पितृ क्या है? जानिए पितृ दोष के कारण होने वाली समस्याएं

पितृ दोष के बारे में तो आपने सुना ही होगा।

मान्यता है कि, जन्म कुंडली में ये दोष होने पर व्यक्ति की सुख-शांति छिन जाती है और तरक्की रुक जाती है। ये दोष असल में हमारे मृत पूर्वजों के असंतुष्ट होने पर कुंडली में आ जाता है।

सनातन धर्म में पितृ दोष के निवारण और मृत पूर्वजों की कृपा पाने के लिए पितृ तर्पण की व्यवस्था की गई है। तर्पण-श्राद्ध कर्म करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वह अपने वंशजों को उन्नति का आशीर्वाद देते हैं।

लेकिन, आधुनिक लाइफस्टाइल में पितृ तर्पण जैसे कर्मकांड के लिए समय निकालना भी कठिन होता है। इसके अलावा, योग्य आचार्य मिलना भी कई बार कठिन हो जाता है। ऐसे में कर्मकांड को स्वयं भी संपन्न किया जा सकता है। 

इस आर्टिकल में हम आपको घर पर देव, ऋषि और पितृ तर्पण करने की आसान विधि, सामग्री और मंत्रों के बारे में बताएंगे। इस विधि से आप पितृ पक्ष में आसानी से अपने पूर्वजों का तर्पण कर सकते हैं।

पितृ कौन होते हैं?

पितर को संस्कृत में पितृ कहा जाता है। सनातन हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, ये हमारे दिवंगत पूर्वजों की आत्माएं होती हैं। किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद, अंत्येष्टि (अंतिम संस्कार) करने से मृतक को अपने पूर्वजों के निवास स्थान (पितृलोक) में प्रवेश करने की अनुमति मिलती है। ऐसा माना जाता है कि, इन अनुष्ठानों का पालन न करने पर व्यक्ति को प्रेत के रूप में पृथ्वी पर भटकना पड़ता है।

पितरों में कौन-कौन से पूर्वज आते हैं?

किसी भी व्यक्ति के पूर्वजों की तीन पीढ़ियों को पितृ माना गया है। पिता के परिवार से पिता (यदि मृत्यु हो गई हो), दादा और परदादा (दादा के पिता जी) को पितृ माना जाता है। 

वहीं माता के परिवार में नाना, परनाना और परनाना के पिता जी (वृद्ध परनाना) को पितृ माना जाता है। यानि तीन पीढ़ियों तक को पितृ कहते है और पितृ पक्ष में इनकी पूजा की जाती है।

पितरों की पूजा कब की जाती है?

हिंदू धर्म में पितृ पक्ष की बहुत महिमा बताई गई है। पितृ पक्ष का आरंभ हिंदू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से होता है। 15 दिनों का ये समय आश्विन महीने की अमावस्या तक चलता है।

शास्त्रों में ऐसा उल्लेख है कि, पितृ पक्ष के 15 दिनों में पूर्वजों को याद करना चाहिए। इसके अलावा, उनकी मुक्ति के लिए श्राद्ध, पिंडदान, और तर्पण भी करना चाहिए। पितृ पक्ष को ‘सोलह श्राद्ध’, ‘महालय पक्ष’, और ‘अपर पक्ष’ के नाम से भी पुकारा जाता है। 

पितृ पक्ष 2024 में कब हैं? (Pitru Paksha 2024 Date)

भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक पितृ पक्ष रहते हैं। साल 2024 में पितृ पक्ष 17 सितंबर 2024 से शुरू हो रहे हैं जबकि, इसका समापन 2 अक्टूबर 2024 को होगा।

तर्पण कितने प्रकार के होते हैं?

  • पितृ तर्पण,
  • मनुष्य तर्पण
  • देव तर्पण
  • भीष्म तर्पण
  • मनुष्य पितृ तर्पण
  • यम तर्पण

श्राद्ध कितने प्रकार के होते हैं?

