विश्वकर्मा पूजा 2024: जानिए पूजा का महात्म्य एवं शुभ मुहूर्त

विश्वकर्मा पूजा के दिन भगवान विश्वकर्मा जिन्हें की इस सृष्टि का सबसे पहला शिल्पकार माना जाता है, की पूजा की जाती है।

हिंदू धर्म में देवताओं की पूजा अत्यधिक महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। यह पूजा श्रद्धा, भक्ति और आस्था का प्रतीक होती है। प्रत्येक देवता एक विशिष्ट शक्ति या तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं, और उनकी पूजा करने से मनुष्य को उनके गुणों और शक्तियों की कृपा प्राप्त होती है और ऐसे ही एक देवता हैं जिन्हें सृष्टि के शिल्पकार के रूप में जाना जाता है, और उनको प्रस्सन करने के लिए विश्वकर्मा पूजा भी की जाती है।

पूजा से मन और आत्मा की शुद्धि होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। विशेष अवसरों पर देवी-देवताओं की उपासना से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का आशीर्वाद मिलता है।

विश्वकर्मा कौन हैं और उनका जन्म कैसे हुआ?

कुछ पौराणिक एवं लोक कथाओं के अनुसार जब देवताओं ने और असुरों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया तब समुद्र मंथन में से ही विश्वकर्मा जी की उत्पत्ति हुई थी। विश्वकर्मा पूजा का भी हिन्दू विधि विधानों में अहम् महात्म्य है।
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भगवान विश्वकर्मा हिंदू धर्म में निर्माण और शिल्प कला के देवता माने जाते हैं। वे सृष्टि के प्रमुख वास्तुकार और दिव्य शिल्पकार हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा का जन्म ब्रह्मा जी के वामांग (बाएँ अंग) से हुआ था, और वे अद्वितीय सृजन शक्ति से संपन्न थे। एक और कथा के अनुसार विश्वकर्मा जी समुद्र में से प्रकट हुए थे जब देवताओं और असुरों ने अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया था। विश्वकर्मा जी को सभी निर्माण कार्यों का अधिपति माना जाता है, और उनके इन्ही गुणों का सम्मान करते हुए उनकी पूजा की जाती है।

विश्वकर्मा द्वारा निर्मित वस्तुएं

सोने की नगरी लंका का निर्माण विश्वकर्मा जी ने कुबेर के लिए किया था, जिसे बाद में रावण ने अपने भाई से बलपूर्वक छीन लिया।
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भगवान विश्वकर्मा ने कई अद्भुत वस्तुओं और स्थलों का निर्माण किया है जो पौराणिक कथाओं में उल्लेखित हैं। इनमें प्रमुख हैं:

  • स्वर्गलोक: इंद्र आदि देवताओं के निवास स्थान “स्वर्ग” का निर्माण विश्वकर्मा जी ने ही किया था, स्वर्ग दिखने में इतना भव्य एवं सुन्दर था कि असुर उसे प्राप्त करने के लिए अनेको अनेक प्रयास करते रहते थे।
  • इंद्र का वज्र: देवताओं के राजा इंद्र के अति शक्तिशाली हथियार वज्र को भी विश्वकर्मा जी ने ही ऋषि दधीचि की अस्थियों से बनाया था।
  • द्वारका नगरी: भगवान कृष्ण के आदेश पर समस्त मथुरा वासियों के लिए विश्वकर्मा जी ने एक बहुत ही सुन्दर नगरी “द्वारका” का निर्माण किया जिसे समुद्र के किनारे बनाया गया था।
  • पुष्पक विमान: रावण द्वारा अपने भाई कुबेर से हरण किया गया विमान जो पक्षियों की तरह ही उड़ने में सक्षम था, उसे भी कुबेर के लिए विश्वकर्मा जी ने ही बनाया था।
  • इंद्रप्रस्थ: पांडवों के लिए खांडव वन को एक बड़ी ही सुन्दर एवं माया नगरी “इंद्रप्रस्थ” के रूप में विश्वकर्मा जी ने ही बनाया था।
  • लंका: भगवान विश्वकर्मा ने स्वर्णमयी लंका का निर्माण किया था। लंका की वास्तुकला अद्वितीय थी, जिसे सोने से निर्मित किया गया था। यह रावण के साम्राज्य की शोभा थी, और इसके वैभव का उल्लेख रामायण में मिलता है। 
  • भगवान विष्णु और शिव के अस्त्र-शस्त्र: भगवान विश्वकर्मा ने देवताओं के कई शक्तिशाली अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण किया, जिनमें प्रमुख रूप से भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र और भगवान शिव का त्रिशूल शामिल हैं। 

