भैरव जिन्हें कि लोग सृष्टि के संहारकर्ता के रूप में जानते हैं, वह भगवान शिव का ही एक उग्र रूप हैं । हिंदू धर्म में भैरव को एक तांत्रिक देवता के रूप में भी पूजा जाता है। ज्योतिष में भगवान भैरव को राहु ग्रह का स्वामी माना जाता है और इसीलिए राहु से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए लोग भगवान भैरव की पूजा करते हैं।
यह लेख भगवन शिव के इसी भैरव रूप के बारे में है।
कौन हैं भैरव ?
हिंदू धर्म में भैरव को काल भैरव या भैरों बाबा के नाम से भी जाना जाता है। भैरव को अक्सर डंडपाणि भी कहा जाता है जिसका अर्थ है वह जो पापियों को दंड देने के लिए डंडा धारण करते हैं। इन्हें स्वस्वा भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है “जिनका घोड़ा या सवारी एक कुत्ता है।” इन्हें पूरे भारत में, साथ ही नेपाल, श्रीलंका और तिब्बती बौद्ध धर्म में भी पूजा जाता है।
दरअसल, भैरव शब्द की उत्पत्ति “भीरु” शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है “डरावना”। इसलिए, भैरव का अर्थ है “बहुत डरावना रूप”। भगवान भैरव के चार हाथ होते हैं एवं वह अपने हाथों में डमरू, पाश, त्रिशूल और खोपड़ी धारण करते हैं । कुछ रूपों में भगवान भैरव के चार से अधिक हाथ भी बताए जाते हैं। इनके शस्त्र, इनका काला कुत्ता, इनके बहार निकले हुए दांत दिखने में इन्हे डरावना बनाते हैं और इसलिए इनका नाम भैरव पड़ा । ऐसा मानते हैं कि भगवान शिव का यह रूप किसी भी डर या भय से परे है। यह भी कहा जाता है कि यह डर को नष्ट करते हैं और अपने भक्तों को लालच, वासना, और क्रोध जैसे भयानक शत्रुओं से बचाते हैं।
एक अन्य व्याख्या के अनुसार:
भ का अर्थ है सृजन
र का अर्थ है पालन
व का अर्थ है विनाश
इस प्रकार, भैरव का अर्थ हुआ वह जो जीवन के तीन चरणों को सृजित, पोषित और नष्ट करता है।
भैरव के उत्पत्ति का वर्णन:
भैरव या भैरों की उत्पत्ति का कारण “शिव महापुराण” में वर्णित एक कथा में जानने को मिलता है। इस कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु, ब्रह्मा जी से पूछते हैं कि ब्रह्मांड में सर्वोच्च कौन है । इस पर ब्रह्मा जी ने स्वयं को ही सबसे श्रेष्ट बता दिया। यह सुनकर, भगवान विष्णु ने भगवान ब्रह्मा की जल्दबाजी और अतिआत्मविश्वास पर तंज कसा जिसके प्रभाव वश दोनों में बहस होने लगी। बहस के बाद, दोनों ने चारों वेदों से उत्तर पाने का निर्णय लिया।
ऋग्वेद ने भगवान रुद्र (शिव) को सर्वशक्तिमान देवता बताया और कहा कि वो सभी जीवित प्राणियों को नियंत्रित करते हैं। यजुर्वेद ने उत्तर दिया कि जिनकी हम विभिन्न यज्ञों और अन्य कठोर अनुष्ठानों के माध्यम से पूजा करते हैं, वह कोई और नहीं बल्कि शिव ही हैं और वही सर्वोच्च हैं। सामवेद ने कहा कि वह सम्माननीय व्यक्ति जिनकी विभिन्न योगियों द्वारा पूजा की जाती है और जो पूरे विश्व को नियंत्रित करते हैं, वह त्र्यंबकम (शिव) ही हैं।
अंत में, अथर्ववेद ने कहा कि सभी मनुष्य भगवान को भक्ति मार्ग के माध्यम से देख सकते हैं और ऐसे देवता जो सभी मानवों की चिंताओं को दूर करते है वे वास्तव में शंकर (शिव) ही हैं परन्तु ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु दोनों , वेदों के कथन पर अविश्वास दिखते हुए हंसने लगे।
इसके बाद भगवान शिव एक शक्तिशाली दिव्य प्रकाश की ज्योति के रूप में प्रकट हुए जिसका कि आदि और अंत दिखाई नहीं दे रहा था भगवान शिव ने दोनों से कहा कि जो भी इस प्रकाश का आदि या अंत पता करके सबसे पहले लौट आएगा वही आप दोनों में श्रेष्ट होगा। ब्रह्मा जी और विष्णु जी दोनों अलग अलग दिशाओं में खोज के लिए चले गए, बहुत समय के बाद विष्णु जी तो अपनी गलती मानकर लौट आए किन्तु ब्रह्मा जी ने अपनी श्रेष्टता दिखाने के लिए यह झूठ बोल दिया कि उन्होंने इस प्रकाश का प्रारम्भ ढूंढ लिया।
