Shani Jayanti: हनुमान जी ने कैसे शनि देव को रावण की कैद से मुक्त कराया

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Shani Jayanti: Hanuman and Shani Dev: शनि जयंती को भगवान शनि देव के जन्म दिन के रूप में मनाया जाता है। शनि देव, सूर्य देव एवं छाया के पुत्र माने जाते हैं। शनि देव कर्म फल के देवता मने जाते हैं, ऐसा कहते हैं कि शनि देव व्यक्ति के कर्मों के अनुरूप धरती पर ही उसका फल देते हैं।

शनि देव की कृपा एक व्यक्ति के जीवन को खुशियों से भर सकती है वहीँ अगर शनि देव की को दृष्टि किसी पर पड़ जाए तो उस व्यक्ति के बनते बनते काम बिगड़ जाते हैं।
शनि देव से जुडी कई कथाएं हैं, जैसे कि
– उनकी साढ़े साती की कथा
– क्यों वो अपने पिता सूर्य देव को नापसंद करते थे
इन दोनों कथाओं को हम अपने पुराने लेखों में बता चुके हैं

आज शनि जयंती (Shani Jayanti) के अवसर पर जानते हैं हनुमान जी और शनि देव की कथा या यूँ कहिये कैसे हनुमान जी ने शनि देव को रावण की कैद से छुड़ाया इसकी कथा, तो चलिए शुरू करते हैं

रावण की कैद में सारे गृह

कथा कुछ इस प्रकार है कि जब रावण ने ब्रह्माजी से अजेय होने का वरदान प्राप्त किया, तब वह तीनों लोकों को अपने अधीन करने के बारे में सोचने लगा। अब क्योंकि रावण स्वयं बहुत बड़ा वेदों का ज्ञाता था एवं ज्योतिषी भी था, तो उसे पता था कि उसका कार्य पूरा होने से सिर्फ ग्रहों की चाल ही उसे रोक सकती है और इसलिए उसने सभी ग्रहों को बंदी बना लिया और लंका ले आया और अपने सिंहासन पर जब भी बैठता, ग्रहों को अपने पैरों के नीचे रखता।

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Credit: Her Zindagi

एक समय जब रावण के पुत्र होने वाला था, तो रावण ने सोचा कि अपने पुत्र का जन्म मैं उत्तम ग्रह दशा में होने दूँगा और इसलिए वह ग्रहों की दिशा अपने हिसाब से चलाने लगा। जब देवताओं ने यह देखा कि इस रावण ने तो तीनों लोकों को जीत ही लिया है, अब अगर इसका पुत्र भी इतना ही शक्तिशाली बन गया, तो देवताओं को उसके भी अधीन रहना पड़ेगा। इसलिए सभी देवता ग्रहों से अनुरोध करने लगे कि वे रावण के अनुसार अपनी दिशा न बदलें। सभी ग्रहों ने रावण की कैद से बचने का प्रयास किया किंतु वे सफल नहीं हो पाए।

शनि देव ने रावण पर डाली कुदृष्टि

इस पर शनि देव ने कहा कि देवताओं, मैं आपका कार्य सिद्ध करने में मदद कर सकता हूँ किंतु उसके लिए आवश्यक है कि मेरी दृष्टि रावण के चेहरे पर पड़े, और रावण ने पैरों के नीचे पड़े हुए तो वह संभव नहीं। यह सुनकर इंद्र ने देवराज नारद से सहायता माँगी। नारद मुनि रावण के दरबार में पहुँचे और कहने लगे कि हे रावण, मैं तो तुम्हें तब श्रेष्ठ मानूँगा जब तुम इन ग्रहों को अपने गले में धारण करो, न कि अपने पैरों के नीचे। रावण, नारद की बातों में फँस गया और उसने जैसे ही ग्रहों को अपने पैरों के नीचे से हटाया, वैसे ही शनि देव की कुदृष्टि रावण पर पड़ गई।

जब रावण को इस बात का एहसास हुआ, तो उसने बाकी सभी ग्रहों को मुक्त कर दिया, किंतु शनि देव को उसने एक कैदखाने में उल्टा लटकाकर बंदी बना लिया।

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कहते हैं, रावण ने बहुत ही लंबे समय तक शनि देव को बंदी बनाकर रखा और जब तक शनि उसकी कैद में थे, तब तक रावण अजेय रहा। किंतु सब कुछ उस दिन से बदल गया जब श्रीहनुमान जी माता सीता की खोज करते हुए लंका पहुँचे।

हनुमान जी का शनि देव को कैद से मुक्त करना

रावण ने अपने क्रोध और अहंकार के कारण हनुमान जी को मृत्यु दंड देने की बात कही, किंतु अपने छोटे भाई विभीषण के समझाने पर रावण ने अपने सिपाहियों से हनुमान जी की पूँछ में आग लगाने को कहा।

जब हनुमान जी की पूँछ में आग लगाई गई, तो हनुमान जी ने उसी जली हुई पूँछ से सारी लंका में आग लगा दी और इस प्रकार जब सारी लंका धू-धू करके जलने लगी, तब वह आग उस जगह तक भी पहुँची जहाँ पर शनि देव को बंदी बनाया हुआ था।

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Credit: Savan Books

आग की गर्मी के कारण शनि देव को परेशानी होने लगी और जब हनुमान वहाँ आए, तो न केवल उन्होंने शनि देव को रावण की कैद से मुक्त कराया, बल्कि शनि देव के शरीर को ठंडक देने के लिए हनुमान जी ने शनि देव के शरीर पर सरसों का तेल भी लगाया।

हनुमान जी के इस परमार्थ भाव से शनि देव बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा कि भविष्य में जो भी आपका नाम लेगा या आपका भक्त होगा, मैं उसका कभी भी अहित नहीं करूँगा।

इसीलिए ऐसा माना जाता है कि जो भी हनुमान जी का नाम लेते हैं, शनि देव उनका अहित नहीं कर पाते। और इसी से यह कहानी भी जुड़ी हुई है कि क्यों हर शनिवार को शनि देव को सरसों का तेल चढ़ाया जाता है।

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Credit: Zee News

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