नवरात्रि के नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है और प्रत्येक दिन देवी के एक न एक रूप को समर्पित होता है। नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी को तपस्या और भक्ति की देवी माना जाता है।
इस लेख में हम मां की कथा, उनके स्वरूप, और उनकी पूजा विधि के बारे में जानेंगे।
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मां ब्रह्मचारिणी कौन हैं?
“ब्रह्मचारिणी” शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है: “ब्रह्म” का अर्थ है तप या ज्ञान, और “चारिणी” का अर्थ है उसका पालन करने वाली। इस प्रकार, ब्रह्मचारिणी वह देवी हैं जो तप और भक्ति का उच्चतम रूप धारण करती हैं।
मां ब्रह्मचारिणी देवी पार्वती का अविवाहित रूप हैं, जिन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। इस रूप में, वे हाथों में रुद्राक्ष की माला और कमंडल (जल पात्र) लिए हुए दिखाई जाती हैं। उनका यह स्वरूप कठोर परिश्रम, संयम और अपार धैर्य का प्रतीक है, जो भक्तों को आत्म-अनुशासन और तपस्या की प्रेरणा देता है।
मां ब्रह्मचारिणी की कथा
हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव का अपमान सहन न कर आत्मदाह कर लिया, तब वे अगले जन्म में पार्वती के रूप में हिमालय पर्वत के राजा की पुत्री बनकर जन्मीं। बचपन से ही पार्वती का मन भगवान शिव की ओर आकर्षित था और उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या का निर्णय लिया।
मां पार्वती ने वर्षों तक कठिन तप किया। शुरुआत में उन्होंने केवल फलों का सेवन किया और फिर पत्तों पर निर्भर रहीं। बाद में उन्होंने पत्तों का भी त्याग कर दिया और केवल हवा पर जीवित रहीं। उनकी इस कठिन तपस्या ने भगवान शिव को प्रसन्न किया और अंततः उन्होंने पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया। पार्वती की इस तपस्या और समर्पण के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया।
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप और प्रतीकात्मकता
मां का स्वरूप बहुत ही शांत और ध्यानमग्न होता है। उनके हाथ में रुद्राक्ष की माला और कमंडल होता है, जो ध्यान, तपस्या और साधना का प्रतीक है। उनका तपस्वी रूप भक्तों को यह सिखाता है कि धैर्य और संयम से हर कठिनाई को पार किया जा सकता है।
मां की पूजा से भक्तों को आत्मिक शक्ति और धैर्य की प्राप्ति होती है।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विशेष रूप से की जाती है। इस दिन की पूजा विधि निम्नलिखित है:
- पूजा स्थल की शुद्धि:
- पूजा स्थल को साफ कर लें और वहां गंगाजल का छिड़काव करें ताकि पूजा स्थल पवित्र हो सके।
- मूर्ति या चित्र स्थापित करें:
- मां की प्रतिमा या चित्र को साफ स्थान पर स्थापित करें और फूलों से सजाएं।
- फूल और प्रसाद अर्पित करें:
- मां को सफेद या पीले फूल अर्पित करें। प्रसाद के रूप में चीनी, मिश्री और हलवा का भोग लगाएं।
- दीप प्रज्वलित करें:
- घी का दीपक जलाकर मां की आराधना शुरू करें।
- मंत्रों का जाप करें:
- मां ब्रह्मचारिणी के ध्यान और बीज मंत्रों का जाप करें:
बीज मंत्र: ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः।
6. आरती करें:
- पूजा के अंत में घी के दीपक से मां की आरती करें।
मां की पूजा का महत्व
मां ब्रह्मचारिणी तपस्या और भक्ति की देवी हैं। उनकी पूजा करने से मनुष्य में धैर्य, शक्ति और आत्मसंयम की वृद्धि होती है। उनकी आराधना से भक्तों को मानसिक शांति और शारीरिक शक्ति मिलती है, जिससे वे जीवन की कठिनाइयों का सामना धैर्यपूर्वक कर सकते हैं।
- आध्यात्मिक उन्नति:
मां का पूजन आत्मिक जागरूकता और साधना की ओर प्रेरित करता है। उनकी कृपा से भक्तों में तप और संयम का विकास होता है। - मानसिक शक्ति:
मां की पूजा से मानसिक स्थिरता और आत्मिक शक्ति की प्राप्ति होती है। उनकी कृपा से जीवन के कठिन समय में भी मनुष्य स्थिर रहता है। - सफलता और उन्नति:
मां की पूजा से भक्तों को कार्यों में सफलता मिलती है और उनके जीवन में स्थिरता और प्रगति होती है।
मां की पूजा से भक्तों को धैर्य, शक्ति और संयम की प्राप्ति होती है। नवरात्रि के दौरान उनकी आराधना करने से आत्मिक उन्नति और मानसिक शांति मिलती है, जिससे भक्त अपने जीवन के संघर्षों का सामना करने में सक्षम होते हैं।