Bhagwan Shiv ke Avatar | हमारे सनातन धर्म में जो त्रिदेव है उनमें से एक भगवान शिव भी है। भगवान शिव जिन्हें कि इस सृष्टि के संहारकर्ता के रूप में भी जाना जाता है। भगवान शिव को भारतवर्ष के अलग अलग प्रांतों में कई अलग अलग नामों से जाना जाता है और कई अलग अलग रूपों में पूजा भी जाता है और इसीलिए आज इस लेख के माध्यम से हम समझेंगे भगवान शिव के अलग अलग अवतारों के बारे में। तो चलिए सबसे पहले यही समझने से शुरुआत करते हैं की आखिर में यह अवतार लेना होता क्या है और भगवान आखिर में सर्वशक्तिशाली होते हुए भी क्यों ये अवतार लेते हैं?
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अवतार का अर्थ ?
अब यूं तो अवतार का सीधा सीधा अर्थ “जन्म लेना” होता है किन्तु हर किसी के जन्म लेने को अवतार लेना नहीं कह सकते, हमारे सनातन धर्म के अनुसार अवतार का अर्थ है भगवान का अवतरित होना या भगवान का जन्म लेना। अब यह जन्म भगवान मानव के रूप में भी लेते हैं और कभी कभार किसी अन्य प्राणी के रूप में भी लेते हैं। ऐसा मानते हैं कि इस पृथ्वी लोक पर जब भी अधर्म बहुत ज्यादा बढ़ जाता है तो धर्म की स्थापना करने के लिए भगवान कोई न कोई अवतार अवश्य लेते ही हैं।
हम जब भी भगवान के अवतार लेने की बात करते हैं तो जो भगवान सबसे पहले हम सब के ध्यान में आते हैं या जिनके अवतारों के बारे में हमने सबसे ज्यादा पढ़ा या सुना होता है वह हैं श्री हरी भगवान विष्णु। भगवान विष्णु अब तक ९ बार इस पृथ्वी पर अवतरित हो चुके हैं और कलियुग में अपना दसवां अवतार लेने वाले हैं | भगवान विष्णु जी के ही श्री राम एवं श्री कृष्णा अवतार से तो बहुत से जन रामायण एवं महाभारत के कारण परिचित हैं और इसलिए आज हम भगवान शिव के अवतारों के बारे में जानेंगे जिनसे कि कम ही लोग परिचित हैं।
भगवान शिव के 19 अवतार
हमारे हिन्दू धर्म में एक कहावत है “जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तीन तैसी”, जिसका अर्थ है कि भगवान के भक्त उनको जिस भी रूप में देखते हैं उनको वो वैसे ही दिखाई देते हैं और इसीलिए भगवान शिव के भी उनके भक्तों ने कई नाम और कई रूप बना रखे हैं उनको पूजने के लिए। अब यूँ तो कुर्मा पुराण के अनुसार भगवान शिव के २८ अवतार हुए हैं किन्तु शिव पुराण भगवान शिव के केवल १९ अवतारों के बारे में ही बात करता है तो इन्हीं १९ अवतारों के बारे में हम एक एक करके थोड़ा थोड़ा जानने का प्रयास करेंगे।
तो चलिए एक एक करके शुरू करते हैं :
- पिपलाद अवतार
भगवान शिव के इस अवतार कि पूजा अर्चना करने से भगवान शिव के भक्त, शनि देव के कुदृष्टि से बचे रह सकते हैं। इस अवतार के पीछे की कहानी ये है कि भगवान शिव ने ऋषि दधीचि और उनकी पत्नी के यहाँ पुत्र के रूप में जन्म लिया किन्तु जन्म के समय ही शनि देव के कारण उनके माता और पिता दोनों की मृत्यु हो गई। पिपलाद ने बड़े होकर इस बात का प्रतिशोध लेने के लिए शनि देव को उनके लोक से निकालकर अपने बंधन में बांध लिया।
जब सारे देवता पिपलाद के पास आए तब जाके उन्होंने शनि देव को अपने बंधन से मुक्त किआ और साथ ही साथ यह वचन भी लिया कि शनि देव किसी भी व्यक्ति पर उसके १६ वर्ष कि आयु के हो जाने तक अपनी बुरी दृष्टि नहीं डालेंग।
- नंदी अवतार
भगवान शिव ने यह अवतार ऋषि शिलाद के घर में उनके पुत्र के रूप में लिया था। ऋषि ने भगवान शिव के आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की और भगवान से प्रार्थना की कि उन्हें ऐसा पुत्र प्रदान करें जो सदैव जीवित रहे। यह पुत्र, नंदी, बाद में भगवान शिव के निवास स्थान कैलाश के द्वारपाल एवं भगवान शिव के वाहन के रूप में भी नियुक्त हुआ।
