हवन कुंड निर्माण के वैदिक नियम और प्रकार

भारतीय सनातन संस्कृति में हवन/यज्ञ का विशेष महत्व है। 

जन्मदिन से लेकर मृत्यु के बाद किए जाने वाले संस्कारों में भी हवन किया जाता है। ये हवन पूर्ण रूप से पारंपरिक विधि और प्रकार से किए जाते हैं। लेकिन, हवन की तैयारी के लिए के नियम भी उतने ही विशेष हैं। 

हवन की भूमि से लेकर हवन कुंड के भी कई प्रकार मनोकामनाओं के आधार पर तय किए गए हैं। हवन करने वाले आचार्य और विद्वान अपने यजमान की मनोकामना के आधार पर ही हवन की तैयारी शास्त्रीय विधि से करते हैं। 

लेकिन, कई बार हवन करने की इच्छा रखने वाले लोगों को पता नहीं होता है कि, हवन कैसे करते हैं या फिर हवन क्या है? इसलिए, अक्सर उन्हें इस जानकारी को सर्च करने के लिए इंटरनेट या आचार्यों के पास जाना पड़ता है। 

इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि, हवन कुंड निर्माण के वैदिक नियम और प्रकार क्या हैं? इसके अलावा, किस प्रकार के हवन कुंड में हवन करने से क्या लाभ मिलते हैं? 

हवन कुंड क्या होता है?

हवन कुंड का अर्थ है हवन की अग्नि का निवास-स्थान। ये वो स्थान है, जिसमें हवन की ​अग्नि जलाकर समिधा और हवन सामग्री की आहुतियां दी जाती हैं। हवन कुंड का निर्माण बहुत ही जटिल प्रक्रिया है।

हवन कुंड के निर्माण में वैदिक गणित, त्रिकोणमिति, ज्योतिष और कठोर वैदिक परंपराओं का पालन किया जाता है।  

हवन की भूमि कैसी होनी चाहिए?

हवन करने के लिए उत्तम भूमि को चुनना बहुत ही आवश्यक है। हवन के लिए सबसे उत्तम भूमि नदियों के किनारे की, मन्दिर की, संगम की, किसी उद्यान की या पर्वत के शिखर और ईशान कोण में बने हवन कुंड की मानी जाती हैं। 

हवन कुंड के लिए फटी हुई भूमि, केश युक्त भूमि तथा सांप की बाम्बी वाली भूमि को भी अशुभ माना जाता हैं।

यज्ञ कुण्ड के विभिन्न आकार और उनके उद्देश्य (Different Shapes Of Yagya Kund And Their Purposes)

यज्ञ कुंड का प्रकार यज्ञ के उद्देश्य के आधार पर तय किया जाता है, जबकि यज्ञ कुंड का आकार सीधे तौर पर दी जाने वाली आहुतियों की संख्या पर निर्भर करता है। 

इसके अलावा, किसी भी यज्ञ कुंड के निर्माण के दौरान सबसे पहले एक वृत्त बनाया जाता है जिसका पैरामीटर दी जाने वाली आहुतियों की संख्या के अनुसार तय किया जाता है, फिर एक विशेष यज्ञ कुंड का निर्माण किया जाता है। 

‘भविष्य पुराण’ और ‘कुंड मंडप सिद्धि’, दोनों पुस्तकों में कुल 10 प्रकार की आकृतियों का वर्णन किया गया है, जैसे 

  • गोलाकार
  • अर्धवृत्ताकार
  • योनि आकार
  • त्रिकोण आकार
  • कमल आकार
  • वर्ग आकार
  • पंचकोणीय आकार
  • षटकोणीय आकार
  • सप्तकोणीय आकार
  • अष्टकोणीय आकार 

अलग-अलग आकृतियों को विशिष्ट आध्यात्मिक और भौतिक उद्देश्यों के लिए निर्माण की सलाह दी जाती है। शास्त्रों के अनुसार, इनके बारे में अज्ञानता से मनचाहे परिणाम और यज्ञ के फल में कमी हो सकती है। 

क्र.सं.कुंड का नामआकार का प्रकारकुंड के आकार का उद्देश्य
1.वृत्ताकार कुंडगोलाकारशांति के लिए
2.अर्धचंद्राकारअर्धवृत्ताकारकल्याण के लिए
3.योनि कुंडयोनि आकारसंतान प्राप्ति तथा स्त्री रोगों के उपचार के लिए
4.त्रयस्रत्रिकोणीय आकारशत्रुओं पर विजय पाने के लिए
5.अब्ज कुंड (पद्म)कमल आकारस्वास्थ्य, शांति, धन, सकारात्मक परिणाम, वर्षा लाने के लिए
6.चतुरस्र कुंडवर्गाकारहर चीज के लिए
7.पंचास्र कुंडपंचकोणीय आकारशत्रु ऊर्जा से शांति के लिए
8.षडस्र कुंडषटकोणीय आकारउच्चाटन तथा मारण कर्म (शत्रुओं को परास्त करने के लिए)
9.सप्तक कुंडसप्तकोणीय आकारमनोवैज्ञानिक विकार (भूत दोष शांति) का इलाज करने के लिए
10.अष्टाश्र कुंडअष्टकोणीय आकारअच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए

