मां चंद्रघंटा: जानते हैं नवरात्रों की तीसरी देवी के बारे में

नवरात्रों का तीसरा दिवस माता चंद्रघंटा की पूजा आराधना के लिए होता है

मां चंद्रघंटा नवरात्रि के तीसरे दिन पूजी जाने वाली देवी हैं, जो अपने अद्वितीय साहस, और शांति स्वरूप के लिए जानी जाती हैं। उन्हें साहस, शक्ति और शांति की देवी माना जाता है। मां चंद्रघंटा के मस्तक पर अर्धचंद्र है, जिसके कारण उन्हें यह नाम मिला है।

इस लेख में, हम मां चंद्रघंटा की महिमा, उनकी कथा, स्वरूप और पूजा विधि के बारे में विस्तार से जानेंगे।

मां चंद्रघंटा कौन हैं?

मां चंद्रघंटा देवी दुर्गा का तीसरा रूप हैं और वह देवी पार्वती का वह रूप है जब उनका विवाह भगवान शिव से हुआ। उनकी सवारी एक सिंह या बाघ होती है और उनके दस भुजाओं में विभिन्न शस्त्र होते हैं, जो यह दर्शाते हैं कि वह अपने भक्तों की सभी प्रकार से रक्षा करती हैं।

मां की कथा

शिव पुराण के अनुसार, पार्वती ने विवाह के बाद शिव के साथ कैलाश पर्वत पर निवास करना शुरू किया।। इसी दौरान, राक्षस तारकासुर ने पार्वती और शिव पर हमला करने के लिए जातुकासुर नामक एक दानव को भेजा, जबकि शिव गहरे ध्यान में लीन थे।

प्रारंभ में, पार्वती भयभीत हो गईं, लेकिन शिव ने उन्हें उनकी आंतरिक शक्ति का स्मरण कराया कि वे स्वयं शक्ति की साकार रूप हैं। इसके बाद, पार्वती ने अपनी शक्ति को पहचानते हुए युद्ध करने का निर्णय लिया।

अर्ध चंद्रदेव ने उनके मस्तक पर विराजमान होकर युद्ध भूमि में प्रकाश फैलाकर उनकी सहायता करना शुरू किया और पार्वती ने भेड़ियों की सेना बुलाकर जातुकासुर के चमगादड़ों की सेना का सामना किया।

पार्वती ने घंटा बजाकर चमगादड़ों को भगाया और फिर अपनी तलवार से जातुकासुर का अंत किया। इस भयावह रूप में पार्वती को ब्रह्मा ने “चंद्रघंटा” नाम दिया, जो साहस और शक्ति का प्रतीक बना, और यह संदेश दिया कि स्त्री कभी भी निर्बल या असहाय नहीं होती।

मां का स्वरूप और प्रतीक

माँ चंद्रघंटा का दिव्य रूप जिसमें उनके दस भुजाओं में अलग अलग शस्त्र सुशोभित हैं
Credit: HarGharPuja

मां का स्वरूप शक्ति और शांति दोनों का प्रतीक है। उनके दस भुजाओं में हथियार होते हैं, जो उनकी युद्ध क्षमता को दर्शाते हैं। उनके मस्तक पर स्थित अर्धचंद्र ऊर्जा का प्रतीक है। उनके घंटे से निकलने वाली ध्वनि नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है और भक्तों के लिए शांति लाती है।

उनका वाहन सिंह या बाघ साहस और शक्ति का प्रतीक है, जिससे यह सिद्ध होता है कि मां निडरता से न्याय के लिए लड़ने को सदैव तत्पर हैं। उनका तीसरा नेत्र अद्वितीय दूरदर्शिता और ज्ञान का प्रतीक है।

मां की पूजा का महत्व

मां चंद्रघंटा की पूजा से भक्तों को साहस और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। नवरात्रि के तीसरे दिन उनकी पूजा करने से जीवन के सभी क्षेत्रों में संतुलन और सफलता प्राप्त होती है। मां की कृपा से भक्तों को नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है और उनकी आंतरिक शांति और संतुलन बरकरार रहता है।

मां की पूजा विधि

नवरात्री के पर्व पर माता के भक्त उनकी पूजा आराधना करते हुए
Credit: HarGharPuja

नवरात्रि के तीसरे दिन मां की पूजा के लिए भक्त विधिवत पूजा करते हैं। यहां मां चंद्रघंटा की पूजा की मुख्य विधियां दी गई हैं:

  1. पूजा स्थल की तैयारी:
    • पूजा के लिए स्थान को स्वच्छ करें और उसे गंगाजल से पवित्र करें। मां चंद्रघंटा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  2. फूल और प्रसाद चढ़ाएं:
    • मां को लाल रंग के फूल अर्पित करें। मां चंद्रघंटा को खासकर खीर, हलवा या मिठाई के रूप में प्रसाद चढ़ाएं।
  3. दीपक और धूप जलाएं:
  4. मंत्र का उच्चारण करें: मां चंद्रघंटा की आराधना के लिए निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण करें:
    • ध्यान मंत्र: पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
      प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
    • बीज मंत्र: ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः।
  5. आरती करें:
    • मां की आरती उतारें और उन्हें सच्चे मन से प्रणाम करें।
  6. प्रसाद चढ़ाएं और बांटें:
    • मां को प्रसाद अर्पित करें और फिर इसे परिवार के साथ साझा करें।

मां चंद्रघंटा, देवी दुर्गा का तीसरा स्वरूप, साहस और शांति का प्रतीक है। उनकी पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन करने से भक्तों को साहस, मानसिक शांति और संतुलित जीवन का आशीर्वाद मिलता है। मां चंद्रघंटा की पूजा विधियों का पालन कर उनके दिव्य आशीर्वाद से सुरक्षा और समृद्धि प्राप्त की जा सकती है।