- वीरभद्र अवतार
जब भगवान शिव की पत्नी देवी सती ने अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह कर दिया तब भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने सिर से एक बाल को खींचकर जमीन पर फेंक दिया। भगवान शिव के उसी बाल से वीरभद्र और रुद्रकाली का जन्म हुआ जिन्होंने न सिर्फ इस यज्ञ को तहस नहस किया अपितु दक्ष का सर भी धड़ से अलग कर दिया।
- शरभ अवतार
शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव के इस अवतार में उनका शरीर पक्षी का है और मुख सिंह का। शरभ अवतार भगवान शिव ने भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार के क्रोध को शांत करने के लिए लिया था , जब उन्होंने राक्षस हिरण्यकशिपु का वध किया था। भगवान शिव के इस अवतार को सरबेश्वर (भगवान सरभ) या शरभेश्वरमूर्ति के रूप में भी पूजा जाता है।
- अश्वत्थामा
गुरु द्रोणाचार्य की कठोर तपस्या और उनकी समर्पण भावना से प्रभावित होकर भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वह उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे और इस प्रकार भगवान शिव ने द्रोण पुत्र अश्वथामा के रूप में जन्म लिया जो कि महाभारत काल में कौरवों और पांडवों के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले एक शक्तिशाली वीर थे। जन्म से ब्राह्मण होने के बाद भी वे एक छत्रिय के रूप में पले-बढे एवं उनके माथे पर एक मणि भी थी जो उन्हें दिव्य शक्तियाँ प्रदान करती थी।
भगवान शिव के सभी अवतारों में से भैरव अवतार सबसे उग्र अवतारों में से एक माने जाते हैं । भैरव तब अस्तित्व में आए जब एक बार ब्रह्मा जी ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए शिव जी एवं विष्णु जी से झूठ बोला था । ऐसा कहते हैं कि भैरव क्रोध में आकर भगवान ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया किन्तु ब्रह्महत्या एक एक गंभीर अपराध होने के कारण से भैरव को ब्रह्मा जी का कपाल लेकर 12 वर्षों तक भटकना पड़ा और उन्हें कशी में पहुंचकर ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिली।
- दुर्वासा अवतार
भगवान शिव ने ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी अनुसूया के पुत्र के रूप में अवतरित होने का निर्णय लिया जिनका कि नाम दुर्वासा रखा गया। दुर्वासा एक ऐसे ऋषि थे जिन्हें मनुष्यों के साथ साथ देवताओं से भी अत्यधिक सम्मान प्राप्त था। ऋषि दुर्वासा को क्रोध बड़ी जल्दी आता था एवं वह श्राप भी बड़ी जल्दी दे दिया करते थे इसलिए मनुष्य एवं देवता उनके भयभीत ही रहते थे। दुर्वासा ऋषि केवल दूर्वा घास का सेवन करते थे।
- गृहपति अवतार
भगवान शिव के एक महान भक्त थे जिनकी पत्नी शुचिस्मति भगवान शिव की समर्पित भक्त थीं और शिव के समान ही एक पुत्र को जन्म देने की अभिलाषा रखती थीं अतः उनके घर भगवान शिव गृहपति के रूप में जन्मे। भगवान शिव ने गृहपति को सभी दिशाओं का स्वामी बना दिया।
- हनुमान
भगवान शिव ने यह अवतार माता अंजनी और केसरी के यहाँ उनके पुत्र मारुती के रूप में लिया था। रामायण महाकाव्य में हनुमान ने राजा रामचंद्र की धर्म पत्नी माता सीता को खोजने एवं लंका के राजा रावण को हराने के अभियान में भगवान राम की सहायता की थी। हनुमान भगवान राम के प्रति अपनी भक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं और अपने माता सीता द्वारा दिए गए वरदान के कारण अजर अमर हैं।
- वृषभ अवतार
