शिव और पार्वती के विवाह की पौराणिक कथा

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Story of Shiv Parvati Vivah: भारतीय पौराणिक ग्रंथों में भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की कथा बहुत ही अद्भुत, रोमांचक एवं प्रेरणादायक है। आइए, जानते हैं कि भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह कैसे संपन्न हुए और यह कथा हमें क्या सिखाती है।

पार्वती जी के पिछले जन्म की कहानी

माता पार्वती का जन्म राजा हिमावन और रानी मैना के घर हुआ था। अपने पिछले जन्म में उनका नाम सति था और वे भगवान शिव की पत्नी थीं जिन्होंने अपने और अपने पति के आत्मसम्मान के लिए स्वयं को अपने पिता राजा दक्ष के यहाँ यज्ञ में आहुति के रूप में समर्पित कर दिया था। जब सति ने पार्वती के रूप में जन्म लिया तब भी उनके पिछले जन्म की सभी बातें उन्हें याद रहीं और इसीलिए माता पार्वती बचपन से ही भगवान शिव को अपने स्वामी के रूप में स्वीकार कर चुकी थीं। उन्होंने अपने माता-पिता से कहा कि वे केवल शिव को ही पति रूप में स्वीकार करेंगी।

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Credit: Ramcharitmanas.info

शिव को प्रस्सन करने के लिए पार्वती जी का तप

किन्तु शिव और पार्वती का विवाह ऐसे ही नहीं हो गया, शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए पार्वती जी घोर तपस्या की। उन्होंने अन्न-जल को त्याग दिया और बस पत्तों पर ही निर्वाह करना शुरू कर दिया। जब इस तप से भी शिव प्रस्सन न हुए तब पार्वती जी ने कुछ समय बाद निर्जल और निराहार रहकर कठोर तप करना शुरू कर दिया। उनकी इस तपस्या से सारे देवता भी प्रभावित हुए और उन्होंने भगवान शिव से पार्वती के तप को स्वीकार करने का अनुरोध किया।

पार्वती जी की परीक्षा लेने के लिए शिव स्वयं उनके समक्ष एक ब्राह्मण के रूप में प्रकट हुए और शिव की बुराइयां करने लगे, इसके बाद भी पार्वती जी अपनी भक्ति में अडिग रहीं अंत में शिव ने उन्हें अपने वास्तविक रूप के दर्शन देकर उनके विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार किया।

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भगवान शिव की अति अलौकिक बारात

इस विवाह की सबसे अनोखी, अलौकिक एवं विचित्र बात थी शिव जी की बारात। जब सभी देवताओं को ये मालूम हुआ की शिव राजा हिमवान के द्वार बारात लेकर जा रहे हैं तो सभी देवता बड़े उत्साहित हुए किन्तु जब सब ने शिव जी की बारात देखी तो सभी देवता भी चकित रह गए।

यह एक ऐसी बारात थी जिसमें शिव न तो किसी रथ पर सवार थे और न ही कोई राजसी वस्त्र पहने हुए थे। वे तो अपने गले में नागों की माला, शरीर पर भस्म लगाए, जटाओं में गंगाजल धारण किए, बैल नंदी पर सवार होकर विवाह मंडप की ओर बढे आ रहे थे। उनके साथ चलने वाली बारात भी किसी राजा की बारात जैसी नहीं थी अपितु एक दम ही अलग थी।

इस बारात में देवता, ऋषि-मुनि तो थे ही परंतु मुख्य रूप से शिव के गणों का समूह था। भूत, प्रेत, पिशाच, कंकाल, अघोरी, सिद्ध, योगी—सब मिलकर एक अजीबोगरीब दृश्य उत्पन्न कर रहे थे। कोई नाच रहा था, कोई अट्टहास कर रहा था, तो कोई विचित्र ध्वनियां निकाल रहा था। कहीं डमरू बज रहा था, तो कहीं शंख और नगाड़ों की गूंज से आकाश गूंजायमान हो रहा था।

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Credit: AmarUjala

भगवान विष्णु और ब्रह्मा भी इस अद्भुत बारात में शामिल थे, लेकिन जब वे इस विचित्र संगम को देखते, तो मंद-मंद मुस्कुराने लगते। सभी देवता इस अप्रत्याशित बारात को देखकर विस्मित थे, लेकिन वे जानते थे कि भगवान शिव स्वयं अद्भुत हैं, तो उनकी बारात भी अनोखी ही होगी।

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हिमालय राज और माता मैना की चिंता

जब यह विचित्र बारात राजा हिमावन के द्वार पर पहुंची, तो वहां उत्सव का वातावरण था। नगर को सुंदर तोरणों से सजाया गया था, मंगल गीत गाए जा रहे थे, और चारों ओर खुशियों का माहौल था। लेकिन जैसे ही माता मैना ने शिव जी और उनके बारातियों को देखा, उनका मन विचलित हो गया।

वे सोचने लगीं, “यह कौन सा दूल्हा है? जिसने न तो कोई सुंदर वस्त्र धारण किया है, न कोई आभूषण! इसका पूरा शरीर भस्म से ढका हुआ है, और इसकी बारात तो किसी अघोरी साधु की टोली जैसी लग रही है!”

उन्होंने पार्वती जी से कहा, “बेटी, क्या तुम सच में इस भस्मधारी, नागों से सुशोभित, रुद्रस्वरूप योगी से विवाह करना चाहती हो?”

यह सुनकर पार्वती जी मुस्कुरा दीं और बड़े प्रेम से उत्तर दिया, “माँ, यही मेरे स्वामी हैं, यही मेरे आराध्य हैं। इनका प्रेम संसार की किसी भी वस्तु से श्रेष्ठ है।”

तब भगवान विष्णु आगे बढ़े और माता मैना को सांत्वना दी। उन्होंने भगवान शिव से अनुरोध किया कि वे भगवान शिव को किसी राजकुमार की तरह नए दूल्हे के रूप में सजाना चाहते हैं, भगवान शिव ने भी इससे मना नहीं किया और अंत में विष्णु भगवान ने शिव को एक दूल्हे की तरह सजाया। उनका यह रूप इतना आकर्षक था कि माता मैना की सारी चिंताएं समाप्त हो गईं।

शिव-पार्वती विवाह का आध्यात्मिक महत्व (Shiv Parvati Vivah Importance)

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Credit: Her Zindagi

भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह विधि-विधान से संपन्न हुआ। देवताओं ने पुष्पवर्षा की, गंधर्वों ने मधुर संगीत बजाया और संपूर्ण ब्रह्मांड में इस दिव्य युगल के मिलन का उत्सव मनाया गया।

यह कथा हमें यह सिखाती है कि सच्चा प्रेम किसी भी कठिनाई से गुजर सकता है। पार्वती जी की तपस्या हमें यह प्रेरणा देती है कि श्रद्धा और समर्पण से कुछ भी संभव हो सकता है। वहीं, शिव का अघोरी रूप यह दर्शाता है कि सच्चा प्रेम किसी के बाहरी स्वरूप से नहीं, बल्कि उसकी आत्मा से किया जाना चाहिए।