एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रस्सन करने के लिए किया जाता है। चैत्र के महीने में जो एकादशी सबसे पहले आती है उसका नाम है पापमोचनी एकादशी। यह एकादशी पापों के नाश और मोक्ष प्राप्ति के लिए की जाती है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत और पूजा करने से व्यक्ति अपने जाने-अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति पा सकता है। इस लेख में हम जानेंगे पापमोचनी एकादशी 2025 की तिथि (Papmochani Ekadashi Kab Hai), इसका महत्व (Papmochani Ekadashi Vrat Katha), और इस दिन किए जाने वाले कार्य (Papmochani Ekadashi Me Kya Kare Kya Nahi)।
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पापमोचनी एकादशी 2025 कब है? (Papmochani Ekadashi Kab Hai)
हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल पापमोचनी एकादशी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। 2025 में यह एकादशी 25 मार्च, मंगलवार को पड़ रही है। इस दिन व्रत करने से व्यक्ति अपने जीवन में किए गए सभी पापों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है।
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पापमोचनी एकादशी का महत्व (Papmochani Ekadashi Vrat Katha)

हिंदू धर्म में एकादशी के दिन व्रत करने का विशेष महत्व है। ऐसा मानते हैं कि एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। पापमोचनी एकादशी के व्रत का पालन करने से व्यक्ति को अपने पूर्व जन्म और वर्तमान जीवन के पापों से छुटकारा मिलता है।
पौराणिक कथा:
एक समय देवर्षि नारदजी ने परमपिता ब्रह्माजी से कहा हे पिताजी, हे ब्रह्मा देव आप मुझसे चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी विधान कहिए।
ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद! चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी पापमोचनी एकादशी के रूप में मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता हैं। प्राचीन समय में चित्ररथ नामक एक सुन्दर वन था। इस वन में देवराज इन्द्र गंधर्व कन्याओं तथा देवताओं सहित स्वच्छंद विहार करते थे।
इसी वन में एक बार मेधावी नामक ऋषि भी तपस्या कर रहे थे। ऋषि शिव उपासक थे तथा अप्सराएँ अनुचरी थी। एक बार कामदेव ने मुनि का तप भंग करने के लिए उनके पास मंजुघोषा नामक अप्सरा को भेजा। युवावस्था वाले मुनि अप्सरा के हाव भाव, नृत्य, गीत तथा कटाक्षों पर काम मोहित हो गए एवं उसी अप्सरा के साथ रहने लगे। अप्सरा के साथ रति-क्रीडा करते हुए मुनि को 57 वर्ष व्यतीत हो गए।
एक दिन मंजुघोषा ने देवलोक जाने की आज्ञा माँगी। उसके द्वारा आज्ञा माँगने पर मुनि को आत्मज्ञान हुआ कि मुझे रसातल में पहुँचाने का एकमात्र कारण अप्सरा मंजुघोषा ही हैं। क्रोधित होकर उन्होंने मंजुघोषा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया।
श्राप सुनकर मंजुघोषा ने काँपते हुए ऋषि से मुक्ति का उपाय पूछा। तब मुनिश्री ने पापमोचनी एकादशी का व्रत रखने को कहा और अप्सरा को मुक्ति का उपाय बताकर मुनि अपने पिता च्यवन के आश्रम में चले गए। पुत्र के मुख से श्राप देने की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने पुत्र की घोर निन्दा की तथा उन्हें भी पापमोचनी चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने की आज्ञा दी। व्रत के प्रभाव से मंजुघोष अप्सरा पिशाचनी देह से मुक्त होकर देवलोक चली गई।
अत: हे नारद! जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करेगा, उसके सारों पापों की मुक्ति होना निश्चित है। और जो कोई इस व्रत के महात्म्य को पढ़ता और सुनता है उसे सारे संकटों से मुक्ति मिल जाती है
इस व्रत से होने वाले लाभ:
- व्यक्ति के पिछले एवं इस जनम के जाने अनजाने में किए हुए पापों का नाश होता है।
- मनुष्य को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग मिलता है।
- जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
- मानसिक शांति और आत्मिक शुद्धि होती है।
पापमोचनी एकादशी में क्या करें और क्या न करें? (Papmochani Ekadashi Me Kya Kare Kya Nahi)
क्या करें?
व्रत और उपवास: इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
भगवान विष्णु की पूजा: इस दिन श्रीहरि विष्णु का पूजन और कथा का पाठ करें।
दान-पुण्य करें: गरीबों को अन्न, वस्त्र और जरूरतमंदों की सहायता करें।
सात्विक भोजन करें: एकादशी के दिन फलाहार और सात्विक भोजन करें।
कीर्तन और भजन करें: श्री हरि के भजन और मंत्र जाप करें।
क्या न करें?
अहिंसा का पालन करें: इस दिन मांस, मछली और अंडे का सेवन न करें।
क्रोध और झूठ से बचें: किसी भी प्रकार की बुरी आदतों से दूर रहें।
अत्यधिक नींद और आलस्य से बचें: यह दिन आत्मचिंतन और भक्ति के लिए होता है, इसलिए समय का सदुपयोग करें।
तामसिक भोजन न करें: लहसुन, प्याज और नशे से संबंधित पदार्थों का सेवन न करें।
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