इनके अलावा, भगवान विश्वकर्मा ने कई प्रकार के अस्त्र-शस्त्र और दिव्य वास्तुकला का निर्माण किया, जिनका उपयोग देवताओं और मानवों द्वारा किया गया।

भगवान विश्वकर्मा का स्वरूप

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भगवान विश्वकर्मा का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और दिव्य है। उन्हें चार भुजाओं वाला दिखाया जाता है, जिनमें वे औजार और शिल्पकला से जुड़े उपकरण धारण करते हैं। उनका स्वरूप निर्माण और सृजन की अनंत शक्तियों का प्रतीक है। उनका वाहन हंस है, जो शुद्धता और ज्ञान का प्रतीक है।

विश्वकर्मा पूजा कैसे करें?

विश्वकर्मा पूजा के अवसर पर अपने औजारों की पूजा करते हुए कुछ मजदूर
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विश्वकर्मा पूजा खासतौर पर कारीगरों, इंजीनियरों और औद्योगिक कार्यों से जुड़े लोगों द्वारा की जाती है। इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा से उनके सृजनात्मक गुणों का आह्वान किया जाता है। पूजा की विधि इस प्रकार है:

  1. सबसे पहले भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा या चित्र को स्वच्छ स्थान पर स्थापित करें।
  2. पूजा स्थल की सफाई करके दीप जलाएं और फूल, धूप और नैवेद्य अर्पित करें।
  3. भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करते हुए “ॐ विश्वकर्मण नमः” मंत्र का जाप करें।
  4. अपने कार्यस्थल, औजारों और मशीनों की पूजा करें, क्योंकि यह पूजा भगवान विश्वकर्मा की कृपा से समृद्धि और सुरक्षा प्रदान करती है।
  5. अंत में आरती करें और प्रसाद वितरण करें।

विश्वकर्मा जी की पूजा करने के लिए मंत्र

भगवान विश्वकर्मा की पूजा में निम्न मंत्र का जाप किया जाता है:

  • ॐ आधार शक्तपे नमः।
  • ॐ कूमयि नमः।
  • ॐ अनन्तम नमः।
  • ॐ पृथिव्यै नमः।

इन मंत्रो का जाप करके भगवान विश्वकर्मा से सृजनात्मक शक्ति और समृद्धि की कामना की जाती है।

विश्वकर्मा पूजा 2024 का शुभ मुहूर्त और समय

विश्वकर्मा जयंती कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है, जब सूर्य देव सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करते हैं। यह दिन विशेष रूप से कारीगरों, इंजीनियरों और निर्माण कार्यों में लगे लोगों के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है। वर्ष 2024 में विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर को मनाई जाएगी। इस दिन का शुभ मुहूर्त प्रातःकाल में है, और पूजा का सबसे उत्तम समय प्रातः 07:30 बजे से लेकर 09:30 बजे तक है। इस अवधि में पूजा करने से भगवान विश्वकर्मा की विशेष कृपा प्राप्त होगी।

विश्वकर्मा पूजा का महत्व उन सभी लोगों के लिए है जो निर्माण, शिल्प और उद्योग से जुड़े हुए हैं। भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से कार्यों में समृद्धि, उपकरणों की सुरक्षा और जीवन में उन्नति प्राप्त होती है।

Frequently Asked Questions (FAQ’s)

1. विश्वकर्मा जयंती कब मनाई जाती है?

विश्वकर्मा जयंती कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है, जब सूर्य सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करता है। वर्ष 2024 में यह 17 सितंबर को मनाई जाएगी।

2. भगवान विश्वकर्मा कौन हैं और उनका स्वरूप कैसा है?

भगवान विश्वकर्मा हिंदू धर्म में निर्माण और शिल्प कला के देवता माने जाते हैं। उनका स्वरूप चार भुजाओं वाला है, जिनमें वे शिल्पकला से जुड़े औजार धारण करते हैं। उनका वाहन हंस है, जो शुद्धता और ज्ञान का प्रतीक है।

3. भगवान विश्वकर्मा ने किन प्रमुख वस्तुओं का निर्माण किया है?

भगवान विश्वकर्मा ने स्वर्णमयी लंका, द्वारका नगरी, इंद्र का वज्र, सुदर्शन चक्र (भगवान विष्णु का शस्त्र), और भगवान शिव का त्रिशूल जैसे अद्वितीय शस्त्र और स्थानों का निर्माण किया है।

4. विश्वकर्मा पूजा में कौन सा मंत्र जपना चाहिए?

विश्वकर्मा पूजा में निम्न मंत्र का जाप किया जाता है:
ॐ आधार शक्तपे नमः।
ॐ कूमयि नमः।
ॐ अनन्तम नमः।
ॐ पृथिव्यै नमः।