वर्ण के अनुसार यज्ञ कुंड का आकार

वैदिक काल में, जाति व्यवस्था जन्म के आधार पर नहीं बल्कि कर्मों पर आधारित थी। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं, जहाँ एक वर्ण में जन्म लेने वाले व्यक्ति ने दूसरे वर्ग के कर्म को चुना।

फिर भी, प्रत्येक वर्ग के लिए अलग-अलग आध्यात्मिक और भौतिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है और इसलिए, अलग-अलग वर्गों के लिए अलग-अलग कुंड के आकार की सिफारिश की गई थी। इसके अलावा यह भी संकेत मिलता है कि उनकी वर्ग व्यवस्था के बावजूद यज्ञ उनके जीवन का अनिवार्य हिस्सा था।

‘शारदा तिलक’ पुस्तक में विभिन्न श्रेणी के लोगों द्वारा अलग-अलग यज्ञ कुंड के आकार के उपयोग का वर्णन इस प्रकार किया गया है। इसका मतलब है कि 

  1. ब्राह्मण को चौकोर आकार के कुंड (चतुर्भुज कुंड) में
  2. क्षत्रिय को वृत्ताकार कुंड (वृत्ताकार कुंड) में
  3. वैश्य को अर्धचंद्राकार कुंड (अर्धचंद्राकार कुंड) में
  4. शूद्र को त्रिकोण कुंड (त्रिकोण कुंड) में
  5. महिलाओं को योनि कुंड 

में यज्ञ करना चाहिए।

कितना बडा हो हवन कुंड?

वैदिक साहित्य में उल्लेख है कि कुंड का आकार आहुतियों की कुल संख्या पर निर्भर करता है। यज्ञ कुंड के आकार की गणना इसके निर्माण से पहले की जाती है। क्योंकि, ये अनिवार्य है कि यज्ञ के दौरान यह छोटा नहीं पड़ना चाहिए। इसके अलावा, ऐसी कोई स्थिति न आए कि यह भर जाए और इसके लिए मार्ग निकालना पड़े। 

अग्नि को बहुत पवित्र और दिव्य माना जाता है और इसका बहुत सम्मान किया जाना चाहिए। इसलिए ऋषियों ने पूरी प्रक्रिया के लिए बहुत बढ़िया गणित का इस्तेमाल किया। यानी यज्ञ कुंड में आहुतियों की मात्रा को समाहित करने की क्षमता होनी चाहिए। यज्ञ के अंत में, यज्ञ कुंड को कुल आकार और ऊंचाई का 2/3 भाग ही भरना चाहिए।

आहुतियों की कुल संख्या कुल आयतन तय करती है। इसलिए, साहित्य में आहुतियों की कुल संख्या और आवश्यक आकार के लिए वैदिक गणना का उल्लेख निम्नानुसार किया गया है।

शारदा तिलक, नामक प्राचीन भारतीय यज्ञ पुस्तक के एक श्लोक में कहा गया है कि यज्ञ कुंड के आकार पर विचार अग्नि में आहुतियों की संख्या के आधार पर किया जाना चाहिए। 

  • 10,000 आहुतियों के लिए भूहस्तमक कुंड (1 हाथ लंबा) पर्याप्त है।
  • 100000 आहुतियों के लिए द्युहस्तमक (2 हाथ लंबा) बनाना चाहिए।
  • 1000000 आहुतियों के लिए चतुरहस्त कुंड (4 हाथ लंबा) बनाना चाहिए  
  • अधिक आहुतियों के लिए अष्टहस्तमक कुंड (8 हाथ लंबा) बनाना चाहिए।

यहां ‘हाथ’ इकाई के रूप में प्रयुक्त हुआ है जो लम्बाई नहीं है। बल्कि क्षेत्रफल या आयतन को दर्शाता है तथा यह यज्ञ कुंड के निर्माण के लिए आवश्यक इकाई है।

यज्ञ कुंड के निर्माण की गणितीय इकाई

वैदिक काल में यज्ञ कुंड के निर्माण में गणितीय सूत्रों की विशेष इकाइयां होती थीं। जैसे, 

