हमारे भारतीय समाज में ऐसी अवधारणा रही है कि महिलाएं पुरुष से कमजोर होती है और इसीलिए हम देखते हैं कि महिलाओं को हमारे समाज में कई प्रकार के भेदभावों का सामना करना पड़ता है। कहने को तो आज के समय में हम 21 वीं शताब्दी में जी रहे हैं जहाँ ऐसा माना जाता है कि महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चल रही है परन्तु वास्तविकता अभी भी यही है कि महिलाओं को अभी भी समाज के किसी न किसी हिस्से में किसी न किसी प्रकार के भेदभाव का सामना आज भी करना पड़ता है।
अब यूं तो हमारे वेदों में, पुराणो में कई सारे श्लोक, कई सारी कहानियाँ ऐसी पढ़ने को मिल जाएंगी जो कि महिलाओं के उत्थान की बातें करती है, जिन्हें पढ़कर समझा जा सकता है कि वैदिक काल में महिलाओं को बड़ा ऊँचा स्थान दिया जाता था, उनका स्थान पुरुषों के बराबर ही था। तो आज के इस लेख में हम भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप के माध्यम से समझेंगे कि कैसे भगवान शिव स्वयं महिलाओं को सम्मान देने के पक्ष में थे।
कौन हैं अर्धनारीश्वर भगवान?
अर्धनारीश्वर भगवान शिव का एक उभयलिंगी1 रूप है, जो शिव और शक्ति का मिश्रण है। यह भगवान् शिव का ऐसा रूप है जिसमें उनका आधा शरीर पुरुष का है और आधा शरीर महिला का। भगवान शिव जो स्वयं सर्वव्यापी हैं, अविनाशी हैं, उनका यह रूप पुरुष और महिला के बीच पूर्ण संतुलन को दर्शाता है, जिन्हें “पुरुष” और “प्रकृति” कहा जाता है । शिव का यह रूप पुरुष सिद्धांत को शक्ति के सार के रूप में प्रतीकित करता है। अर्धनारीश्वर को अर्धनारीश, अर्धयुवतीश्वर, अर्धगौरीश्वर, गौरीश्वर, नरनारी, परंगदा, और अम्मियप्पन के नाम से भी जाना जाता है।
शैव सिद्धांत के अनुसार, अर्धनारीश्वर परमशिव के 64 रूपों में से एक है। भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में कई मंदिरों में देखे जाने वाले रूप के अनुसार, अर्धनारीश का दायां आधा हिस्सा पुरुष (शिव) का है और बाईं आधा हिस्सा स्त्री (शक्ति) का प्रतिनिधित्व करता है।
कैसा दिखता है अर्धनारीश्वर का स्वरुप?
अर्धनारीश का दाहिनी हिस्सा शिव के पारंपरिक आभूषणों से सजा हुआ रहता है जैसे कि बालों को जटाओं में बाँधकर रखा गया है। माथे पर आधा तीसरा नेत्र दिखाई देता है। कमर को बाघ की खाल से ढका गया है। बालों से गंगा बहती हुई दिखती है और गले में आभूषण के रूप में सर्प दिखाई देता है वहीँ आकृति के बाईं हिस्से में अच्छी तरह से सँवारे और गाँठे हुए बाल दिखाई देते हैं। माथे पर आधा तिलक, आँख में काजल दिखता है। पूर्ण रूप से विकसित स्तन दिखाई देते है । कमरबंध में बंद साड़ी का परिधान दिखाई देता है। पायल और हिना से सजे हुए पैर दिखाई देते है ।
यह एक ऐसी आकृति है, जो पुरुष और महिला के बीच समानताएँ और अंतर दोनों को दिखाती तो है, फिर भी इस आधार पर दृढ़ खड़ी है कि दोनों समान हैं। यह प्रतीकात्मक आशय दर्शाता है कि पुरुष और महिला अविभाज्य हैं।
पुरुष और प्रकृति यूँ तो एक दूसरे से एक दम भिन्न हैं फिर भी, वे एक-दूसरे से मेल खाते हैं क्योंकि जहाँ एक तरफ पुरुष ब्रह्मांड की स्थिर शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं वहीं, प्रकृति सक्रिय शक्ति है; जहाँ पुरुष संभावित ऊर्जा को दर्शाते हैं वहीं प्रकृति गतिशील ऊर्जा है, जहाँ पुरुष असीमित हैं वहीँ प्रकृति उस असीमता को सीमित बनाती है, इस प्रकार हम कह सकते हैं कि दोनों एक-दूसरे को गले लगाते हुए ब्रह्मांड को उत्पन्न करते हैं और बनाए रखते हैं।
शिव आध्यात्मिक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और शक्ति भौतिक क्षेत्र का, यह दर्शाता है कि दोनों को जीवन में उत्साह लाने के लिए सह-अस्तित्व में होना चाहिए। कई संस्कृतियाँ मानती हैं कि अर्धनारीश्वर अनंत वृद्धि और उर्वरता का प्रतीक है।
