Ahoi Ashtami व्रत कथा और व्रत का महत्व

अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) का व्रत भारतीय संस्कृति में माताओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह व्रत संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। अहोई अष्टमी व्रत मुख्य रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है । इस दिन माताएं अपनी संतानों की भलाई के लिए पूरे दिन उपवास रखती हैं और संध्या के समय अहोई माता की पूजा करती हैं। इस व्रत की कथा और महत्व दोनों ही अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, आइए इसे विस्तार से जानते हैं।

अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) व्रत कथा

Ahoi Ashtami में एक बूढी माँ अपने बच्चों की सलामती के लिए पूजा करती हुई
Credit: HarGharPuja

कथा 1

प्राचीन समय की बात है, एक गाँव में एक महिला अपने सात बेटों के साथ खुशी-खुशी जीवन बिता रही थी। एक बार, दीवाली से पहले वह जंगल में मिट्टी खोदने के लिए गई ताकि घर की सजावट के लिए मिट्टी के दिये और खिलौने बना सके। मिट्टी खोदते समय गलती से उसकी खुरपी से एक साही के बच्चे की मृत्यु हो गई। साही (हिरण के आकार का जीव) ने उसे शाप दे दिया कि उसके सातों बेटे मर जाएंगे।

महिला ने शाप से बचने के लिए कई उपाय किए, लेकिन उसके सभी सात बेटे एक-एक करके मर गए। अत्यंत दुखी होकर वह गांव की एक बुजुर्ग महिला के पास गई। बुजुर्ग महिला ने उसे अहोई माता की पूजा करने का सुझाव दिया और कहा कि वह संतान की भलाई के लिए इस व्रत को रखे।

महिला ने पूरे नियम से अहोई माता का व्रत किया और उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अहोई माता ने उसे वरदान दिया कि उसके सातों बेटे फिर से जीवित हो जाएंगे। तभी से अहोई अष्टमी का व्रत संतान की लंबी आयु और उनके सुख-समृद्धि के लिए रखा जाने लगा।

कथा 2

प्राचीन काल में एक साहूकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएँ थीं। इस साहूकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली के अवसर पर ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएँ मिट्टी लाने जंगल में गईं तो ननद भी उनके साथ जंगल की ओर चल पड़ी। साहूकार की बेटी जहाँ से मिट्टी ले रही थी उसी स्थान पर स्याहु (साही) अपने सात बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी खोदते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बाँधूँगी।

स्याहू की यह बात सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक एक करके विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे थे वह सभी सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।

सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं। अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती है। वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और इसलिए वह साँप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहाँ आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मार दिया है। इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।

छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुँचा देती है।

स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहुएँ होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहू का घर पुत्र और पुत्र की वधुओं से हरा भरा हो जाता है। 

Ahoi Ashtami का अर्थ एक प्रकार से यह भी होता है “अनहोनी को होनी बनाना” जैसे साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया।

अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) व्रत का महत्व

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  1. संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए: इस व्रत का मुख्य उद्देश्य संतान की लंबी उम्र और सुखमय जीवन की कामना करना है। माताएं पूरे दिन उपवास रखकर अहोई माता से प्रार्थना करती हैं कि उनकी संतान को किसी प्रकार का कष्ट न हो और उनका जीवन समृद्ध रहे।
  2. मातृत्व का प्रतीक: अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) का व्रत माताओं के अपने बच्चों के प्रति असीम प्रेम और त्याग का प्रतीक है। यह व्रत माताओं को अपने बच्चों के लिए समर्पित होने का भाव प्रकट करता है।
  3. पारिवारिक सुख-शांति का प्रतीक: अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) केवल संतान की भलाई के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार की समृद्धि और शांति के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसे करने से घर में सुख, शांति और खुशहाली का वातावरण बना रहता है।
  4. धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व: इस व्रत के माध्यम से महिलाएं अपने आध्यात्मिक और धार्मिक कर्तव्यों का पालन करती हैं। अहोई माता की पूजा से उन्हें आत्मिक शांति और संतोष प्राप्त होता है।
  5. निर्जला व्रत: माताएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं और अहोई माता की पूजा के बाद रात को तारों को अर्घ्य देकर ही व्रत खोलती हैं। तारे को देखकर व्रत खोलना इस व्रत की एक विशेष प्रथा है।

इस बार यह व्रत 24 अक्टूबर को मनाया जाएगा जो की करवा चौथ से 4 दिन बाद आएगा।

अहोई अष्टमी व्रत की पूजा विधि

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  • अहोई माता की तस्वीर: पूजा की शुरुआत में दीवार पर अहोई माता की तस्वीर लगाई जाती है। इसके नीचे पानी से भरा एक कलश रखा जाता है, जो पूजा के दौरान शुभ माना जाता है।
  • अहोई माता की माला: पूजा में अहोई माता की माला (जिसे अहोई माला भी कहा जाता है) का विशेष महत्व होता है। यह माला चांदी या सोने से बनी होती है, और इसमें सात लड़के और एक अहोई माता की छवि होती है। माला को धागे में पिरोया जाता है और पूजा के समय इसका प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है। इसे महिलाएं पूजा में धारण करती हैं या अहोई माता की प्रतिमा पर चढ़ाती हैं।
  • पूजा सामग्री: पूजा में धूप, दीप, अक्षत, रोली, चावल, मिठाई, और जल से भरा कलश आवश्यक होता है। इसमें सात या आठ अन्न के दाने विशेष रूप से चढ़ाए जाते हैं।
  • अहोई माता की कथा: पूजा के दौरान अहोई माता की कथा सुनी और सुनाई जाती है। यह कथा व्रत की महत्ता और बच्चों की दीर्घायु से जुड़ी होती है। इस कथा के माध्यम से महिलाएं अहोई माता का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
  • तारों को अर्घ्य देना: पूजा के बाद माताएं रात को तारे निकलने पर उन्हें जल से अर्घ्य देती हैं। अर्घ्य देने के बाद, महिलाएं चंद्रमा और तारों की ओर देखकर अपनी संतानों की लंबी उम्र और समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।
  • व्रत खोलना: तारे देखने और अर्घ्य देने के बाद महिलाएं व्रत खोलती हैं। कुछ क्षेत्रों में यह व्रत चंद्रमा को अर्घ्य देकर भी खोला जाता है, लेकिन अधिकतर महिलाएं तारों को देखकर ही व्रत खोलती हैं।

अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) की आरती

जय अहोई माता जय अहोई माता ।

तुमको निसदिन ध्यावत हरी विष्णु धाता ।।

ब्रम्हाणी रुद्राणी कमला तू ही है जग दाता ।

जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता ।।

तू ही है पाताल बसंती तू ही है सुख दाता ।

कर्म प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता ।।

जिस घर थारो वास वही में गुण आता ।

कर न सके सोई कर ले मन नहीं घबराता ।।

तुम बिन सुख न होवे पुत्र न कोई पता ।

खान पान का वैभव तुम बिन नहीं आता ।।

शुभ गुण सुन्दर युक्ता क्षीर निधि जाता ।

रतन चतुर्दश तोंकू कोई नहीं पाता ।।

श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता ।

उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता ।।


Ahoi Ashtami व्रत माताओं के लिए एक पवित्र और महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे वे अपनी संतान की लंबी उम्र और कल्याण के लिए पूरे भक्ति भाव से करती हैं। अहोई माता की कथा और पूजा विधि इस व्रत को धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से और भी महत्वपूर्ण बनाती हैं। यह व्रत मातृत्व के प्रति सम्मान और त्याग का प्रतीक है, जो भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर है।

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