गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात पर ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।।
हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा पर्व का विशेष महत्व माना जाता है। यह पर्व गुरु की भक्ति उनके प्रति श्रद्धाभाव को दर्शाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार गुरु पूर्णिमा पर्व आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
इस तिथि को गुरु पूर्णिमा तिथि के नाम से भी जाना जाता है। सनातन संस्कृति में गुरु को भगवान से बढ़कर माना जाता है। हमारे यहां गुरु भगवान की तरह पूज्यनीय एवं प्रात: स्मरणीय माने जाते हैं।
इस आर्टिकल में हम आपको श्री गुरुपूर्णिमा की कथा और महत्व के बारे में जानकारी देंगे। इस आर्टिकल को पढ़कर आप भी श्री सद्गुरु की महिमा और गुरु पूर्णिमा पर्व की कथा और महत्व के बारे में जानकारी पा सकेंगे।
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गुरु पूर्णिमा पर्व क्या है?
गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्य अपने गुरुओं को विनय के साथ उन्हें याद करते हैं उनकी विधि विधान से पूजा-अर्चना भी करते हैं।
गुरु एक मूर्तिकार की तरह होता है। जैसे एक पत्थर को मूर्तिकार आकार प्रदान कर उसे भगवान की मूर्ति बनकर पत्थर को जगतपूज्य बना देता है। वैसे ही गुरु अनगढ़ शिष्यों को धर्म की शिक्षा के साथ शस्त्र विद्या, वाणिज्य विद्या, शिल्प विद्या आदि का सम्यक ज्ञान कराकर उन्हें विविध क्षेत्रों में पारंगत बना देते हैं।
गुरु बिना स्वार्थ के अपने शिष्य को शिक्षा -दीक्षा के संस्कार देते हैं। वैदिक परंपरा में गुरु और शिष्य के रिश्ते को सबसे ऊंचा स्थान प्राप्त है। प्राचीन काल में विद्यार्थी गुरु के आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे।
गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु पूर्णिमा पर शिष्य अपने गुरुओं के चरणों में प्रणाम करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह त्योहार शिक्षा और ज्ञान की महत्वपूर्णता को बताता है और गुरुओं की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करता है।
विभिन्न संस्कृतियों में इस दिन को विशेष रूप से मनाया जाता है, जैसे कि भारतीय संस्कृति में यह पर्व गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व को उजागर करता है।
गुरु पूर्णिमा पर्व गुरु पूजन के लिए समर्पित है। इसलिए इस दिन उनके प्रति सम्मान जरूर व्यक्त करना चाहिए और उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। ऐसा करने से शिक्षा के क्षेत्र में लाभ मिलता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
गुरु पूर्णिमा के दिन दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है। भोजन वस्त्र और धन का दान करने से विशेष लाभ मिलता है, साथ ही पशु-पक्षियों को भोजन कराने से भी अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
गुरु पूर्णिमा पर्व कैसे मनाया जाता है?
सनातन धर्म में सर्वप्रथम गुरु माता-पिता हैं। इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन माता-पिता के चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेना चाहिए और उनकी प्रदक्षिणा करनी चाहिए। ऐसा करने से देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है और भविष्य में सफलताओं के मार्ग खुलते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गुरु कृपा से व्यक्ति का जीवन आनंद से भर जाता है। पूर्णिमा के अवसर पर चंद्रमा की पूजा का भी विशेष महत्व माना जाता है।
धर्म ग्रंथों में में स्पष्ट वर्णन मिलता है कि गुरु का स्थान भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव जी से भी पहले माना गया है।
इससे एक बात तो सत्य है कि गुरु बिना संसार की नैया पार नहीं हो सकती। अगर आपको जीवन में धन-दौलत न भी मिले तो भी कोई बात नहीं, लेकिन आपको एक सच्चा गुरु मिल गया तो समझ लेना आप निहाल हो गए।
गुरु पूर्णिमा की कथा क्या है?
धार्मिक-पौराणिक कथाओं में गुरु पूर्णिमा का वर्णन
भगवान श्रीराम जी ने गुरु वशिष्ठ के आश्रम में अपने भाइयों के साथ शिक्षा प्राप्त की। गुरु वशिष्ठ जी ने अपने शिष्यों का न्याय नीति के साथ शस्त्र विद्या का ज्ञान दिया था।
भगवान श्रीकृष्ण जी ने भी उज्जैन में सांदीपनि ऋषि के आश्रम में शिक्षा—दीक्षा ग्रहण की थी। वहीं युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव इन पांच पांडवों और दुर्योधन आदि कौरव राजकुमारों ने आचार्य द्रोणाचार्य से शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की थी।
गुरु पूर्णिमा का ऐतिहासिक महत्व
तक्षशिला के आचार्य विष्णुगप्त (आचार्य चाणक्य) ने मगध के अभिमानी राजा धनानंद को राजगद्दी से उखाड़ फेंकने के लिए चंद्रगुप्त मौर्य को शिक्षा -दीक्षा देकर उसे मगध का योग्य शासक बनाया था।
पंचतंत्र ग्रंथ के लेखक आचार्य विष्णु शर्मा ने भी राजा के मूर्ख पुत्रों को विविध कहानियों के जरिए शिक्षित कर उन्हें योग्य बनाया था।
मध्यकाल में भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य उपासिका मीराबाई को गुरु रैदास मिले तो उनका जीवन बदल गया। इससे सिद्ध होता है कि कि गुरु की महिमा का वर्णन कर पाना असंभव हैं।
कविताओं में गुरु की महिमा का वर्णन
निर्गुण भक्ति धारा के कवि कबीरदास जी ने अपने दोहे में गुरु की महिमा बताते हुए कहा है कि,
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाए।
बलिहारी गुरू आपने, गोविन्द दियो बताए।।
संस्कृत में एक प्रसिद्ध श्लोक गुरु की महिमा का वर्णन करता है…
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।
अर्थ : जिस गुरु ने ज्ञान रूपी शलाका से अज्ञानता रूपी अंधकार से भरी हुई आंखें खोलीं, ऐसे सद्गुरु को नमन है।
गुरु पूर्णिमा पर्व के अवसर पर सभी शिष्य अपनें गुरूओं की प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में चरण वंदना अवश्य करें।