मत्स्य पुराण में तीन प्रकार के श्राद्ध प्रमुख बताये गए हैं, जिन्हें नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य श्राद्ध कहा जाता है। वहीं यमस्मृति में पांच प्रकार के श्राद्धों का वर्णन मिलता है। जिन्हें नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण श्राद्ध के नाम से जाना जाता है।

1. नित्य श्राद्ध 

प्रतिदिन किए जाने वाले श्राद्ध को नित्य श्राद्ध कहते हैं। इस श्राद्ध में विश्वेदेव (ब्रह्मा) को स्थापित नहीं किया जाता। इस श्राद्ध में केवल जलांजलि देकर भी श्राद्धकर्म को सम्पन्न किया जा सकता है।

2. नैमित्तिक श्राद्ध

किसी को निमित्त बनाकर जो श्राद्ध किया जाता है, उसे नैमित्तिक श्राद्ध कहते हैं। इसे एकोद्दिष्ट के नाम से भी जाना जाता है। एकोद्दिष्ट का मतलब किसी एक व्यक्ति के लिए किए जाने वाले श्राद्ध जैसे किसी की मृत्यु हो जाने पर दशमी, एकादशी तिथि आदि एकोद्दिष्ट श्राद्ध के अन्तर्गत आता है। इसमें भी विश्वेदेवा को स्थापित नहीं किया जाता।

3. काम्य श्राद्ध

किसी कामना की पूर्ति के निमित्त जो श्राद्ध किया जाता है। वह काम्य श्राद्ध के अन्तर्गत आता है।

4. वृद्धि श्राद्ध

किसी प्रकार की वृद्धि में जैसे पुत्र जन्म, वास्तु प्रवेश, विवाहादि प्रत्येक मांगलिक प्रसंग में भी पितरों की प्रसन्नता हेतु जो श्राद्ध होता है उसे वृद्धि श्राद्ध कहते हैं। इसे नान्दीश्राद्ध या नान्दीमुख श्राद्ध के नाम भी जाना जाता है, यह एक प्रकार का कर्मकांड होता है। रोजमर्रा के जीवन में भी देव-ऋषि-पितृ तर्पण भी किया जाता है।

5. पार्वण श्राद्ध

पार्वण श्राद्ध का सीधा संबंध किसी पर्व से है। कोई पर्व जैसे पितृपक्ष, अमावास्या या पूर्वज की मृत्यु की तिथि आदि पर किया जाने वाला श्राद्ध पार्वण श्राद्ध कहलाता है। यह श्राद्ध विश्वेदेव सहित होता है।

6. सपिण्डन श्राद्ध

सपिण्डनशब्द का अर्थ है पिण्डों को मिलाना। प्रेत योनि में रह रहे पूर्वजों को पितृ लोक में ले जाने की प्रक्रिया ही सपिण्डन है। प्रेत पिण्ड का पितृ पिण्डों में सम्मेलन कराया जाता है। इसे ही सपिण्डनश्राद्ध कहते हैं।

7. गोष्ठी श्राद्ध

गोष्ठी शब्द का अर्थ समूह होता है। जो श्राद्ध सामूहिक रूप से या समूह में सम्पन्न किए जाते हैं। उसे गोष्ठी श्राद्ध कहते हैं।

8. शुद्धयर्थ श्राद्ध

शुद्धि के निमित्त जो श्राद्ध किए जाते हैं। उसे शुद्धयर्थश्राद्ध कहते हैं। जैसे शुद्धि हेतु ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए।

9. कर्मांग श्राद्ध

कर्मांग का सीधा साधा अर्थ कर्म का अंग होता है, अर्थात् किसी प्रधान कर्म के अंग के रूप में जो श्राद्ध सम्पन्न किए जाते हैं। उसे कर्मांग श्राद्ध कहते हैं।

10. यात्रार्थ श्राद्ध

यात्रा के उद्देश्य से किया जाने वाला श्राद्ध यात्रार्थ श्राद्ध कहलाता है। जैसे- तीर्थ में जाने के उद्देश्य से या देशान्तर जाने के उद्देश्य से जिस श्राद्ध को सम्पन्न कराना चाहिए वह यात्रार्थ श्राद्ध कहलाता है। इसे घृत श्राद्ध भी कहा जाता है।

11. पुष्ट्यर्थ श्राद्ध

पुष्टि के निमित्त जो श्राद्ध सम्पन्न हो, जैसे शारीरिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए किया जाना वाला श्राद्ध पुष्ट्यर्थ श्राद्ध कहलाता है।

तर्पण क्या हैं?

पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को जौ, तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं।

तर्पण करने का अधिकार किसे है?

