Harihar Bhagvan: 3 Mind-Blowing Facts You Must Know about Shiva’s avatar 

Harihara, the combined form of Lord Shiva and Lord Vishnu

Harihar Avatar of Lord Shiva: हरिहर हिंदू धर्म में एक संयुक्त देवता हैं, जो दो प्रमुख देवताओं, विष्णु (हरि) और शिव (हर) के पहलुओं को मिलाते हैं। “हरिहर” नाम “हरि,” जो विष्णु का एक नाम है, और “हर,” जो शिव का एक नाम है, का संयोजन है। हरिहर को शंकरनारायण के नाम से भी जाना जाता है (जहाँ “शंकर” शिव हैं, और “नारायण” विष्णु हैं)। हरिहर को शंकरनारायण के नाम से भी जाना जाता है (जहाँ “शंकर” शिव हैं, और “नारायण” विष्णु हैं)।

हिंदू धर्म की विविधता विभिन्न आस्थाओं और परंपराओं को प्रोत्साहित करती है, जिनमें से दो महत्वपूर्ण और बड़ी परंपराएँ विष्णु और शिव से संबंधित हैं। कुछ संप्रदाय विष्णु (और उनके अवतार जैसे राम और कृष्ण) को सर्वोच्च भगवान के रूप में मानते हैं, जबकि अन्य शिव (और उनके विभिन्न अवतार जैसे महादेव और पशुपति) को सर्वोच्च मानते हैं। पुराण और विभिन्न हिंदू परंपराएँ शिव और विष्णु दोनों को एक ही ब्रह्म के विभिन्न रूपों के रूप में मानती हैं। हरिहर इस विचार का एक प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व है।

हरिहर कि उत्पत्ति की कहानी 

हरीहर की उत्पत्ति को लोक कथाओं के अनुसार इस कहानी के माध्यम से समझा जा सकता है। एक बार ब्रह्मा जी के दाहिने हाथ के अंगूठे से उत्पन्न उनके पुत्र दक्ष ने एक महायज्ञ का आयोजन किया। इस महायज्ञ में दक्ष ने सभी को आमंत्रित किआ।  इस यज्ञ में सप्तऋषि भी पधारे एवं सप्तऋषिओं ने ज़ोर ज़ोर से मंत्रों का उच्चारण करना शुरू किया। ऐसा कहते हैं कि इन मंत्रों के उच्चारण की ध्वनि इतनी तेज थी कि वह पूरे ब्रह्मांड में गूंजने लगी।

भगवान शिव जो कि कैलाश पर्वत पर अपनी साधना में लीन थे, इन मंत्रों की ध्वनि वहाँ तक भी पहुंची। अब यह ध्वनि इतनी तेज थी कि इस ध्वनि के कारण भगवान शिव की साधना या भगवान शिव का ध्यान भंग होने लगा। जब भगवान शिव का ध्यान टूटा तो वह उस स्थान पर पहुंचे जहाँ दक्ष इस यज्ञ को आयोजित कर रहा था।

भगवान शिव ने बड़े ही गुस्से में इस यज्ञ को तहस नहस कर दिया।भगवान शिव के क्रोध के कारण दक्ष और सप्तऋषि एवं दूसरे देवी देवता तो वहां से भाग गए  किंतु भगवन विष्णु जो की सृष्टि के पालनकर्ता हैं वह इसके खिलाफ़ खड़े हो गए क्यूंकि यज्ञों के कारण ही देवताओं का भरण पोषण होता है और बदले में देवता मनुष्यों पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं अब ऐसे में अगर कोई यज्ञ को ही भंग कर देगा तो सृष्टि का संतुलन बिगड़ जाएगा।

bhagvan shiv ka harihar roop
Credit: Temple Purohit

कहते हैं कि वहाँ भगवान विष्णु और भगवान शिव में एक परस्पर युद्ध शुरू हो गया। इन दोनों के युद्ध के कारण पूरा ब्रह्मांड डोलने लगा। ब्रह्मा जी इस बात से बहुत भयभीत हुए क्योंकि सृष्टि का निर्माण तो अभी पूर्ण रूप से शुरू भी नहीं हुआ था और उससे पहले ही इन दोनों के युद्ध से सृष्टि का निर्माण खतरे में था।

तो ब्रह्मा जी इन दोनों से बोले आप दोनों एक दूसरे के बराबर है, आप दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, कोई किसी से कम नहीं है, कोई किसी से ज्यादा नहीं है। तो इस युद्ध में कोई कभी हारेगा नहीं और कोई कभी जीतेगा नहीं यह युद्ध ऐसे ही निरंतर चलता रहेगा , किन्तु तब भी इस युद्ध का कोई परिणाम न  निकलेगा, किंतु आप लोगों के युद्ध के कारण जो ब्रह्मांड अभी पूरे तरीके से बना भी नहीं है वह ब्रह्मांड नष्ट अवश्य हो जाएगा।

तो हे प्रभु, या तो इस युद्ध को अभी विराम दें है या फिर अभी के अभी ही इस ब्रह्मांड को नष्ट कर दें। भगवान शिव और भगवान विष्णु को ब्रह्मा जी को  ब्रह्मा जी की बात समझ में आयी और उन्होंने इस युद्ध को विराम दिया।

