए गए पुण्य कार्य, दान, और पूजा का फल कभी समाप्त नहीं होता। इस दिन से जुड़ी अनेक धार्मिक घटनाएं हैं और उन्हीं में से एक घटना है अक्षय पात्र की जो महाभारत काल से जुड़ी हुई है। आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं कि अक्षय तृतीया और अक्षय पात्र (Akshaya Patra) का आपसी संबंध क्या है और यह कथा आज भी क्यों लोगों को प्रेरित करती है।
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अक्षय तृतीया का धार्मिक महत्व (Akshaya Tritiya Mahatva)
अक्षय तृतीया हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष के तृतीया को मनाई जाती है। यह दिन श्रीहरि विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस तिथि को लेकर ऐसा मन्ना है कि इस दिन बिना किसी मुहूर्त के मांगलिक कार्य, जैसे विवाह, गृह प्रवेश, व्यापार आरंभ, संपत्ति खरीदना, आदि किए जा सकते हैं। वर्ष २०२५ में अक्षय तृतीया ३० अप्रैल को मनाई जाएगी जो कि बुधवार का दिन है।
पांडवो के साथ छल (Pandavo ko mila vanvas)
जब पांडवों ने खांडव वन को इन्द्रप्रस्थ जैसे सुन्दर नगर में बदल दिया और वहां शाशन करने लगे उसी के बाद से कौरवों में सबसे बड़े भाई दुर्योधन का मन इंद्रपस्थ को कब्जाने का होने लगा। अब क्यूंकि पांडव ताकतवर थे इसलिए उसके मामा ने पांडवो को छल से द्युत क्रीड़ा में हराने का सुझाव दुर्योधन को दिया। पांडवों और कौरवों के बिच द्युत का खेल हुआ जिसमे पांडव सब कुछ हार गए और उन्हें १२ वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास् पर जाना पड़ा।
जब पांडव वनवास में थे तो उन्हें अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उसी दौरान एक दिन कौरवों ने उनकी परेशानी और बढ़ाने के लिए ऋषि दुर्वासा और उनके साथ अनेक ऋषि-मुनि, ब्राह्मण और उनके शिष्यों को पांडवों के पास वन में भोजन करने के लिए कहा। जब यह बात द्रौपदी को ज्ञात हुई तो वह यह जानकर अत्यंत चिंतित हो गईं क्योंकि वन में सीमित संसाधनों के बीच इतने लोगों को भोजन कराना संभव नहीं था।
श्री कृष्ण ने दिया अक्षय पात्र (Shree Krishna ne dia Akshaya Patra)

ऋषि दुर्वासा को उनके अधिक क्रोधी स्वाभाव के लिए जाना जाता था। दुर्वासा ऋषि को भगवान शिव का ही एक अवतार माना जाता है। ऐसा मानना था कि दुर्वासा ऋषि प्रस्सन भी थोड़ी ही सेवा से हो जाया करते थे किन्तु वे क्रोधित भी छोटी छोटी बात पर हो जाया करते थे और श्राप दे दिया करते थे और इसीलिए बड़े बड़े राजा महाराजा उनसे भयभीत रहते थे।
द्रौपदी ने सहायता के लिए मन ही मन में श्रीकृष्ण का ध्यान किया और श्री कृष्ण वहां तुरंत प्रकट हो गए। श्रीकृष्ण से कहा कि उन्हें बहुत भूख लगी है उन्हें कुछ खाने को दिया जाए। इस पर द्रौपदी ने अपनी विवशता और चिंता उन्हें बताई और कहा कि खाने को उनके गहरा कुछ नहीं है और ऋषि दुर्वासा और पधार रहे हैं भोजन के लिए। श्रीकृष्ण ने मुस्कराते हुए द्रौपदी से कहा कि तुम्हारे पास जो भी हो मुझे वही खाने को दे दो , इस पर द्रौपदी ने खाने के पात्र को देखा तो उसमे चावल का एक दाना बचा हुआ था, द्रौपदी ने वही चावल का दाना श्री कृष्ण को बड़े प्रेम भाव के साथ परोसा।
श्री कृष्ण ने भी उस एक दाने को बड़े भाव के साथ खाया और कहा कि उस एक दाने से ही उनका पेट भर गया और उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम्हारा ये पात्र कभी खाली नहीं होगा और न ही तुम्हारे घर भोजन की कोई कमी होगी। इसके बाद उन्होंने उस पात्र को “अक्षय पात्र” का नाम दिया — एक ऐसा पात्र जो कभी खाली नहीं होता।
अक्षय पात्र: आशीर्वाद का प्रतीक

यह पात्र न केवल पांडवों के लिए भोजन की समस्या का समाधान बना, बल्कि यह श्रीकृष्ण की कृपा और सच्ची भक्ति का प्रतीक भी है। पांडवों ने इस पात्र की सहायता से वनवास के समय में सभी आगंतुकों को सम्मानपूर्वक भोजन कराया और धर्म का पालन किया।
एक कहानी ऐसी भी है कि पांडवो को यह पात्र भगवान सूर्य देव से प्राप्त हुआ था जब सूर्य देव ने पांडवों के सबसे बड़े भ्राता युधिष्ठिर की भक्ति और आराधना से प्रस्सन होकर उन्हें ये पात्र वरदान स्वरुप दिए था।
अक्षय तृतीया और अक्षय पात्र का संबंध (Akshaya Tritiya and Akshaya Patra)
मान्यता यह है कि श्रीकृष्ण ने पांडवों को यह अक्षय पात्र अक्षय तृतीया के दिन ही प्रदान किया था। इसलिए यह दिन ‘अक्षय पुण्य’, ‘अक्षय दान’ और ‘अक्षय भंडार’ का प्रतीक बन गया। यही कारण है कि इस दिन भोजन, वस्त्र, धन, अन्न, जल आदि का दान अत्यंत शुभ माना जाता है क्योंकि यह सभी अक्षय फल प्रदान करते हैं।
आज के समय में अक्षय पात्र का अर्थ

आज के समय में भी ‘अक्षय पात्र’ केवल एक पौराणिक पात्र नहीं है, बल्कि यह संवेदना, सेवा और सांझा संस्कृति का प्रतीक है। आधुनिक भारत में ‘अक्षय पात्र फाउंडेशन’ जैसे संगठन इसी भावना से प्रेरित होकर गरीब बच्चों को मध्याह्न भोजन प्रदान करते हैं जिससे भूख, शिक्षा और समानता की दिशा में योगदान मिल सके।