परशुराम जयंती 2025: भगवान विष्णु के छठे अवतार की गौरवगाथा

parshuram jayanti 2025

परशुराम जयंती 2025 कब है? (Parshuram Jayanti 2025 Kab Hai)

परशुराम जी को भगवान श्री हरी विष्णु का अवतार माना जाता है। हर साल वैशाख महीने में आने वाली शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को परशुराम जयंती (Parshuram Jayanti 2025) मनाई जाती है। इसी दिन अक्षय तृतीया का पर्व भी मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार अक्षय तृतीया का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है और इस दिन को कई महत्वपूर्ण काम हुए थे। अक्षय तृतीया के बारे में जान्ने के लिए आप हमारे और लेख पढ़ सकते हैं। आज हम परशुराम जयंती के बारे में जानेंगे।। हिन्दू पंचांग के अनुसार अक्षय तृतीया अत्यंत शुभ दिन माना जाता है।

वर्ष 2025 में परशुराम जयंती मंगलवार, 29 अप्रैल को मनाई जाएगी।

परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है? (Parshuram Jayanti Kyu Manate Hain)

परशुराम जयंती भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम (Parshuram) अवतार के जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है। भगवान परशुराम का जन्म ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र के रूप में हुआ था।

Parshuram Kon The

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वे जन्म से तो ब्राह्मण थे किन्तु उनका स्वाभाव एक छत्रिय योद्धा के जैसा ही था। भगवान विष्णु ने परशुराम अवतार धरती से अधर्मी और अत्याचारी क्षत्रियों का विनाश करने के लिए लिया था। भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रस्सन होकर उन्हें एक परशु यानि की कुल्हाड़ी वरदान स्वरुप दी थी और इसी परशु के कारण उनका नाम ‘परशुराम’ पड़ा। ऐसा माना जाता है कि परशुराम जी अमर हैं और आठ चिरन्जीविओं में से एक हैं। इसीलिए हमें उनका योगदान त्रेता युग और द्वापर युग दोनों में देखने को मिलता है।

परशुराम जी ने कितनी बार क्षत्रियों का विनाश किया?

पुराणों के अनुसार भगवान परशुराम ने 21 बार पृथ्वी से अधर्मी और अत्याचारी क्षत्रियों का संहार किया। ऐसा माना जाता है कि परशुराम के पिता की हत्या एक राजा ने अन्यायपूर्वक कर दी थी और इसी बात का प्रतिशोध लेने के लिए उन्होंने पृथिवी से क्षत्रियों का नाश करने के संकल्प लिया था। परशुराम ने शिव जी से प्राप्त फरसे (कुल्हाड़ी) से ही अनेकों बार क्षत्रियो का नाश किया था।

भगवान परशुराम से जुडी हुई जगह भारत में कोनसी हैं ?

परशुराम जयंती 2025 भारत के विभिन्न हिस्सों में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाएगी, लेकिन कुछ स्थानों पर इसका विशेष महत्व है:

1. त्र्यंबकेश्वर, महाराष्ट्र

यहाँ भगवान परशुराम के मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं। ऐसी मान्यता है कि परशुराम ने गोदावरी नदी की उत्पत्ति यहीं से की थी।

2. परशुराम कुंड, अरुणाचल प्रदेश

यह स्थान भी भगवान परशुराम से जुड़ा हुआ है ऐसी मान्यता है कि उन्होंने धरती से क्षत्रियों का नाश करने के बाद अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए स्नान किया था।

3. रेणुका झील, हिमाचल प्रदेश

परशुराम जी की माता रेणुका से जुड़ा यह स्थान भी परशुराम जयंती के दिन विशेष पूजा और मेलों के लिए प्रसिद्ध है।

4. गुजरात और उत्तर प्रदेश

गुजरात के सौराष्ट्र और यूपी के गाजीपुर व बलिया क्षेत्रों में परशुराम जयंती को सामाजिक-सांस्कृतिक आयोजनों के साथ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

त्रेता युग में परशुराम और राम-लक्ष्मण संवाद

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Credit: Jaideep Parmar Blog

त्रेता युग में जब श्रीराम ने जनकपुर में शिव का धनुष तोड़ा, तब परशुराम जी महेंद्र पर्वत पर तप कर रहे थे। धनुष टूटने की आवाज सुनकर वे अत्यंत क्रोधित होकर वहां आए थे। उन्होंने राम को युद्ध के लिए चुनौती दी और पूछा कि क्या वही शिव का धनुष तोड़ने वाले हैं। इस पर शेषनाग के अवतार लक्ष्मण जी ने परशुराम से से हास्य और विनोद करना शुरू कर दिया ये कहकर कि क्षत्रियों से तो धनुष टूटते ही रहते हैं इसमें इतना क्रोधित होने की कोनसी बात है।

जब Parshuram Ji का क्रोध और बढ़ गया तब श्री राम ने बीच में बात को संभाला और अपने विनम्र स्वाभाव से परशुराम जी को समझाने का प्रयास किया। अंततः परशुराम जी को श्रीराम की दिव्यता का बोध हुआ और उन्होंने उन्हें भगवान विष्णु का अवतार मानकर उनका सम्मान किया।

द्वापर युग में परशुराम जी की भूमिका

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Credit: Tales of Sanatan

जैसा कि हमने पहले भी देखा कि परशुराम जी अमर हैं, इसीलिए परशुराम जी का द्वापर युग में महाभारत की पृष्भूमि में भी महत्वपूर्ण योगदान था;

  • परशुराम जी ने महाराज शांतनु के पुत्र भीष्म को धनुर विद्या सिखाई थी। भीष्म को इक्क्षा मृत्यु का वरदान प्राप्त था और वे पांडवो और कौरवों के पितामह थे।
  • परशुराम जी पांडवों और कौरवों के गुरु, द्रोणाचार्य के भी गुरु थे।
  • परशुराम ने ही दुर्योधन के मित्र कर्ण को भी धनुर विद्या सिखाई थी किन्तु जब उन्हें ज्ञात हुआ कि कर्ण एक ब्राह्मण नहीं है और उनसे छल से विद्या अर्जित की है तब उन्होंने कर्ण को श्राप भी दिया था।