  • लिक्षा
  • युक
  • यव
  • अंगुल
  • हस्त

इन इकाइयों से महीन और जटिल आकार के यज्ञ कुंड के निर्माण में सहायता मिली। इन इकाइयों को आधुनिक इकाइयों में इस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है।

  • 8 लीक्ष = 1युक = 0.03125 सेमी = 0.01230316 इंच
  • 8 युका = 1 यव = 0.25 सेमी = 0.09842525 इंच
  • 8 यव = 1 अंगुल (यजमान की एक उंगली की अनुमानित चौड़ाई) = 2 सेमी = 0.787402 इंच
  • 24 अंगुल = 1 हस्त = 48 सेमी = 18.897648 इंच
  • 21 अंगुल = 1 रत्नी = 42 सेमी = 16.535442 इंच
  • 22 अंगुल = 1 आरत्नी = 44 सेमी = 17.322844 इंच

यज्ञ कुंड निर्माण के लिए ‘हस्त’ और ‘अंगुल’ मुख्य इकाई हैं। 1 हस्त 24 अंगुल के बराबर होता है। यह यज्ञ कुंड निर्माण में सभी प्रकार की गणनाओं के लिए एक आधार सूत्र है। शैलजकुमारश्रीवास्तव के शोध लेख में 1 अंगुल को 2.0 सेमी बताया गया है। मुंगेर योग प्रकाशन की पुस्तक में 1 अंगुल को 1.9 सेमी बताया गया है। 

इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि यज्ञ कुंड निर्माण की गणना के लिए उपयोग किया जाने वाला अंगुल यजमान (यजमान) के अंगूठे की चौड़ाई का माप है, जिसे अग्नि में आहुति देनी होती है। 

यह भी बताता है कि आहुति की कुल मात्रा यजमान की उंगली/अंगुल के आकार पर निर्भर करती है। यह यज्ञ कुंड निर्माण में प्रयुक्त सबसे बेहतरीन गणना थी।

आहुति की संख्याकुंड का पारंपरिक नामसामान्य शब्द और पारंपरिक इकाईकुंड का क्षेत्रफल
<50————-मुष्ठिमात्र————-
51-99————-कुहनी से कनिष्क तक————-
1000 तकभूहस्ततमकएक हाथ = 24 अंगुल576 अंगुल
10,000 तकद्विहस्ततमक2 हाथ = 34 अंगुल1152 अंगुल
1,00,000 तकअभिध्यहस्ततमक4 हाथ = 41 अंगुल2304 अंगुल
1 मिलियन (10,00,000) तकअंगस्थतमक6 हाथ = 58 अंगुल3456 अंगुल
10 मिलियन तक (1,00,00,000)अष्टहस्तमक8 हाथ = 63 अंगुल4608 अंगुल

यज्ञ कुण्ड निर्माण में मौलिक विचार और उनके गणितीय पहलू

भविष्य पुराण और शारदा तिलक (अध्याय 3 श्लोक 82-83) में वर्णित है – यदि, 

  • 50 से 99 आहुतियां देनी हों तो रतिप्रमाण कुण्ड (21 अंगुल)
  • 100 से 999 आहुतियां देनी हों तो अरतिप्रमाण कुण्ड (22 अंगुल)
  • 1000 से 9999 आहुतियां देनी हों तो 24 अंगुल (1 हस्त) कुण्ड
  • 10,000 से 99,999 आहुतियां देने हों तो दो हस्त कुण्ड
  • 100,000 से 999,999 आहुतियां देनी हों तो 4 हस्त कुण्ड
  • 10,00,000 से 99,999 आहुतियां देनी हों तो 6 हस्त कुण्ड 
  • 99,99,999 से अधिक आहुतियां देनी हों तो 8 हस्त कुण्ड

 बनाएं। सभी अलग-अलग आकार के यज्ञ कुंडों का आयतन एक जैसा है।

इन गणनाओं में सबसे दिलचस्प बात यह है कि आकार की परवाह किए बिना, समान मात्रा में आहुतियों के लिए आयतन एक जैसा रखा जाता है क्योंकि आहुतियों की संख्या आवश्यक कुल आयतन तय करती है।

कुंड के प्रत्येक आकार के लिए वृत्त का व्यास पहले ‘कुंड मंडप सिद्धि’ पुस्तक में वर्णित किया गया था। व्यास का उपयोग करके क्षेत्र की गणना करने के लिए वैदिक सूत्र भी पुस्तक में वर्णित है।