धर्मशास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि, पितरों का तर्पण करने का पहला अधिकार पुत्र को होता है। हालांकि, अगर किसी व्यक्ति का पुत्र नहीं है, तो उसके 

  • भाई का पुत्र यानी भतीजा
  • पत्नी के भाई का पुत्र 
  • पुत्री का बेटा
  • पौत्र या प्रपौत्र
  • जवाई-दोहित्र
  • सहोदर भाई
  • शिष्य
  • मित्र
  • रिश्तेदार
  • कुलपुरोहित 

भी तर्पण कर सकते हैं। अगर पिता के कुल में कोई पुरुष सदस्य बचा ही न हो तो, पुत्री के कुल से धेवता और दामाद भी तर्पण कर सकते हैं।

पितृ पक्ष की मूल भावना क्या है?

हिंदू धर्म में मान्यता है कि, पितृ पक्ष के दौरान, पितृलोक से सभी पितर पृथ्वी लोक में अपने-अपने परिजनों के पास आते हैं। यहां आने के बाद उनके द्वारा किए गए श्राद्ध-तर्पण आदि का भोग करते हैं।

जो प्राणी इस पक्ष में श्रद्धा भाव से अपने पूर्वजों का तिलांजलि पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोजन कराता है उनके पितृ प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद देकर अमावस्या के दिन अपने-अपने लोक चले जाते हैं।

पितरों का तर्पण न करने पर क्या होता है?

हिंदू धर्म शास्त्रों में श्राद्ध न करने वालों अथवा इसका उपहास उड़ाने वालों के लिए दंड की व्यवस्था की गई है। पितृों की नाराजगी के कारण पूरे परिवार को नाना प्रकार की व्याधियां घेर लेती हैं। घर में दरिद्रता व्याप्त रहती है। 

ब्रह्म पुराण में तो यहां तक कहा गया है कि, ‘श्राद्धं न कुरुते मोहात तस्य रक्तं पिबन्ति ते’। अर्थात, जो संतानें अमावस्या तक के मध्य अपने पितरों का श्राद्ध-तर्पण आदि नहीं करते उनके पितर श्राद्ध की प्रतीक्षा करके अपने परिजनों को श्राप देकर पुनः पितृ लोक चले जाते हैं।

शास्त्रों के मुताबिक, पितरों को नाराज करने से कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं:

  • परिवार के धन, वैभव, और समृद्धि में कमी हो सकती है
  • संतान सुख में बाधा आ सकती है
  • वंश वृद्धि रुक जाती है
  • पुत्र के सुख में कमी आ जाती है
  • पितर के श्राप से पूरे वंश की कुंडली में चंद्रमा खराब हो सकता है
  • पितृ दोष वाले व्यक्ति को करियर में भी ग्रोथ नहीं मिलती है

पितृ दोष के कारण होने वाली समस्याएं:

पितृ दोष के कारण जीवन में अक्सर इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे,

  1. कुल में किसी का संतान विहीन होना
  2. बार-बार गर्भपात होना
  3. परिवार में कलह और तनाव रहना
  4. परिवार में सेहत संबंधी समस्याएं
  5. अचानक शिक्षा का रुक जाना या कारोबार में घाटा हो जाना
  6. शादी न हो पाना या देर से होना
  7. नशे की लत लग जाना
  8. मानसिक रूप से अस्वस्थ बच्चे का जन्म
  9. छोटे बच्चे की मृत्यु हो जाना 

आदि।

पितृ दोष के बारे में कैसे पता करें?

कुंडली में लग्न के नौवें घर और नौवें घर के स्वामी तथा चन्द्रमा की स्थिति का विश्लेषण करके पितृ दोष का पता लगया जा सकता है। 

इसके अलावा, अगर कुंडली में शनि, राहू या केतु में से कोई भी ग्रह सूर्य को प्रभावित कर रहा है तो इस दोष का प्रभाव और भी बढ़ जाता है। इसी तरह चन्द्रमा भी प्रभावित हो रहा हो तो समस्या और भी ज्यादा गंभीर हो सकती है।

निष्कर्ष

संसार छोड़कर जा चुके पूर्वजों को भी दिव्य आत्माएं ही माना जाता है। मरने के पश्चात जब किसी आत्मा को शांति नहीं मिलती तो वो मुक्ति पाने के लिए भटकती रहती है और अपने उत्ताधिकारियों को परेशान करती है। 

इस स्थिति में प्रभावित हो रहे व्यक्ति को उनकी शांति और मुक्ति के लिए उपाय करने चाहिए और इसके लिए वह ग्रंथों में आत्माओं की मुक्ति के लिए बताई गई विधियों की मदद ले सकता है।

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