हिन्दू या सनातन धर्म की विशेषता ही इसकी अलग अलग रीतियां और त्यौहार हैं। हमारे धर्म में साल भर त्यौहार आते रहते हैं जो कि हमेशा ही लोगों को आपस में एक दूसरे के साथ घुलने मिलने का, समझने समझाने का अवसर देते ही रहते हैं। इन्ही त्योहारों में से एक है नरसिंह जयंती (Narasimha Jayanti 2025) जिसे कि भगवान विष्णु के अति उग्र रूप भगवान नरसिंह के अवतरण की स्मृति में मनाया जाता है।
आइये इस लेख में इसी Narasimha Jayanti त्यौहार से जुडी हुई कई और बातें जानते हैं।
Table of Contents
नरसिंह जयंती क्या है? (Narasimha Jayanti Kya Hai)
Narasimha Jayanti भगवान विष्णु के चौथे अवतार “नरसिंह भगवान” के प्रकट और अवतरण या प्राकट्य होने की तिथि है। हिन्दू पंचांग के अनुसार यह तिथि वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को आती है। इस पर्व से जुडी हुई मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने आधे मानव और आधे सिंह के रूप में प्रकट होकर अधर्मी राक्षस राजा हिरण्यकश्यप का वध किया और अपने परम भक्त प्रह्लाद की रक्षा की।
यह पर्व सत्य की जीत और भक्ति की शक्ति का प्रतीक है। इस दिन भगवान विष्णु के भक्त या वैष्णव उपवास या व्रत करके, पूजन और भगवान नरसिंह के मंत्रों का जप करके उनके आशीर्वाद की प्राप्ति करते हैं।

नरसिंह जयंती 2025 में कब है? (Narasimha Jayanti Kab Hai)
वर्ष 2025 में नरसिंह जयंती (Narasimha Jayanti 2025) 11 मई (रविवार) को मनाई जाएगी। इस दिन वैशाख शुक्ल चतुर्दशी तिथि पड़ रही है, जो भगवान नरसिंह के प्रकट होने की पौराणिक तिथि मानी जाती है।
पूजन का श्रेष्ठ समय “नरसिंह प्रकट काल” माना जाता है, जो प्रायः सूर्यास्त के समय होता है। भक्त दिनभर उपवास रखते हैं और संध्या के समय पूजा करते हैं।
अगर आप अपने पूजा पाठ एवं अनुष्ठानों को और अधिक सात्विक बनाना चाहते हैं तो प्रयोग में लाइए हमारी सुगन्धित धूपबत्तियाँ,अगरबत्तियां एवं हवन कप्स।
नरसिंह जयंती क्यों मनाई जाती है? (Narasimha Jayanti Kyu Manate Hain)
Narasimha Jayanti त्यौहार को मनाने के पीछे धार्मिक और दार्शनिक दोनों दृष्टिकोण ही हैं:
- यह दिन याद दिलाता है कि ईश्वर अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी रूप में प्रकट हो सकते हैं।
- यह त्यौहार इस बात पर ज़ोर देता है कि अधर्म और अहंकार का विनाश निश्चित है।
- भक्त प्रह्लाद की भक्ति, श्रद्धा और साहस हमें प्रेरणा देते हैं कि सत्य और ईश्वर में विश्वास रखने वाला अंततः विजयी होता है।
इस दिन व्रत रखने से न सिर्फ पापों का नाश होता है अपितु मानसिक भय भी समाप्त होते हैं और जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है।
भगवान नरसिंह कौन थे? (Narasimha Bhagvan Kon Hain)
भगवान नरसिंह, भगवान विष्णु के दशावतारों में चौथे अवतार माने जाते हैं। भगवान विष्णु के सभी अवतारों में उनका स्वरूप अत्यंत अद्वितीय माना जाता है क्यूंकि नरसिंह भगवान का आधा शरीर मनुष्य का था और आधा शरीर सिंह (शेर) का। यह अवतार भगवान विष्णु ने विशेष अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा और हिरण्यकश्यप के वध के लिए लिया था।
हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकश्यप दो भाई थे। इनमे से बड़े भाई हिरण्याक्ष का वध भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर किया था। अपने बड़े भाई के वध के बाद हिरण्यकश्यप असुर लोक का राजा बना और उसने तीनों लोकों का स्वामी बनने के लिए ब्रह्मा जी का तप शुरू कर दिया। उसके तप से ब्रह्मा जी बहतु प्रस्सन हुए और उसे ब्रह्मा जी ने वरदान दिया कि वह न तो मनुष्य के हाथों मारा जाएगा और न पशु से, वह न तो दिन में मरेगा और न रात में, वह न तो घर के अंदर मरेगा, न बाहर, वह न तो किसी अस्त्र से, मरेगा और न शस्त्र से।
यह वरदान प्राप्त करने के बाद हिरण्यकश्यप को लगा कि अब इस समस्त संसार में उसे कोई मार ही नहीं सकता और इसी बात से निर्भय होकर उसने सभी लोकों में विष्णु भगवान का नाम न लेने का एलान कर दिया और कह दिया कि जो भी नारायण का नाम लेगा उसे मृत्यु दंड दिया जाएगा किन्तु प्रभु की लीला देखिए कि स्वयं उस अधर्मी का पुत्र ही नारायण भगवान का सबसे बड़ा भक्त निकला।
हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र का अंत करने के लिए कई प्रयास किए जिसमे से कि उसे अपनी बेहेन के साथ आग में जलाने का भी एक प्रयास था जिसके कारण हम होली का त्यौहार मानते हैं। एक बार जब हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र का वध करने के लिए उसे एक गरम खम्बे से चिपकने को कह दिया था तब प्रह्लाद ने खम्बे को विष्णु भगवान समझके, खम्बे को आदर पूर्वक गले लगा लिया। विष्णु भगवान की कृपा से खोलता हुआ खम्बा भी ठंडा हो गया और प्रह्लाद को कुछ न हुआ।
तब हिरण्यकशिपु ने आक्रोश में आकर तलवार से अपने पुत्र पर प्रहार करते हुए पूछा कि बता कहाँ है तेरा विष्णु। तब प्रह्लाद ने कहा कि विष्णु भगवान तो हर जगह हैं इस खम्बे में भी हैं। जैसे ही हिरण्यकशिपु प्रह्लाद पर और खम्बे पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ा वैसे ही खम्बे में से विष्णु भगवान का नरसिम्हा स्वरुप प्रकट हो गया। ब्रह्मा जी के इस वरदान को निष्फल करते हुए भगवान विष्णु ने शाम के समय, घर के प्रवेश द्वार पर, अपने नखों से, अर्धमानव-अर्धसिंह रूप में उसका वध किया।
इस घटना से यह सिद्ध हुआ कि ईश्वर की योजना और शक्ति मानव समझ से परे है, और वे न्याय करने में समर्थ हैं चाहे परिस्थिति कैसी भी हो।
भगवान विष्णु के नरसिंह से पहले के अवतार (Bhagvan Vishnu ke Avatar)
भगवान विष्णु ने संसार की रक्षा, धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश हेतु दशावतार लिए। नरसिंह इन अवतारों में चौथे स्थान पर आते हैं। उनसे पूर्व के तीन अवतार इस प्रकार हैं:
मत्स्य अवतार (Matsya Avatar)
इस अवतार में भगवान विष्णु ने मछली का रूप धारण कर वैवस्वत मनु की नाव को प्रलयकाल में सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया और वेदों की रक्षा की।
कूर्म अवतार (Kurma Avatar)
इस रूप में भगवान विष्णु ने कछुए का अवतार लेकर मंदराचल पर्वत को समुद्र मंथन के लिए स्थिर किया, जिससे अमृत प्राप्त हुआ।
वराह अवतार (Varaha Avatar)
इस अवतार में भगवान ने विशाल वराह (सूअर) का रूप धारण कर पृथ्वी को हिरण्याक्ष नामक असुर के चंगुल से मुक्त कराया और ब्रह्मांड में पुनः स्थिर किया।
इन अवतारों से यह स्पष्ट होता है कि भगवान विष्णु हर युग में उचित समय और रूप में प्रकट होकर सृष्टि की रक्षा करते हैं और धर्म की स्थापना करते हैं।
Narasimha Jayanti न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह आस्था, साहस, निष्ठा और सत्य की विजय का उत्सव भी है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि यदि हमारी भक्ति सच्ची है और हमारा उद्देश्य धर्ममय है, तो ईश्वर स्वयं हमारी रक्षा के लिए प्रकट होते हैं।