क्रमांकयज्ञ कुण्ड के आकार का नामवृत्ताकार (अंगुल.यव.युका) का व्यास = सेमी.वृत्त के व्यास (D2) के वर्ग को श्लोक में दिए गए भाजक से गुणा करेंगुणनफल को 10000 से भाग देंकुंड (अंगुल) का क्षेत्रफल
1.वृत्ताकार कुंड (वृत्त कुंड)(27.0.5) = 54.155 सेमी7854* D25756982/10000575.7
2.पद्म कुंड(27.0.5) = 54.155 सेमी7854* D25756982/10000575.7
3.अर्धचंद्र कुंड38.2.3 = 74.593 सेमी2927* D25759927.2/10000575.9
4.योनि कुंड30.2.0 = 60.5 सेमी6293.4* D25760000/10000576
5.त्रिकोण कुंड42.1.0 = 84.25 सेमी3247.4* D25760000/10000576
6.चतुरासर कुंड33.7.4 = 67.875 सेमी5000* D25760000/10000576
7.पंचासर कुंड31.1.0 = 62.25 सेमी5944/2* D25760000/10000576
8.षडसर कुंड29.6.0 = 59.5 सेमी6495* D25760000/10000575.9
9.सप्ताश्र कुंड29.0.0 = 58 सेमी6841* D25759266.7/10000576
10.अष्टाश्र कुंड28.4.0 = 57 सेमी7071* D25759329.4/10000575.9

यज्ञ कुंड का संरचनात्मक महत्व (Structural Importance of Yagya Kunda)

पंच कुण्डीय यज्ञ में आचार्य कुण्ड बीच में, चतुरस्र पूर्व में, अर्धचन्द्र दक्षिण में, वृत्त पश्चिम में और पद्म उत्तर में होता है। नव कुण्डीय यज्ञ में आचार्य कुण्ड मध्य में चतुरस्र कुण्ड पूर्व में, योनि कुण्ड अग्नि कोण में, अर्धचन्द्र दक्षिण में, त्रिकोण नैऋत्य में वृत्त पश्चिम में, षडस्र (षट् कोणीय) वायव्य में, पद्म उत्तर में, अष्ट कोण ईशान में होता है। 

हवन कुंड की बनावट

हवन कुंड में तीन सीढियां होती हैं, जिन्हें ‘मेखला’ कहा जाता हैं। हवन कुंड की इन सीढियों का रंग अलग–अलग होता हैं।

हवन कुंड की 

  • पहली सीढ़ी का रंग सफेद होता है।
  • दूसरी सीढ़ी का रंग लाल होता है।
  • अंतिम सीढ़ी का रंग काला होता है।

ऐसा माना जाता हैं कि हवन कुंड की इन तीनों सीढियों में तीन देवता निवास करते हैं। हवन कुंड की पहली सीढ़ी में विष्णु भगवान का वास होता है। दूसरी सीढ़ी में ब्रह्मा जी का वास होता है। तीसरी तथा अंतिम सीढ़ी में शिवजी का वास होता है।

कुण्ड के पिछले भाग में योनियां बनाई जाती हैं। इनके सम्बन्ध में कुछ विद्वानों का मत है। कि वह वाममार्गी प्रयोग है। योनि को स्त्री का मूत्रेन्द्रिय का आकार और उसके उपरिभाग में अवस्थित किये जाने वाले गोलकों को पुरुष अण्ड का चिह्न बना कर वे इसे अश्लील एवं अवैदिक भी बताते हैं। 

अनेक विद्वान यज्ञ कुण्डों में योनि-निर्माण के विरुद्ध भी हैं और योनि-रहित कुण्ड ही प्रयोग करते हैं। योनि निर्माण की पद्धति वेदोक्त है या अवैदिक, इस प्रश्न पर गम्भीर विवेचना की आवश्यकता है।

यज्ञ कुंड के डिजाइन और निर्माण के लिए बहुत वैज्ञानिक और कठोर गणितीय ज्ञान की आवश्यकता होती है। भारतीय ऋषियों ने बहुत ही बढ़िया गणितीय मॉडल के साथ यज्ञ कुंड निर्माण के विज्ञान को विकसित किया था और वे महान वैज्ञानिक थे। 

उन्होंने यज्ञ कुंड की तैयारी के लिए वैदिक गणितीय सूत्रीकरण प्रदान किया जो वर्तमान समय में भी सत्य है। आकार के बावजूद कुल आयतन और सतह क्षेत्र समान रहा। यज्ञ कुंड के विभिन्न आकार अलग-अलग उद्देश्य रखते हैं क्योंकि उनका उद्देश्य अलग-अलग यज्ञ कुंड आकृतियों की मदद से अलग-अलग ऊर्जा उत्पन्न करना था।

विशिष्ट उद्देश्यों के लिए विभिन्न आकृतियों के ऊर्जा विज्ञान और प्रोटोकॉल आधुनिक विज्ञान के अध्ययन के दायरे से बाहर हैं, लेकिन इस वैदिक ज्ञान की गहन जांच और आधुनिक कसौटी पर परीक्षण की आवश्यकता है।