श्राद्ध एकादशी: महत्व, कहानी और अनुष्ठान

नदी किनारे श्राद्ध एकादशी के दिन तर्पण करता एक पुरुष

श्राद्ध एकादशी पितृ पक्ष के दौरान आने वाले महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। पितृ पक्ष 16 दिनों की वह अवधि होती है जब हमारे पूर्वजों की आत्माओं की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण जैसे अनुष्ठान किए जाते हैं। एकादशी शब्द का अर्थ है चंद्र पखवाड़े का 11वां दिन, और श्राद्ध एकादशी विशेष रूप से पूर्वजों की आत्माओं की मुक्ति और शांति के लिए अनुष्ठानों को समर्पित होती है।

श्राद्ध एकादशी 2024 में कब है?

2024 में, पितृ पक्ष एकादशी शुक्रवार, 27 सितंबर 2024 को मनाई जाएगी।

श्राद्ध अनुष्ठान के लिए शुभ मुहूर्त इस दिन विशेष महत्व रखते हैं। पितरों की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध का कार्य इन समयों में किया जाता है:

  • कुतुप मुहूर्त: 11:44 AM से 12:32 PM तक
  • रोहिणी मुहूर्त: 12:32 PM से 1:20 PM तक
  • अपराह्न काल: 1:20 PM से 3:41 PM तक

श्राद्ध एकादशी की कहानी

एक मुनि एवं एक राजा आपस में वार्तालाप करते हुए
Credit: HarGharPuja

पितृ पक्ष एकादशी की एक प्रसिद्ध कहानी राजा अम्बरीश और ऋषि दुर्वासा से जुड़ी हुई है। राजा अम्बरीश भगवान विष्णु के भक्त थे और उन्होंने एकादशी व्रत का पालन किया। एक बार जब ऋषि दुर्वासा उनके महल आए, तो राजा अम्बरीश ने व्रत का पालन करने के कारण जल ग्रहण किया। यह देखकर ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो गए, लेकिन भगवान विष्णु ने राजा की रक्षा की। इस घटना के बाद राजा ने अपने पितरों की शांति के लिए बड़ा श्राद्ध अनुष्ठान किया। यह कथा श्राद्ध एकादशी के महत्व को दर्शाती है और पूर्वजों के प्रति समर्पण की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

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एकादशी और भगवान विष्णु का संबंध

एकादशी को भगवान विष्णु का दिन माना जाता है। हर एकादशी पर उनके भक्त व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की आराधना करते हैं। श्राद्ध एकादशी का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन पूर्वजों की आत्माओं को भी भगवान विष्णु की कृपा से मुक्ति प्राप्त होती है।

श्राद्ध एकादशी के अनुष्ठान

पितृ पक्ष में एक पुत्र एक नदी किनारे अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करता हुआ।
Credit: HarGharPuja
  1. तर्पण (जल अर्पण): पूर्वजों की आत्माओं की प्यास बुझाने और उन्हें शांति प्रदान करने के लिए जल अर्पित किया जाता है।
  2. पिंड दान: पिंड दान के रूप में चावल और तिल के मिश्रण से बने पिंड अर्पित किए जाते हैं।
  3. ब्राह्मणों, कौवों और पशुओं को भोजन कराना: कौवे को पितरों का दूत माना जाता है। श्राद्ध एकादशी पर कौवों और गायों को भोजन अर्पित किया जाता है।
  4. व्रत: इस दिन बहुत से लोग उपवास करते हैं, कुछ बिना अन्न ग्रहण किए व्रत रखते हैं, जबकि अन्य फलाहार करते हैं।
  5. दान: पूर्वजों की स्मृति में वस्त्र, भोजन और धन का दान ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को किया जाता है।

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श्राद्ध एकादशी एक ऐसा दिन है जो हमारे पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष प्रदान करने का अवसर प्रदान करता है। इस दिन तर्पण, पिंड दान और मंत्रों के जाप के माध्यम से हम अपने पितरों को शांति प्रदान कर सकते हैं। साथ ही, भगवान विष्णु की कृपा से यह दिन और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, जो हमें भक्ति और सच्ची श्रद्धा के साथ इन अनुष्ठानों को करने की प्रेरणा देता है।