अक्षय तृतीया पर घटित प्रमुख पौराणिक घटनाएँ

akshaya tritiya 2025

अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) जिसे ‘अखा तीज’ भी कहा जाता है हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह दिन इतना पावन और शुभ माना गया है कि इसे ‘अबूझ मुहूर्त’ कहा जाता है जिसका मतलब ये है की इस दिन किसी भी मांगलिक कार्य को करने के लिए पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती। इस दिन दान, जप, तप, पूजा, विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, व्यापार आरंभ आदि सभी कार्य अत्यंत शुभ माने जाते हैं

लेकिन क्या आप जानते हैं कि क्यों यह दिन इतना महत्वपूर्ण है अगर नहीं तो इस लेख में हम आपको 10 ऐसी इतिहास की घटनाएं बता रहे हैं जो कि इसी दिन घटित हुई थी या होती हैं।

बांके बिहारी मंदिर, वृंदावन में चरण दर्शन

वृन्दावन का बांके बिहारी मंदिर दूर दूर तक भक्तो के बीच प्रसिद्द है। यहाँ बिहारी जी के दर्शन कराते समय बार बार परदे को लगाया जाता है जिससे कि भक्त ज्यादा समय तक बिहार जी से नैन न मिला पाएं। अक्षय तृतीया के दिन बांके बिहारी मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के चरण दर्शन कराए जाते हैं। सामान्यतः भगवान का स्वरूप ही दर्शन के लिए खुलता है, परंतु केवल अक्षय तृतीया के दिन उनके चरणों के भी दर्शन की अनुमति होती है। भक्त इस दिन को अत्यंत शुभ मानते हैं और दूर-दूर से दर्शन हेतु आते हैं।

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Credit: Swadharma

बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलते हैं

हिंदू धर्म के चार धाम के दर्शन करने का बड़ा माहात्म्य है इन्हीं चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम भी है जहाँ श्री हरी विष्णु बद्री विशाल के रूप में विराजमान हैं। यह धाम छह महीने हिमाच्छादित रहने के पश्चात अक्षय तृतीया के दिन ही श्रद्धालुओं के लिए पुनः खोला जाता है। हिमालय की गोद में बसे इस तीर्थस्थल पर विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं और इस दिन अनेकों भक्त बद्री विशाल के दर्शन के लिए यहाँ पहुंचते हैं।

भगवान विष्णु का परशुराम अवतार

पौराणिक मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में छठा अवतार लिया था। परशुराम जी का जन्म अधर्मी और क्रूर क्षत्रियों के संहार हेतु हुआ था। उन्होंने धर्म की पुनः स्थापना हेतु बार-बार धरती को अन्याय से मुक्त किया। उनके पास शिव जी द्वारा दिया गया एक परशु अर्थात फरसा या कुल्हाड़ी थी जिसके कारन उनका नाम परशुराम पड़ा था।

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Credit: Rudraksha Ratna

महाभारत की रचना का प्रारंभ

यह भी माना जाता है कि भगवान वेदव्यास ने इसी दिन महाभारत की रचना आरंभ की थी। उन्होंने यह दिव्य ग्रंथ भगवान गणेश की लेखनी द्वारा लिखवाया था। वेदव्यास जी को ही वेदों का भी रचयिता कहा जाता है। वेदव्यास जी को भी ८ चिरन्जीविओं में से एक माना जाता है जिसका मतलब ये है कि वेदव्यास जी आज भी जीवित हैं।

अक्षय पात्र की प्राप्ति (महाभारत कालीन घटना)

महाभारत से जुड़ी एक और महत्वपूर्ण घटना है जो कि इसी तिथि को घटित हुई थी और वह है श्रीकृष्ण द्वारा पांडवों को ‘अक्षय पात्र’ प्रदान करना। यह पात्र कभी खाली नहीं होता था और युधिष्ठिर की रसोई को हर समय तैयार रखता था। यह चमत्कारी पात्र श्री कृष्ण ने द्रौपदी की भक्ति से प्रसन्न होकर दिया था।

सत्ययुग और त्रेतायुग का प्रारंभ

शास्त्रों में वर्णन है कि समय को चार युगो में बांटा गया है और इन चार युगो में से सबसे पहले युग और दूसरे युग अर्थात सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत इसी तिथि को हुई थी। यह कालचक्र की दृष्टि से अत्यंत विशेष है, जिससे इस दिन का नाम ही ‘अक्षय’ पड़ा — अर्थात् जिसका कभी क्षय न हो।

द्वापर युग का समापन

जैसे इस दिन युगों की शुरुआत होती है वैसे ही एक मान्यता यह भी है कि इसी तिथि को द्वापर युग का समापन भी हुआ था। यह समय श्रीकृष्ण लीला की समाप्ति के साथ जुड़ा हुआ माना जाता है।

गंगा माता का पृथ्वी पर प्राकट्य

एक अत्यंत पावन मान्यता के अनुसार, गंगा मैया का धरती पर आगमन भी इसी दिन हुआ था। गंगा का अवतरण धरती को पवित्र करने और भगीरथ के तप को पूर्ण करने के रूप में हुआ था। ऐसी मान्यता है कि पहले माँ गंगा केवल स्वर्ग लोक में वास करती थी किन्तु भगीरथ ने अपने पूर्वजो को श्राप से मुक्त करने के लिए एक कठोर तप किया और माँ गंगा को धरती पर आने के लिए मना लिया किन्तु जब माँ गंगा धरती पर आने लगी तब उनके वेग से धरती के फटने का दर बनने लगा और तब भगवान शिव ने उनको अपने शीश पर धारण किया।

shiv ji ke sir par ganga ji
Credit: Katha Kids

कुबेर को देवताओं का कोषाध्यक्ष नियुक्त किया गया

देवताओं के कोष के अधिपति, कुबेर जी को देवताओं का कोषाध्यक्ष भी इसी शुभ दिन पर नियुक्त किया गया था। कुबेर जी को धन का अधिपति माना जाता है, और उनकी पूजा भी अक्षय तृतीया के दिन अत्यंत शुभ मानी जाती है।

श्रीकृष्ण और सुदामा की भेंट

एक मार्मिक प्रसंग यह भी है कि श्रीकृष्ण और सुदामा की भेंट भी अक्षय तृतीया के दिन हुई थी। सुदामा अपने मित्र श्रीकृष्ण से मिलने द्वारका आए थे और भक्ति भाव से उन्हें थोड़े से चिउड़े भेंट किए। श्रीकृष्ण उनकी स्थिति से भावुक होकर उन्हें धन-धान्य से परिपूर्ण कर देते हैं। यह घटना सच्चे मित्रता और भक्ति की मिसाल मानी जाती है।