तब ब्रह्मा जी ने दोनों से कहा क्युकि आप दोनों ने इस युद्ध को विराम देकर मेरे कष्टों को हरा ( कम किया है) इसलिए विष्णु जी अब से आपको हरी और शिव जी आपको अब से हर के नाम से भी जाना जाएगा और आप दोनों को साथ में हरिहर कहा जाएगा, जिसका अर्थ होगा भक्तों के दुःख दर्द या कष्टों को हरने वाले।  तभी हम देखते हैं कि भगवान नारायण को हरी विष्णु एवं भगवान शिव हर हर भोले या हर हर महादेव भी कहा जाता है। 

हरिहर मूर्ति का स्वरूप (Harihar Form)

harihar is one of many shiva avatars
Credits: Tales of Sanatan

हरिहर मूर्ति के रूप में, आमतौर पर भगवान शिव को बाईं ओर और भगवान विष्णु को दाईं ओर दिखाया जाता है। हालांकि, ऐसी छवियाँ भी हैं जिनमें शिव को दाईं ओर और विष्णु को बाईं ओर दिखाया गया है, इसलिए इन मूर्तियों में एकरूपता नहीं है ऐसा कहना सार्थक ही होगा। 

भगवान शिव के रूप को त्रिशूल (त्रिशूल) धारण करते हुए दिखाया जाता है और भगवान विष्णु के रूप को सुदर्शन चक्र और शंख धारण करते हुए दिखाया जाता है। कुछ बहुत ही दुर्लभ छवियों में, भगवान विष्णु को गदा भी धारण करते हुए दर्शाया गया है एवं भगवान शिव को डमरू धारण करते हुए दर्शाया गया है। कुछ मूर्तियों में भगवान शिव का तीसरा नेत्र भी दर्शाया गया है।

स्वामी शिवानंद के अनुसार, शिव और विष्णु वास्तव में एक ही हैं। वे सर्वव्यापी परमात्मा या परब्रह्म के विभिन्न पहलुओं को दिए गए अलग अलग नाम हैं।

“शिवस्य हृदयं विष्णुः, विष्णोश्च हृदयं शिवः”

विष्णु शिव का हृदय हैं और इसी प्रकार शिव विष्णु का हृदय हैं।

इसी प्रकार एक और प्रसिद्ध श्लोक है 

“शिवाय विष्णु रूपाय, विष्णवे शिव रूपिणे”

यह भी बताता है कि शिव और विष्णु एक ही हैं।

शिव और विष्णु ने हमेशा एक-दूसरे का सम्मान किया है

शिव और विष्णु के आपसी संबंध और उनके द्वारा एक-दूसरे को दिए गए सम्मान का सुंदर उदाहरण रामायण और श्रीमद्भागवत पुराण की कथाओं में मिलता है। इन कथाओं में हम देखते हैं कि भगवान शिव ने हनुमान के रूप में भगवान राम की मदद की—राक्षसों से लड़ने और रावण के कब्जे से सीता माता को छुड़ाने में। इसी प्रकार, महाभारत के युद्ध में, जब पांडवों और कौरवों के बीच संघर्ष हुआ, तब भी हनुमान ने कृष्ण और अर्जुन की सहायता की।

शिव और राम का संबंध

श्री रामचरितमानस में भी एक कथा वर्णित है। रावण की सेना के साथ युद्ध शुरू होने से पहले और समुद्र पर पुल बनाने से पहले, भगवान राम ने समुद्र के किनारे एक शिवलिंग बनाकर भगवान शिव का आशीर्वाद मांगा। आज हम इस शिवलिंग को “रामेश्वरम” के नाम से जानते हैं, जो भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

शिव और कृष्ण का संबंध

त्रेतायुग के साहित्य के अनुसार, एक बार भगवान कृष्ण के बाल रूप को देखने की इच्छा से भगवान शिव वृंदावन आए। वह एक साधु के रूप में वेश बदलकर माता यशोदा के पास गए और उनसे बालकृष्ण को देखने की अनुमति मांगी। लेकिन भयभीत यशोदा मां ने उन्हें मना कर दिया। इससे भगवान शंकर बहुत आहत हुए और भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगे, “हे प्रभु, कृपया अपनी माता को मना लें कि वह मुझे आपका बाल रूप दिखाने दें, नहीं तो मैं बिना देखे कैलाश वापस नहीं जाऊंगा।” इस पर भगवान विष्णु ने माया रची ताकि भगवान शिव श्रीकृष्ण के बाल रूप का दर्शन कर सकें।

इसी प्रकार, एक अन्य कथा में बताया गया है कि भगवान शिव ने एक बार गोपी का रूप धारण किया ताकि वह उस रासलीला में भाग ले सकें, जिसे भगवान श्रीकृष्ण वृंदावन की गोपियों के साथ किया करते थे। वास्तव में, वृंदावन में “गोपीश्वर महादेव” नामक एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है, जो भगवान शिव के गोपी रूप को समर्पित है।


भगवान शिव के हरिहर रूप में शिव और विष्णु, दोनों महान शक्तियों की एकता का दर्शन होता है। यह रूप हमें सिखाता है कि सृष्टि, पालन और परिवर्तन आपस में जुड़े हुए हैं और यह सब मिलकर संसार के संतुलन को बनाए रखते हैं। हरिहर रूप हमें एकता और सामंजस्य का संदेश देता है और हमें यह समझने को प्रेरित करता है कि सब कुछ एक ही दिव्य ऊर्जा का हिस्सा है। हरिहर की पूजा करके हम अपने जीवन में शांति, समझ और भक्ति ला सकते हैं।

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