भगवान विष्णु ने असुरों से अमृत को बचाने के लिए मोहिनी रूप धारण किया था किन्तु असुर मोहिनी को अपने साथ पातळ लोक में ले गए।
माया कुछ ऐसी घटी कि विष्णु जी का यह रूप पाताल लोक में असुरो को मारना भूलकर माया के प्रभाव से उनके पुत्रो को जन्म देने लगा, तब भगवान शिव ने बैल का धारण करते हुए वृषभ अवतार लिया और मोहिनी रूप से युद्ध किया।
- यतिनाथ अवतार
एक समय आहुक नामक एक आदिवासी था। वह और उसकी पत्नी भगवान शिव के परम भक्त थे। एक दिन भगवान शिव ने यतिनाथ के रूप में उनके यहाँ आकर दर्शन दिए किन्तु उनकी छोटी सी झोपड़ी में भगवान शिव को अतिथि के रूप में ठहराने लायक स्थान नहीं था, इसलिए आहुक ने बाहर सोने का निर्णय लिया किन्तु दुर्भाग्यवश रात्रि के समय में वह बाहर एक जंगली जानवर द्वारा मारा गया। उसकी पत्नी ने जब आत्महत्या करने का निर्णय लिया तब भगवान शिव ने उसे अपने वास्तविक रूप में आकर आशीर्वाद दिया कि वे अगले जीवन में नल और दमयंती के रूप में जन्म लेंगे एवं वापिस से एक हो जाएंगे ।
- कृष्णा दर्शन अवतार
भगवान शिव ने राजा नभग एवं ऋषि अंगिरा के माध्यम से यज्ञ और धर्म के कार्यों की महत्वपूर्णता को समझाने के लिए कृष्णा दर्शन के रूप में अवतार लिया था।
- भिक्षुवर्य अवतार
भगवान शिव ने भिक्षुक के रूप में तब यह अवतार लिया जब राजा सत्यार्थ युद्ध में मारे गए और उसके तत्पश्च्यात उनकी पत्नी भी एक मगरमच्छ का शिकार बन गयीं जिसके कारण उनका नवजात शिशु जंगल में भूखा प्यासा रोने लगा। भगवान शिव ने उस शिशु को बचाया और उसे एक गरीब महिला की देखरेख में सौंपा, जिसने उसे पालपोसकर बड़ा किया। बड़े होकर, उस बच्चे ने अपना खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त किया।
- सुरेश्वर अवतार
भगवान शिव और देवी पार्वती ऋषि व्याघ्रपाद के पुत्र उपमन्यु के सामने इंद्र और इंद्राणी के रूप में प्रकट हुए एवं उपमन्यु की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए दोनों ने उपमन्यु से कहा कि वह शिव की पूजा करना बंद कर दें । इसपर उपमन्यु क्रोधित हो गए किन्तु उन्होंने पूजा बंद करना बंद नहीं किया । शिव और पार्वती उपमन्यु के पूर्ण समर्पण भाव और भक्ति से संतुष्ट हो गए और शिव ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह और पार्वती हमेशा उनके आश्रम के निकट ही निवास करेंगे । भगवान शिव के इस रूप को ‘सुरेश्वर’ नाम मिला क्योंकि उन्होंने इंद्र के रूप में प्रकट होकर अपनी उपस्थिति दर्ज की।
- किरातेश्वर अवतार
भगवान शिव ने एक शिकारी के रूप में अवतार लिया जब अर्जुन एक असुर “मूक” का वध करने के लिए ध्यान कर रहे थे, जो वराह (सुअर) के रूप में छुपा हुआ था। वराह को देखते ही अर्जुन और कीरट ने एक ही समय पर उसे बाण मारे जिससे उसकी मृत्यु हो गई किन्तु उन दोनों के बीच यह विवाद शुरू हो गया कि वराह को सबसे पहले किसके बाण ने आघात किया । अर्जुन ने कीरट के रूप में आए हुए भगवान शिव को द्वंद्वयुद्ध के लिए चुनौती दी जिसपर कि भगवान शिव अर्जुन की वीरता से प्रसन्न हो गए और उन्होंने अर्जुन को पशुपताअस्त्र प्रदान किया।
- सुनटनतर्क अवतार
देवी पार्वती के पिता हिमाचल से पार्वती का हाथ मांगने के लिए भगवान शिव ने एक नर्तक का रूप धारण किया एवं अपना डमरू बजाते हुए, सुन्दर नृत्य करते हुए हिमाचल के घर में प्रवेश किया इस पर प्रस्सन होकर जब हिमाचल ने पूछा कि तुम्हे उपहार स्वरुप क्या चाहिए तो इस पर भगवना शिव ने हिमालय राज से उनकी पुत्री का हाथ विवाह के लिए माँग लिया, जिससे कि हिमाचल राज बहुत क्रोधित हो गए किन्तु जब आगे चलके उन्हें वास्तविकता का पता चला तो वो इस विवाह के लिए तैयार हो गए।