इसके पश्च्यात भगवान शिव ने अपना ही एक रूप बनाया और कहा कि अब से मेरा यह रूप काल का स्वामी होगा और इसे काल भैरव के नाम से जाना जाएगा इस पर ब्रह्मा जी का पांचवां मुख ज़ोर से हसने लगा और क्रोध में आकर काल भैरव ने उस पांचवें सिर को ब्रह्मा जी से अलग कर दिया किन्तु ब्रह्म हत्या के कारण ब्रह्म जी का मुंड भैरव के हाथ से चिपक गया । भगवान शिव ने भैरव को विभिन्न तीर्थ स्थानों पर जाने और ब्रह्म हत्या के पाप से छुटकारा पाने का निर्देश दिया।
काल भैरव ने ब्रह्मा का सिर हाथ में लेकर, विभिन्न तीर्थ स्थानों पर स्नान किया, विभिन्न देवताओं की पूजा की, फिर भी पाया कि ब्रह्म हत्या के दोष से उन्हें छुटकारा नहीं मिला । अंततः, काल भैरव मोक्षपुरी, काशी पहुँचे। जैसे ही काल भैरव ने काशी में प्रवेश किया ब्रह्म जी का कपाल उनके हाथ से अलग होकर गिर गया और ब्रह्म हत्या दोष मिट गया । ब्रह्मा जी का सिर (कपाल) जिस स्थान पर गिरा उसे कपाल मोचन कहा गया और वहाँ एक तीर्थ बना जिसे बाद में कपाल मोचन तीर्थ कहा गया। इसके बाद, काल भैरव स्थायी रूप से काशी में रहने लगे, और अपने सभी भक्तों को आश्रय देने लगे।
काल भैरव के आठ रूप
लोक कथाओं के अनुसार ऐसा भी माना जाता है कि काल भैरव के आठ रूप होते हैं, जिन्हें अष्टांग भैरव के नाम से जाना जाता है। इन अष्ट भैरवों को ब्रह्मांड के आठ दिशाओं का नियंत्रणकर्ता कहा जाता है। वे अपने भक्तों को अष्ट लक्ष्मी का आशीर्वाद देते हैं, जो आठ प्रकार की धन-सम्पत्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। अष्टांग भैरव भिन्न-भिन्न रूप में दिखाई देते हैं और उनके पास अलग-अलग अस्त्र-शस्त्र और वाहन होते हैं। इन आठ भैरवों को प्रसन्न करने के लिए अलग-अलग मंत्र होते हैं। प्रत्येक अष्टांग भैरव के अधीन सात उप-भैरव होते हैं। इन सभी भैरवों को काल भैरव द्वारा शासित और नियंत्रित किया जाता है।
काल भैरव के सभी विभिन्न रूप भगवान शिव से उत्पन्न होते हैं, जिन्हें महा भैरव के नाम से जाना जाता है। महा भैरव को विभिन्न मुड़े हुए सर्पों से अलंकृत किया जाता है, जो उनके कर्णफूल, पैरों की पायल और कंगन के रूप में होते हैं। उन्हें बाघ की खाल और मानव हड्डियों को धारण किए हुए दिखाया जाता है।
अष्टांग भैरव के नाम इस प्रकार हैं,
चंड भैरव, रुरु भैरव, असितांग भैरव, कपाल भैरव, क्रोध भैरव, संहार भैरव, भीषण भैरव, उन्मत्त भैरव
इन अष्टांग भैरवों की पूजा और आराधना करने से भक्तों को भयरहित और समृद्ध जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
काल भैरव मंत्र1
काल भैरव की साधना करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित मंत्रों का प्रतिदिन जाप किआ जा सकता है। ये मंत्र आपकी सभी समस्याओं को नष्ट करने और आपको और आपके परिवार को सुख प्रदान करने की शक्ति रखते हैं।
ये मंत्र इस प्रकार हैं:
ॐ काल भैरवाय नमः,
ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्,
ॐ क्रीं क्रीं कालभैरवाय फट,
ॐ श्री भैरवाय नमः,
ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नमः,
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं,
ॐ भयहरणं च भैरवः,
ॐ ब्रह्म काल भैरवाय फट,
ॐ कर कलित कपाल कुण्डली दण्ड पाणी तरुण तिमिर व्याल यज्ञोपवीती कर्त्तु समया सपर्या विघ्न्नविच्छेद हेतवे जयती बटुक नाथ सिद्धि साधकानाम ॐ श्री बम् बटुक भैरवाय नमः
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