अर्धनारीश्वर कि उत्पत्ति
अब यूं तो भगवान शिव के अर्द्धनारीश्वर रूप में प्रकट होने के पीछे कई सारी कहानियाँ प्रचलित है किंतु इस लेख में हम उस कहानी को समझेंगे जिसका वर्णन स्वयं शिव पुराण में दिया गया है।
सृष्टि की उत्पत्ति के समय ब्रह्मा जी को सृष्टि का निर्माण करने का काम मिला जिसमें कि पृथ्वी पर जीव जंतु बनाने का काम भी था, इस काम को पूरा करने के लिए ब्रह्मा जी ने अपने चार मानस पुत्र उत्पन्न किए और उनसे पृथ्वी पर जीवन बनाने के लिए कहा परन्तु इन मानस पुत्रों ने ब्रह्मा जी की कोई भी सहायता पृथ्वी पर जीवन का निर्माण करने में नहीं की। ब्रह्मा जी इस बात से बहुत ज्यादा विचलित हुए और वह अपनी परेशानी लेकर सृष्टि के पालनहार यानि कि भगवान विष्णु के पास पहुंचे।
भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को इस सन्दर्भ में भगवान शिव के पास जाने के लिए कहा और उनसे कहा कि आप भगवान शिव से सृष्टि के निर्माण के लिए मदद मांगिए । भगवान विष्णु की बात सुनकर ब्रह्मा जी भगवान शिव के पास गए परंतु भगवान शिव अपनी साधना में लीन थे तो ब्रह्मा जी उन्हें साधना से जगाने के लिए तपस्या करने लगे। कई वर्षों तक तपस्या करने के बाद भगवान शिव प्रसन्न हुए, उन्होंने अपनी आँखें खोली और उन्होंने ब्रह्मा से कहा कि मैं जानता हूँ कि तुम मेरे पास किस सन्दर्भ में मदद मांगने के लिए आए हो।
ब्रह्मा जी ने कहा कि मुझे एक ही काम मिला है और उसका पालन भी मैं सार्थक रूप से नहीं कर पा रहा।
तो भगवान शिव ब्रह्मा जी को समझाते हैं कि आप जिस प्रकार से सृष्टि का निर्माण या जीवन का निर्माण करने के बारे में सोच रहे हो वह तरीका गलत है। आप सिर्फ पुरुष तत्व बनाते हुए चले जा रहे हो और इस तरीके से जीवन का निर्माण नहीं हो पायेगा। जीवन का निर्माण करने के लिए पुरुष तत्व के अलावा स्त्री तत्व की भी आवश्यकता होगी। ब्रह्मा जी यह सारी बात समझ नहीं पाए तो भगवान शिव ने उनके समक्ष अपना एक ऐसा रूप प्रकट किया जिसमें कि उनका आधा भाग शिव का था और आधा शक्ति का था। भगवान शिव के इसी रूप को अर्द्धनारीश्वर कहा जाने लगा।
अर्धनारीश्वर भगवान ने ब्रह्मा जी को बताया कि पृथ्वी पर जीवन का निर्माण पुरुष तत्व और स्त्री तत्व के मिलन से ही संभव होगा अर्थात पृथ्वी पर जीवन बनाने के लिए शिव और शक्ति दोनों की आवश्यकता होगी। यह सुनने के बाद ब्रह्मा जी ने मन्नु और ब्राह्मी की उत्पत्ति की जो कि इस पृथ्वी के सबसे पहले पुरुष और सबसे पहली स्त्री थीं। कहते हैं कि मनु और ब्राह्मी के मैथुन से ही इस पृथ्वी पर जीवन का निर्माण शुरू हुआ और क्योंकि आगे चलके सबका जन्म मनु कि वजह से ही हुआ या मनु ही सबके पिता थे इसीलिए हमको मनुष्य कहा जाने लगा।
अर्धनारीश्वर की तरह, कोई भी मानव अपने आप में अकेला पूर्ण नहीं होता। अर्धनारीश्वर का सिद्धांत दर्शाता है कि विपरीतताओं का मेल जीवन की सच्ची लय पैदा करता है, क्योंकि शिव शक्ति के बिना शव हैं और शक्ति शिव के बिना अशक्त है। शक्ति सृजन करती है, और शिव उस सृजन का स्रोत हैं। लिंग पुराण में भक्तों द्वारा अर्धनारीश्वर की पूजा करने की बात कही जाती है ताकि भक्त संसार के प्रलय के बाद शिव में लीन हो सकें और इस प्रकार मोक्ष प्राप्त कर सकें। “अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्र”, जो आदि शंकराचार्य द्वारा रचित है, भगवान शिव कि इस अर्धनारीश्वर रूप को समर्पित एक लोकप्रिय भजन है।
- ऐसे जीव जिनमें पुल्लिंग और स्त्रीलिंग दोनों के चिह्न या लक्षण हों। ↩︎