श्री कृष्ण जन्माष्टमी की तैयारी कैसे करें? रीति-रिवाज के साथ भक्ति का अद्भुत संगम

a group of people around shri krishna with a pot of makkhan

वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम्।

देवकी परमानंदं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्।।

भावार्थ – मैं वसुदेव के पुत्र, देवकी के परमानन्द, कंस और चाणूर का मर्दन करने वाले समस्त विश्व के गुरू भगवान श्री कृष्ण की वन्दना करता हूं।

भगवान श्री कृष्ण जगत पूज्य हैं जिनकी आराधना समस्त कष्टों को दूर करने वाली है। जिनकी कृपा दृष्टि भक्तों पर हमेशा  बनी रहती है। भगवान श्रीकृष्ण परम आनंद स्वरुप हैं, जिनकी शरण में जाने से कर्तृत्व का अहंकार, मोह-माया, मद, मत्सर और लोभ दूर भाग जाते हैं। 

कृष्ण शब्द मूल धातु ‘कृष’ से बना है जिसका अर्थ है ‘भू’, जो सभी अस्तित्व का आश्रय है, और शब्द ‘न’ जिसका अर्थ है ‘निवृत्ति’ या परम आनंद का रूप। संयुक्त रूप से, वे कृष्ण शब्द बनाते हैं, जो परम ब्रह्म, सर्वोच्च निरपेक्ष सत्य का प्रतीक है।

‘कृष्ण शब्द का अर्थ है ‘स्वयं-अस्तित्वमान आनंद।’ वेदांत ने इसे आनंदम ब्रह्म के रूप में परिभाषित किया है।

समस्त सुखों के दाता भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को मनाने की परंपरा देश भर में हैं। लेकिन, री​ति-रिवाज के भेद से विधि और सामग्री में कुछ अंतर पाया जाता है। इसलिए, इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि, जन्माष्टमी पर्व को मनाने की तैयारी कैसे करें?

श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व का महत्व क्या है?

भगवान श्री कृष्ण जी की जन्माष्टमी मनाना आनंद का उत्सव है। कृष्ण जन्माष्टमी हमें भगवान के नजदीक ले जाने का माध्यम हैं। भगवान श्री कृष्ण का हर रूप पूजनीय है। बाल स्वरूप में भगवान श्री कृष्ण की आराधना सारे कष्टों को हरने में समर्थ हैं। 

जो जन्माष्टमी के त्योहार पर भगवान की भक्ति के आनंद  में डूबा उन्होंने श्रीहरि को पा लिया। भगवान श्रीकृष्ण गोपियों के साथ रास रचाते हैं , तो वहीं अपने मित्र अर्जुन को परम सच्चिदानंद स्वरूप आत्मबोध का उपदेश देते हैं। 

इन दो रूपों में भी भगवान श्री कृष्ण एक हैं। उनका ध्येय एक है भगवत स्वरूप में रमना ही श्री कृष्ण की भक्ति का फल है।

जन्माष्टमी पर्व के अनुष्ठान और रीति-रिवाज

1. पूजा सामग्री

भगवान कृष्ण की पूजा सामग्री में एक खीरा, एक चौकी, पीला साफ कपड़ा, बाल कृष्ण की मूर्ति, एक सिंहासन, पंचामृत, गंगाजल, दीपक, दही, शहद, दूध, दीपक, घी, बाती, धूपबत्ती, गोकुलाष्ट चंदन, अक्षत (साबुत चावल), तुलसी का पत्ता, माखन, मिश्री, भोग सामग्री।

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2. बाल गोपाल की श्रृंगार सामग्री

बाल गोपाल के जन्म के बाद उनके श्रृंगार के लिए इत्र, कान्हा के नए पीले वस्त्र, बांसुरी, मोरपंख, गले के लिए वैजयंती माता, सिर के लिए मुकुट, हाथों के लिए चूड़ियां रखें।

3. शंख की ध्वनि

भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय शंख और घंटा बजाने से वातावरण की शुद्धि होती है। नकारात्मक ऊर्जा समाप्त कर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। माथे में चंदन लगाने से मस्तिष्क शांत व संतुलित होता है।  

4. मंत्रों का जप

जन्माष्टमी के दिन भक्त पूरे दिन निरंतर जप में लगे रहते हैं। वे भगवान को प्रसन्न करने के लिए मंत्र और श्लोक का जाप करते हैं। हर जगह धार्मिक माहौल रहता है। भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति पर फूलों की वर्षा के साथ-साथ भगवान राधा-कृष्ण के 108 नामों का जाप किया जाता है।

कैसे मनाएं श्री कृष्ण जन्माष्टमी?

जन्माष्टमी के दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान के बाद कान्हा के लिए रखे जाने वाले व्रत को विधि-विधान से करने का संकल्प लें। इसके बाद अपने मंदिर की सफाई करके सभी देवी-देवताओं के साथ भगवान कृष्ण का धूप-दीप दिखाकर पूजन करें। 

इसके बाद पूरे दिन व्रत रखें और मन में कृष्ण के मंत्र मन में जपते रहें। जन्माष्टमी के व्रत में दिन में फलाहार ले सकते हैं। इसके बाद रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की सारी तैयारी करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण को दूध, दही, शर्करा, शहद, घी, गंगाजल आदि से स्नान कराएं और उन्हें पोंछने के बाद वस्त्र आदि पहनाकर सिंहासन पर विराजित करें। 

इसके बाद भगवान श्री कृष्ण की प्रिय चीजें जैसे बांसुरी, मोर मुकुट, वैजयंती माला, तुलसी की माला आदि से उनका श्रृंगार करें। फिर अपने लड्डू गोपाल का केसर, हल्दी आदि से तिलक करें और पुष्प, प्रसाद आदि चढ़ाएं। 

इसके बाद अर्द्धरात्रि के समय का इंतजार करते हुए भजन और कीर्तन करें और जैसे ही कान्हा का जन्म हो उन्हें एक बार फिर भोग आदि लगाकर उनकी आरती और जय-जयकार करें। अंत में कान्हा के प्रसाद को अधिक से अधिक लोगों को बांटें और स्वयं भी ग्रहण करें।

दही हांडी की परंपरा

जन्माष्टमी पर दही हांडी का खास महत्व होता है. भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं की झांकियां दर्शाने के लिए दही हांडी मनाया जाता है। सनातन हिंदू धर्म में मान्यता है कि, घर में माखन चोरी के लिए मटकी फोड़ने से घर के दुख दूर हो जाते हैं और खुशियों का वास होता है।

पालना झुलाने की परंपरा

जन्माष्टमी के इस पावन पर्व पर भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप नटखट नंदलाला को पालने में झूला झूलाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही संतान प्राप्ति, दीर्घायु और सुख-समृद्धि का भी लाभ होता है।

देवकीसुतं गोविन्दम् वासुदेव जगत्पते।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।