- ब्राह्मचारी अवतार
ब्राह्मचारी अवतार लेकर भगवान शिव ने देवी पार्वती की उन्हें पति के रूप में प्राप्त करने की दृढ़ता की परीक्षा ली। दक्ष के यज्ञ में अपनी बलि देने के बाद, जब सती हिमालय के घर में पुनर्जन्म लेकर आईं, तो उन्होंने भगवान शिव को अपना पति पाने के लिए कठोर तपस्या की। पार्वती की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए, शिव ने ब्राह्मचारी रूप धारण किया एवं उनकी तपस्या से प्रस्सन होकर उन्हें पत्नी रूप में स्वीकारने का वर प्रदान किया।
- यक्षेश्वर अवतार
समुद्र मंथन के दौरान असुरों को पराजित करने के बाद देवता गर्व से भर गए थे। इसीलिए, भगवान शिव ने उन्हें सिखाना चाहा कि गर्व देवताओं की विशेषता नहीं होनी चाहिए। भगवान शिव ने उन्हें एक घास की टहनी दी और उसे काटने को कहा। इसका उद्देश्य इस दिव्य घास के माध्यम से देवताओं के झूठे गर्व को समाप्त करना था। अंततः, कोई भी उस घास को काटने में सक्षम नहीं हुआ, और उनका गर्व समाप्त हो गया। भगवान शिव के इस रूप को यक्षेश्वर अवतार के नाम से जाना जाता है।
- अवधूत अवतार
अवधूत अवतार भगवान शिव ने भगवान इंद्र के अहंकार को कुचलने के लिए लिया। देवताओं के राजा के रूप में, इंद्र में गर्व की भावना विकसित हो गई थी। एक बार, जब इंद्र और अन्य देवता कैलाश पर्वत के रास्ते से गुजर रहे थे, भगवान शिव ने उनका परीक्षण करने का निर्णय लिया। भगवान शिव ने एक ऋषि का रूप धारण करके उनके मार्ग को अवरुद्ध कर दिया। इंद्र ने ऋषि से हटने का अनुरोध किया, लेकिन भगवान शिव बिना हिले-डुले वहीं बैठे रहे ।
इससे इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने वज्र का प्रयोग किया, लेकिन वह प्रहार ही नहीं कर पाए । इस घटना ने भगवान इंद्र का गर्व तोड़ दिया और इंद्र के अनुरोध पर भगवान शिव ने अपनी असली पहचान प्रकट की।
भगवान शिव के रूद्र अवतार
इसके अलावा भगवान शिव के ११ रूद्र अवतारों के बारे में भी शिव पुराण में लिखा हुआ है, जिसकी जानकारी हमें इस श्लोक से मिलती है
एकादशैते रुद्रास्तु सुरभीतनया: स्मृता: ।
देवकार्यार्थमुत्पन्नाश्शिवरूपास्सुखास्पदम् ।
अर्थ: ये एकादश रुद्र सुरभी के पुत्र कहलाते हैं । ये सुख के निवासस्थान हैं तथा देवताओं के कार्य की सिद्धि के लिए शिवरूप से उत्पन्न हुए हैं ।
भगवान शिव के इन ११ रुद्रों के नाम इस प्रकार हैं:
कपाली, पिंगल, भीम, विरूपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, अहिर्बुध्न्य, शम्भु, चण्ड, भव
शिव पुराण की ही एक प्रचलित कहानी के अनुसार एक बार एक असुर ने सारे देवताओं को परास्त करके उन्हें उनके लोक से भगा दिया। जान बचाकर सारे देवता ऋषि कश्यप जी के पास आए और अपना दुख बताया। अब क्योंकि कश्यप मुनि इंद्र आदि देवताओं के पिता थे, तो उन्होंने उस असुर को परास्त करने के लिए भगवान शिव की तपस्या करना शुरू की। बरसों तपस्या करने के बाद जब भगवान शिव प्रसन्न हुए तो उन्होंने वरदान मांगने को कहा।
तब ऋषि ने भगवान शिव से उनकी पत्नी के गर्भ से जन्म लेने को कहा ताकि वे असुरों को पराजित करके इंद्र आदि देवताओं को उनका अधिकार दिला सकें। भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया और आगे चलकर भगवान शिव ने ऋषि कश्यप की पत्नी सुरभि के गर्भ से ११ रुद्रों के रूप में जन्म लिया, और आगे चलकर देवताओं को पराजित करके उन्हें उनका अधिकार दिलाया।
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